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रियल एस्टेट के नए कानून-RERA ACT पर राज्य सुस्त, होम बायर्स का होगा सिर्फ नुकसान

केन्द्र, सरकार चाहती हैं RERA से होम बायर्स का फायदा हो. लिहाजा उसने 1 मई 2016 को रीयल एस्टेट सेक्टर को दुरुस्त करने के लिए रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) एक्ट को संसद से पारित करा दिया. लेकिन एक बार फिर इस दिशा में कछुए की चाल से आग बढ़ने का काम राज्य कर रहे हैं जबकि होम बायर्स के हितों की सुरक्षा करने की चाभी उसके पास है.

केन्द्र सरकार की पहल के बाद क्यों सुस्त पड़ें हैं रेरा एक्ट लाने में राज्य केन्द्र सरकार की पहल के बाद क्यों सुस्त पड़ें हैं रेरा एक्ट लाने में राज्य
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2017,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

केन्द्र सरकार ने 1 मई 2016 को रीयल एस्टेट सेक्टर को दुरुस्त करने के लिए रीयल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA) एक्ट संसद से पारित करा लिया था. इसके बाद 1 मई 2017 तक देश के सभी राज्यों (29 राज्य और 7 केन्द्र शाषित क्षेत्र) को इस एक्ट के आधार पर अपने लिए रेरा के नियम निर्धारित करते हुए अथॉरिटी का गठन कर लेना था. लेकिन इस डेडलाइन पर देश में का कोई राज्य खरा नहीं उतरा. नतीजा यह कि कुछ अपवाद छोड़कर पूरा देश इस काम को करने में पूरी तरह से विफल हो चुका है.

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क्यों जरूरी है राज्यों का RERA एक्ट

RERA एक्ट को सभी राज्यों को पारित करना है. ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि संविधान के मुताबिक भू-वर्ग (लैंड) राज्य सूची में है और जमीन से जुड़ा कोई भी कानून अथवा नियम राज्य सरकार ही बना सकती है.

केन्द्र सरकार की पहल

केन्द्र सरकार ने हाउसिंग मंत्रालय की पहल पर रेरा एक्ट को बनाया है जिससे रीयल एस्टेट सेक्टर में ट्रांस्पेरेंसी के साथ-साथ बिल्डर/डेवलपर की जिम्मेदारी तय की जा सके. गौरतलब है कि हाउसिंग मंत्रालय ने इस एक्ट को केन्द्र सरकार की 2022 तक सभी के लिए घर के अपने फ्लैगशिप प्रोजेक्ट को तीव्र गति से आगे बढ़ाने के लिए उठाया था.

क्यों जरूरी है अथॉरिटी

रेरा एक्ट के प्रावधान के मुताबिक राज्यों के रेरा अथॉरिटी सभी बिल्डर, डेवलपर और होम बायर के लिए नियामक का काम करेगी. ठीक उसी तरह जैसे शेयर बाजार के लिए सेबी और टेलिकॉम सेक्टर के लिए ट्राई करती है. सेक्टर से जुड़े अहम फैसले करने का अधिकार इस अथॉरिटी के पास रहेगा और धोखाधड़ी करने वाले बिल्डर, डेवलपर से होम बायर्स की सुरक्षा की गारंटी भी यही नियामक देगी. इस अथॉरिटी के गठन के बाद ही रीयल एस्टेट सेक्टर में ट्रांस्पेरेंसी के साथ-साथ बिल्डर/डेवलपर की जिम्मेदारी तय करने की शुरुआत होगी.

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क्या राज्य नहीं चाहते ट्रांस्पेरेंसी?
केन्द्र सरकार के रेरा एक्ट द्वारा दी गई एक-एक डेडलाइन बीत रही है. लेकिन देश के अधिकांश राज्यों ने इस दिशा में नियम निर्धारित कर उसे नोटिफाई कराने और अथॉरिटी बनाते हुए नियामक बैठाने की दिशा में शुरुआत तक नहीं की है. हालांकि पूरे देश में मध्यप्रदेश एक अपवाद राज्य है जिसने इस दिशा में बढ़त बना ली है. मध्यप्रदेश ने अपने नियमों को नोटिफाई करने के साथ-साथ अथॉरिटी के गठन के काम को पूरा कर लिया है. इसके अलावा कुछ अन्य राज्य हैं जिन्होंने अंतरिम अथॉरिटी का गठन कर दिया है. अभीतक महज 7 राज्यों ने अपना कानून नोटिफाई किया है.

रेरा को कमजोर करने की कवायद? 

इस सेक्टर के जानकारों का मानना है कि यदि राज्यों द्वारा इस क्षेत्र में और देरी की गई तो संभावना है कि ग्राहकों के हित के उद्देश्य से बनने वाला रेरा एक्ट कमजोर रूप ले ले. दरअसल इस राज्यों के कानून बन जाने और अथॉरिटी के गठन के बाद ही देश के सभी हिस्सों में रिहायशी और गैर रिहायशी प्रोजेक्ट्स को रेरा एक्ट के तहत रजिस्टर किया जा सकेगा. जबतक यह काम नहीं होता है तबतक ग्राहकों को इस एक्ट के तहत दी जाने वाली सुविधाएं नहीं मिल सकती हैं. साथ ही इस अथॉरिटी के गठन के बाद उन प्रोजेक्ट्स को भी 3 महीने के अंदर रेरा एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होगा जिससे घर की खरीदारी कर चुके लोगों को भी समय से घर दिलाने की कवायद की जा सके.

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