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कभी रतन टाटा के बेहद करीबी थे साइरस मिस्त्री, इन 4 मुद्दों पर उभरा मतभेद

अब लंबी लड़ाई के बाद नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCALT) से साइरस मिस्त्री को जीत मिली है.

लंबी लड़ाई के बाद साइरस मिस्त्री की जीत लंबी लड़ाई के बाद साइरस मिस्त्री की जीत
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:09 PM IST

जब साइरस मिस्त्री को टाटा सन्‍स के चेयरमैन के पद से हटाया गया था, तब इस फैसले से हर कोई हैरान था. क्योंकि साइरस मिस्‍त्री जब टाटा सन्‍स के चेयरमैन बने थे, उस समय कंपनी का कारोबार 100 अरब डॉलर के आसपास था. तब मिस्‍त्री से यह उम्‍मीद जताई जा रही थी कि वे वर्ष 2022 तक इस कारोबार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचा देंगे. लेकिन अचानक टाटा संस के बोर्ड ने 24 अक्टूबर, 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया.

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अब लंबी लड़ाई के बाद नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCALT) से साइरस मिस्त्री को जीत मिली है. NCALT ने टाटा सन्स के चेयरमैन पद से साइ‍रस मिस्त्री के हटाने को अवैध ठहरा दिया है और उन्हें इस पद पर फिर से बहाल करने का आदेश दिया है.

हटाने के पीछे टाटा बोर्ड का तर्क

दरअसल साइरस पल्लौंजी मिस्त्री को 28 दिसंबर, 2012 को टाटा का चेयरमैन बनाया गया था. मिस्त्री ने छठे चेयरमैन के तौर पर ग्रुप में कार्यभार संभाला था. मिस्त्री को पद से हटाए जाने पर टाटा ग्रुप का कहना था कि बोर्ड ने अपनी सामूहिक बुद्धि और टाटा ट्रस्ट के शेयरहोल्डरों की सलाह पर यह फैसला किया है. टाटा सन्स और टाटा ग्रुप के बेहतरी के लिए यह बदलाव जरूरी था.

NCALT का फैसला साइरस मिस्त्री के पक्ष में

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अचानक टाटा कंपनी के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद मिस्त्री ने टाटा संस और रतन टाटा को NCALT में घसीटा. लेकिन नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मुंबई बेंच ने साइरस मिस्त्री को हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था. उसके बाद मामला NCALT में पहुंचा और फैसला अब साइरस मिस्त्री के पक्ष में आया है.

आरोप-प्रत्यारोप का चला लंबा दौर

इससे पहले टाटा बोर्ड ने आरोप लगाया था कि साइरस मिस्त्री की अगुवाई में टाटा ग्रुप की रफ्तार सुस्‍त हुई और ग्रुप उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ा जैसी अपेक्षाएं उनसे की गई थीं. लेकिन NCALT में मिस्त्री की ओर से याचिका में कहा गया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया. उनका इस्तीफा इनके उत्पीड़न की वजह से था. याचिका के दूसरे हिस्से में आरोप लगाया गया कि ग्रुप और रतन टाटा के अव्यवस्थ‍ित प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ.

साइरस मिस्त्री पर कंपनी ने लगाया था गंभीर आरोप 

टाटा ग्रुप ने कहा था कि साइरस मिस्त्री को इसलिए निकाला गया क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था. ग्रुप ने आरोप लगाया था कि मिस्त्री ने जानबूझकर और कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से संवेदनशील जानकारी लीक की. इसकी वजह से ग्रुप की मार्केट वैल्यू में बड़ा नुकसान हुआ.

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आरोपों के जवाब में साइरस मिस्त्री की ये चिट्ठी

अपने ऊपर लगे आरोपों के जवाब में मिस्त्री ने बोर्ड को कड़े शब्दों में एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उनके शब्द थे, 'मुझे बस इतना ही कहना है कि निदेशक बोर्ड ने कोई प्रतिष्ठाजनक काम नहीं किया है. अपने चेयरमैन को बिना कोई कारण बताए और उसे अपना बचाव करने का मौका दिए बगैर हटाना... शायद कॉर्पोरेट इतिहास के पन्नों में अपनी तरह की अलग मिसाल होगी.'

टाटा संस का चेयरमैन होने के अलावा वे 2006 यानी अपने पिता के रिटायर होने के बाद से ही बोर्ड के भीतर शपूरजी पालनजी परिवार के कारोबारी हितों की नुमाइंदगी करने वाले निदेशक भी थे. जब मिस्त्री को हटाया गया था कि उस वक्त टाटा संस के 18.5 फीसदी शेयर इसी परिवार के पास थे और इस तरह से यह सबसे बड़ा शेयरधारक थे.

रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच रिश्ते

जब साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था उसके अगले एक साल तक उनके रतन टाटा के साथ संबंध बेहतरीन रहे थे. टाटा के नियंत्रण में जितने भी ट्रस्ट हैं. एक समय तो ऐसा भी आया था जब वे मिस्त्री को ट्रस्टों में कोई भूमिका देने के बारे में सोच रहे थे और यहां तक पहुंच गए थे कि वे अपने अवकाश लेने के बाद कोई ऐसा रास्ता बनाना चाहते थे ताकि मिस्त्री इन ट्रस्टों के उनके उत्तराधिकारी बन सकें.

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इन मुद्दों पर मतभेद गहराया

कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो शुरुआती वर्ष में मिस्त्री सभी अहम मसलों पर रतन टाटा से आगे बढ़कर परामर्श लिया करते थे. हालांकि विरासत में मिली कुछ समस्याओं से निपटने के क्रम में दोनों के बीच मतभेद कायम हुए-मसलन, टाटा नैनो (जिसके बारे में मिस्त्री का मानना था कि अगर कार के कारोबार को बचाना है तो इसे बंद कर दिया जाना चाहिए), इंडियन होटल्स की ओर से देश और विदेश में की गई महंगी खरीदारियां जिन्हें घाटा उठाकर बेचना पड़ा, टाटा स्टील यूके के घाटे से निपटने के तरीके, टाटा डोकोमो का समूचा सौदा और अंततः टाटा पावर की इंडोनेशिया स्थित खदान जैसी कुछ परिसंपत्तियां.

सूत्र बताते हैं कि चार ऐसे बड़े फैसले थे जिनके चलते विशेष रूप से असंतोष पैदा हुआरू टाटा स्टील यूके की बिक्री, वेलस्पन एनर्जी की नवीकरणीय परिसंपत्तियों की खरीद का फैसला, टाटा और उसके साझीदार डोकोमो के बीच झगड़ा और समूह के कर्ज कम करने के लिए अन्य वैश्विक परिसंपत्तियों की बिक्री की खातिर मिस्त्री के किए गए प्रयास.

साइरस मिस्त्री की ऐसे हुई थी टाटा ग्रुप में एंट्री

साइरस मिस्त्री 1991 में शपूरजी पल्‍लौंजी एंड कंपनी के बोर्ड में निदेशक के रूप में शामिल हुए थे. तीन सालों बाद उन्हें समूह का प्रबंध निदेशक बना दिया गया था. उनके नेतृत्व में शपूरजी पल्‍लौंजी का निर्माण कारोबार दो करोड़ डॉलर से बढ़कर डेढ़ अरब डॉलर का हो गया था. टाटा सन्‍स में निदेशक के अलावा मिस्त्री टाटा एलक्सी और टाटा पावर में भी निदेशक रहे थे.

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(इंडिया टुडे हिन्दी के इनपुट के साथ)

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