
पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) अब चुनावी मुद्दा बन गया है. खासकर गैर-बीजेपी शासित राज्यों में इसे जोर-शोर से उठाया रहा है. जिसके बाद केंद्र सरकार ने नई पेंशन स्कीम (NPS) के रिव्यू के लिए एक कमेटी गठित की है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की बढ़ती मांग के बीच केंद्र सरकार कर्मचारियों को मिनिमम एश्योर्ड पेंशन की गारंटी देने के लिए नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) के नियमों में बदलाव कर सकती है. इस बीच वित्त मंत्रालय ने ट्वीट कर बताया है कि गठित कमेटी संबंधित हितधारकों के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया में है, और अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है.
रिपोर्ट की मानें तो केंद्र सरकार NPS के नियमों में बदलाव करके कर्मचारियों को 40% से 45% एश्योर्ड मिनिमम पेंशन देने के नए फॉर्मूले पर काम कर रही है. यानी इस फॉर्मूले के तहत सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट से पहले जो आखिरी सैलरी मिलेगी, उसी के आधार पर कर्मचारियों की मिनिमम पेंशन की राशि तय हो सकती है.
बता दें, इसी साल 24 मार्च को संसद में फाइनेंस बिल पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई पेंशन स्कीम के रिव्यू के लिए कमेटी बनाने का ऐलान किया था. इसके बाद 6 अप्रैल को फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बताया था कि नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) का रिव्यू के लिए कमेटी बना दी गई है. इस कमेटी के रिव्यू के बाद सरकार फैसला लेगी कि पुरानी पेंशन स्कीम को वापस लागू किया जाना चाहिए या नहीं? कमेटी का नेतृत्व वित्त सचिव टीवी सोमनाथन कर रहे हैं.
कई राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू
बता दें, कांग्रेस शासित कई राज्य में NPS को खत्म कर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दिया गया है. करीब 5 महीने पहले हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 19 साल बाद ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल किया है. वहीं, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी कांग्रेस NPS को खत्म करके ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा कर रही है. हालिया चुनावों को देखें तो कांग्रेस का सभी राज्यों में सबसे बड़ा एजेंडा यही रहता है.
मौजूदा पेंशन में कर्मचारियों को अंतिम वेतन का करीब 38 फीसदी पेंशन मिलती है. अगर सरकार 40 फीसदी सुनिश्चित करती है तो 2 फीसदी का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ने वाला है. लेकिन सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय ऐसा रास्ता अपनाना चाहता है, जिससे पेंशन को लेकर सरकारी खजाने पर कम से कम बोझ पड़े.
अब आइए जानते हैं कि पुरानी पेंशन स्कीम और नई पेंशन स्कीम में क्या अंतर है?
1. पुरानी स्कीम के तहत रिटायरमेंट के वक्त कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है. क्योंकि पुरानी स्कीम में पेंशन का निर्धारण सरकारी कर्मचारी की आखिरी बेसिक सैलरी और महंगाई दर के आंकड़ों के अनुसार होता है.
2. पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारियों के वेतन से कोई पैसा कटने का प्रावधान नहीं है.
3. पुरानी पेंशन योजना में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है.
4. पुरानी पेंशन स्कीम में 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है.
5. रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है.
6. पुरानी पेंशन योजना में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी GPF का प्रावधान है.
7. सबसे खास बात पुरानी पेंशन स्कीम में हर 6 महीने के बाद मिलने वाले DA का प्रावधान है, यानी जब सरकार नया वेतन आयोग (Pay Commission) लागू करती है, तो भी इससे पेंशन (Pension) में बढ़ोतरी होती है.
नई पेंशन स्कीम (NPS) की खास बातें-
- साल 2004 से लागू हुई नई पेंशन स्कीम (NPS) का निर्धारण कुल जमा राशि और निवेश पर आए रिटर्न के अनुसार होता है. इसमें कर्मचारी का योगदान उसकी बेसिक सैलरी और DA का 10 फीसदी कर्मचारियों को प्राप्त होता है. इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है. 1 मई 2009 से एनपीएस स्कीम सभी के लिए लागू की गई.
- पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी. NPS में कर्मचारियों की सैलरी से 10% की कटौती की जाती है. पुरानी पेंशन योजना में GPF की सुविधा होती थी, लेकिन नई स्कीम में इसकी सुविधा नहीं है.
- पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय की सैलरी की करीब आधी राशि पेंशन के रूप में मिलती थी, जबकि नई पेंशन योजना में निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि पुरानी पेंशन एक सुरक्षित योजना है, जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है. वहीं, नई पेंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है, जिसमें बाजार की चाल के अनुसार भुगतान किया जाता है.
- NPS पर रिटर्न अच्छा रहा तो प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) और पेंशन (Pension) की पुरानी स्कीम की तुलना में कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय अच्छी धनराशि भी मिल सकती है. क्योंकि ये शेयर बाजार पर निर्भर रहता है. लेकिन कम रिटर्न की स्थिति में फंड कम हो सकता है.