
देश की दिग्गज टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल ने टैक्स का बोझ कम करने की मांग की है. सुनील मित्तल ने कहा कि टेलीकॉम सेक्टर को खजाना भरने के स्रोत की तरह नहीं समझा जाना चाहिए. यह पहली बार नहीं है जब सुनील मित्तल ने टेलीकॉम सेक्टर की समस्याओं पर बात की है. इससे पहले भी कई बार उन्होंने इस सेक्टर पर टैक्स बोझ और चार्जेज को लेकर चिंता जाहिर की है.
आपको बता दें कि टेलीकॉम कंपनियां एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) भुगतान को लेकर संघर्ष कर रही हैं. ये कई साल का बकाया है, जो सरकार टेलीकॉम कंपनियों से मांग रही है. इसका सबसे ज्यादा बोझ वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल पर पड़ा है.
क्या कहा सुनील मित्तल ने?
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सुनील मित्तल ने कहा, ‘‘टैक्स आमतौर पर इस उद्योग पर बहुत अधिक रहे हैं. यह महत्वपूर्ण है कि इसकी अच्छी तरह से समीक्षा की जाए और स्पेक्ट्रम जैसे टेलीकॉम संसाधनों पर शुल्क को खजाना भरने का एक स्रोत नहीं बल्कि इसे आर्थिक गतिविधियों को कई गुना बढ़ाने वाले कारक के रूप में देखना चाहिए. ऐसे में जो कमी होगी, सरकार उसकी भरपाई इस उद्योग के सहारे आगे बढ़ने वाले अन्य उद्योगों से कमा लेगी.’’
चार्जेज और टैक्स पर ध्यान देने की जरूरत
मित्तल ने आगे कहा कि काफी उतार-चढ़ाव से जूझने वाले टेलीकॉम इंडस्ट्री पर चार्जेज और टैक्स के मामले में ध्यान देने की जरूरत है. यह भारत के लिये स्थानीय विनिर्माण के क्षेत्र में नेतृत्व करने का समय है. इसके साथ ही सुनील मित्तल ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ आह्वान ने उद्योग जगत को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि दूरसंचार नेटवर्क, मोबाइल डिवाइस और सॉफ्टवेयर क्षेत्रों में भारत में अधिक मूल्य वर्धन हो.
टैरिफ दुनिया में सबसे कम
इसके साथ ही मित्तल ने कहा कि देश में टैरिफ दुनिया में सबसे कम हैं. उन्होंने कहा, "ग्राहक दुनिया में कहीं भी सबसे सस्ती दरों पर प्रति माह 15 जीबी डेटा उपयोग का आनंद ले रहे हैं. 200 रुपये से कम में, लोग एप्लिकेशन, संगीत, मनोरंजन, महत्वपूर्ण सरकारी सेवाओं, डीबीटी आदि का लाभ उठा रहे हैं.
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यह सब हमारे देश के अधिकांश लोगों के लिये किया जा रहा है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि टेलीकॉम सेक्टर में एक समय कंपनियों की संख्या दो से बढ़कर 12 तक पहुंच गयी थी, लेकिन अब यह फिर से कम हो गया है.