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कहा जाता है कि नए निवेशक को स्मॉल कैप शेयर या स्मॉल कैप म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश से बचना चाहिए. क्योंकि उसमें सबसे ज्यादा रिस्क (Risk) होता है. पिछले कुछ दिनों से स्मॉल कैप और मिडकैप शेयरों की जमकर पिटाई हो रही है, इंडेक्स (Index) में तेजी के बावजूद स्मॉल कैप शेयर गिर रहे हैं. यही नहीं, सेबी की तरफ से भी रिटेल निवेशकों को जागरूक किया जाता है, कि वो स्मॉल कैप शेयरों में जांच-परख कर ही निवेश करें.
अगर आप शेयर मार्केट (Share Market) में निवेश (Invest) का मन बना चुके हैं, तो आपको एक बार कंपनी की कैटेगरी पर गौर जरूर कर लेना चाहिए. जिससे बाद में आपको पछताना नहीं पड़ेगा. दरअसल, पिछले कुछ महीनों में स्मॉल कैप और मिडकैप शेयरों में जोरदार तेजी देखी गई. हाई रिटर्न देख निवेशक स्मॉल कैप की तरफ भागने लगे. लेकिन अब गिरावट में रिटेल निवेश घबरा रहे हैं.
स्मॉल कैप शेयरों में गिरावट जारी
तमाम स्मॉल कैप शेयरों में 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है. SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच लगातार स्मॉल कैप और मिडकैप शेयरों में तेजी पर चिंता जता चुकी हैं. 11 मार्च को AMFI के एक कार्यक्रम में उन्होंने फिर दोहराया कि कुछ शेयरों में यह तेजी फंडामेंटल्स से मेल नहीं खाती.
लेकिन सवाल उठता है कि रिटेल निवेशक कैसे पहचान करें कि कौन-सा शेयर किस कैटेगरी का है. यानी स्मॉल कैप, मिडकैप और लॉर्ज कैप में क्या अंतर है? आसान तरीके से खुद तय कर सकते हैं कि आप जिस कंपनी में निवेश कर रहे हैं, उसका मार्केट कैप क्या और किस कैटेगरी की कंपनी है.
खुद ऐसे पता करें कंपनी का मार्केट कैप
किसी भी कंपनी का मार्केट वैल्यू यानी (मार्केट कैप) कितना है, आप खुद निकाल सकते हैं. लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनी का फैसला मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर होता है. कंपनी के शेयरों की संख्या को उनकी मार्केट वैल्यू से मल्टीप्लाई करने पर कैपिटलाइजेशन निकलता है.
उदाहरण के लिए किसी ABC कंपनी के कुल शेयरों की संख्या 20000 है, और मौजूदा समय में उसके एक शेयर की कीमत 100 रुपये है. (शेयरों की कुल संख्या × मौजूदा समय में शेयर की कीमत= मार्केट कैप) इस फॉर्मूले से ABC कंपनी का मार्केट कैप (20000×100= 2000000) 20 लाख रुपये होता है.
बता दें, हर कंपनी अपना शेयर जारी करती है और शेयरों की कुल संख्या कंपनी में 100% स्वामित्व हक को दर्शाती है. अगर किसी कंपनी के कुल शेयरों की संख्या और प्रत्येक शेयर की कीमत पता चल जाए, तो उस कंपनी का वैल्यू आसानी से निकाला जा सकता है. अब आइए जानते हैं कि ये लार्ज कैप, मिडकैप और स्मॉल कैप क्या है?
लार्ज कैप (Large Cap)
आमतौर पर जिन कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन (Market Cap) 20,000 करोड़ से ज्यादा होता है, वे लार्ज कैप कंपनी कहलाती है. ऐसी कंपनियों को लार्ज कैप शेयर या लार्ज कैप कंपनी भी कहा जाता है. एक लार्ज कैप कंपनी का अपने उद्योग में वर्चस्व होता है. लार्ज कैप कंपनी की ग्रोथ संतुलित होती है.बाजार के उतार-चढ़ाव का इन पर मिडकैप और स्माल कैप की तुलना में कम असर पड़ता है. मार्केट करेक्शन पर इनमें ज्यादा अस्थिरता देखने को नहीं मिलती. ज्यादातर एक्सपर्ट इनमें निवेश को सुरक्षित मानते हैं.
मिड कैप (Midcap)
आमतौर पर जिस कंपनी का Market Capitalization या मार्केट वैल्यू 5000 करोड़ रुपये से 20000 करोड़ रुपये तक होता है, वे सभी कंपनी मिड कैप श्रेणी में आती है. एक मिड कैप कंपनी अपने उद्योग में एक उभरती खिलाड़ी होती है. इस तरह की कंपनियों में तेजी से बढ़ने और भविष्य में लार्ज कैप बनने की संभावना होती है. कुछ मिड कैप कंपनियां बहुत तेजी से ग्रोथ करती हैं.
स्मॉल कैप (Small Cap)
लार्ज कैप और मिड कैप के बाद जो कंपनियां आती हैं, वह स्माल कैप कहलाती है. जिस कंपनी का मार्केट वैल्यू (मार्केट कैप) 5000 करोड़ रुपये से कम होता है, वो स्माल कैप कंपनी मानी जाती है. खासकर नई कंपनियां स्मॉल कैप कैटेगरी में आती हैं. कुछ ऐसी कंपनियां भी बेहद कम समय में बहुत आगे निकल जाती हैं. इस तरह की कंपनियों में तेजी से बढ़ने और भविष्य में एक मिड कैप कंपनी बनने की संभावना होती है. स्मॉल-कैप कंपनियां हाई रिस्क और हाई रिटर्न दोनों संभव है. इनकी ग्रोथ बहुत तेजी से होती है, लेकिन अगर चीजें ठीक न हो तो बड़ा नुकसान भी झेलना पड़ सकता है.
मार्केट कैप के आधार पर रैंकिंग
इसके अलावा एक और तरीका जिसके आधार पर कंपनी को विभाजित किया जाता है. मार्केट कैप के आधार पर 1 से लेकर 100 रैंक तक की कंपनी को लार्ज कैप मानी जाती है, उसके बाद 101 से लेकर 250 रैंक तक की कंपनी मिडकैप कैटेगरी में आती है. जबकि 251 से लेकर उसके बाद आनी वाली सभी कंपनियां स्मॉल कैप मानी जाती हैं.