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आखिर क्यों बढ़ रही है 'निजी कर्ज' की रफ्तार? अर्थव्यवस्था के लिए क्या इसके मायने

कोरोना का कहर कम होने के साथ बकाया क्रेडिट कार्ड के रकम में उछाल आने लगी है. जिसका सीधा मतलब है कि लोग ज्यादा महंगे दर वाले लोन का जोखिम भी ज्यादा उठाने लगे हैं.

कर्ज लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी कर्ज लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 10:20 PM IST

बढ़ते ब्याज दर और महंगाई के बीच पर्सनल लोन की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. कोरोना महामारी में रोजगार संकट और बढ़ते स्वास्थ्य खर्चे के बीच कमाई खर्च से आगे निकल गई. बैकों के आंकड़े बताते हैं कि इस अंतराल को भरने के लिए लोगों ने धड़ल्ले से पर्सनल लोन लेना शुरू कर दिया है.
 
परिवार का खर्च कमाई से ज्यादा होने से लोगों ने पहले तो बचत को निकालकर खर्च करना शुरू किया, जिसमें सावधि जमाओं (Fixed Deposits) और सोने को गिरवी रखकर लोन लेने का चलन बढ़ा. लेकिन कोरोना का कहर कम होने के साथ बकाया क्रेडिट कार्ड के रकम में उछाल आने लगी है. जिसका सीधा मतलब है कि लोग ज्यादा महंगे दर वाले लोन का जोखिम भी ज्यादा उठाने लगे हैं.

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Why it matters
कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि कर्ज अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ता है. लेकिन यह दौर थोड़ी अवधि में तो सही है लेकिन इसका लंबे समय में बुरा असर पड़ता है. कर्ज के बाद ऐसे अवस्था भी आ सकती है, जिसमें लोग ब्याज चुकाने में असमर्थ होने लगे.

क्या कहते हैं आंकड़े
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में बैंको से लिया गया कुल निजी कर्ज 35 लाख करोड रुपये को पार कर गया है. यह ऐसे समय में हुआ है जब रिजर्व बैंक महंगाई रोकने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना शुरू कर दिया था. जून महीने में महंगाई दर 7 फीसदी से ऊपर थी. हालांकि जुलाई में महंगाई दर 6.71 फीसदी रही.  जुलाई 2022 लगातार सातवां ऐसा महीना रहा, जब महंगाई दर रिजर्व बैंक के टॉलरेंस लेवल से ऊपर है.

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पिछले दो साल में पर्सनल लोन में 10 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है. जून-2022 में Personal Loan 18 फीसदी की दर से बढ़ा (Y-o-Y), जो कि कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों यानी जुलाई 2020 के मुकाबले दोगुना (9 फीसदी) है.

पर्सनल लोन की बढ़ोतरी तकरीबन हर क्षेत्र में हुई है. इसे बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान आवास, वाहन और क्रेडिट कार्ड का रहा है. जुलाई-2020 से लेकर जून-2022 के बीच 4 लाख करोड़ रुपये का आवासीय कर्ज लिया गया. जबकि वाहन के लिए 2 लाख करोड़ रुपये और क्रेडिट कार्ड के जरिए 515 अरब रुपये का लोन लिया गया है. 

इन बढ़ते निजी लोन से दो सवाल खड़े होते हैं, एक तो इतनी तेज रफ्तार से इन कर्जों के बढ़ने की वजह क्या है और आगे इसका असर क्या होगा? लोगों की जनसंख्या के बड़े हिस्से की वास्तविक इनकम या तो जस की तस है या फिर कम हुई है खासकर कोरोना महामारी के बीच. जीवन स्तर पहले जैसा बनाए रखने के लिए लोगों ने नौकरी के अलावा दूसरे वित्तीय स्रोतों पर भरोसा शुरू कर दिया.

निजी लोन का बढ़ना अच्छा है या खराब?
निजी कर्ज अगर अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है और निवेश की तरह काम करता है तो इसे एक बेहतर संकेत माना जाता है. लेकिन लंबे समय तक कर्ज के बढ़ते रहने से लोग धीरे-धीरे खर्चों को टालना शुरू कर देते हैं, जिससे मंदी की आशंका गहराने लगती है. हालांकि फिलहाल घरेलू कर्ज का स्तर अलार्मिंग स्तर पर नहीं है. लेकिन कोरोना के दो साल के बाद भी कर्जों में बढ़ोतरी बहुत बेहतर संकेत नहीं है.

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बड़ी तस्वीर
निजी लोन में बढ़ोतरी केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में दिख रही है. मसलन चालू साल के दूसरी तिमाही में अमेरिका में घरेलू कर्ज 1200 लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है. ऐसा महंगाई बढ़ने से ऐसा हुआ है. न्यूयॉर्क फेडरल बैंक के मुताबिक क्रेडिट कार्ड में 13 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी हुई है, जो कि पिछले 20 साल में सबसे ज्यादा है.

स्टेट बैंक की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज में बढ़ोतरी की खास वजह कोरोना महामारी है. जिसकी वजह से घरेलू कर्ज और GDP के अनुपात में तेजी आई है. 2020 के मुकाबले 2021 में घरेलू कर्ज 32.5 फीसदी से बढ़कर 37.3 फीसदी हुई. हालांकि बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 2022 के पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद बढ़ेगा और यह दर 34 फीसदी पर आ सकता है. हालांकि बैंक का कहना है कि कुल रकम के हिसाब से घरेलू कर्जों में बढ़ोतरी होगी.  

दुनिया भर के रिजर्व बैंकों के संगठन बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट के मुताबिक अल्पअवधि में घरेलू कर्ज उपभोग और जीडीपी को बढ़ाता है. लेकिन लंबे समय में अगर यह जीडीपी का 60 फीसदी पहुंच जाता है तो चुनौती बढ़ जाती है. इस पैरामीटर के हिसाब से भारत में बढ़ते निजी कर्ज से फिलहाल कोई जोखिम नहीं है. लेकिन इसके लगातार बढ़ने और अर्थव्यवस्था में ठहराव जैसी आशंका के संकेत के बीच इसपर नजर रखना जरूरी है.
 

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