
आईपीओ मार्केट (IPO Market) में रिकॉर्ड बूम के बीच नियामक सेबी (SEBI) ने आम आदमी के पैसे की सुरक्षा के लिए नए साल से ठीक पहले हस्तक्षेप किया है. सेबी को इस बात की चिंता है कि आम आदमी से जुटाए जा रहे पैसों का दुरुपयोग नहीं हो पाए. इसके लिए अब कई नियमों में बदलाव किया गया है.
एंकर इन्वेस्टर्स (Anchor Investors) के लिए अब लॉक-इन पीरियड (Lock-In Period) को 30 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया है. सेबी के इस कदम से लिस्टिंग के बाद नई कंपनियों के शेयरों के उतार-चढ़ाव पर लगाम लगेगी, जिससे रिटेल इन्वेस्टर्स (Retail Investors) का निवेश अधिक सुरक्षित हो जाएगा.
एंकर इंवेस्टर की ऑफलोडिंग से डूब जाता है आम लोगों का पैसा
हाल के समय में कुछ ऐसे मामले देखने को मिले, जिनमें एंकर इन्वेस्टर्स के एक्जिट (Anchor Investors Exit) करते ही शेयर प्राइस धड़ाम हो गया. इसका खामियाजा रिटेल इन्वेस्टर्स को भुगतना पड़ा और उनका निवेश एक झटके में घाटे में चला गया. जोमैटो, पेटीएम और नायका आईपीओ (Naykaa IPO) इसके उदाहरण हैं.
एक महीने का लॉक-इन पीरियड खत्म होते ही इन कंपनियों के एंकर इन्वेस्टर्स ने अपनी हिस्सेदारी ऑफलोड (Share Offloading) कर दी. इससे ओपन मार्केट में शेयर की कीमतें तुरंत भरभरा गईं. जोमैटो (Zomato IPO) के मामले में एंकर इन्वेस्टर्स की ऑफलोडिंग के बाद शेयर प्राइस 9 फीसदी गिर गया. पेटीएम (Paytm IPO) के मामले में तो कीमतें एक झटके में 13 फीसदी नीचे आ गईं.
सुरक्षित हो जाएगा रिटेल इन्वेस्टर का निवेश
नए बदलाव के बाद इस तरह की गिरावट पर लगाम लगेगी. अब एंकर इन्वेस्टर्स को 90 दिनों तक कम-से-कम 50 फीसदी हिस्सेदारी बनाकर रखनी होगी. एंकर इन्वेस्टर्स के लिए लिस्टिंग के दिन से लेकर अगले एक महीने तक का पुराना लॉक-इन लागू रहेगा. इसके बाद अगले दो महीने के लिए आधे शेयर पर लॉक-इन लगा रहेगा. इसका मतलब हुआ कि अब ऐसे इन्वेस्टर लिस्टिंग के एक महीने बाद भी सिर्फ 50 फीसदी ऑफलोडिंग कर पाएंगे. यह नियम 01 अप्रैल 2022 से लागू होगा.
ऐसे इन्वेस्टर के लिए कम हो गया लॉक-इन पीरियड
इसके अलावा सेबी ने प्रेफरेंशियल इश्यू (Prefrential Issue) के लिए लॉक-इन पीरियड में भी बदलाव किया है. ऐसे मामलों में इश्यू के बाद के पेड-अप कैपिटल (Post Issue Paid-Up Capital) के 20 फीसदी तक का अलॉटमेंट पाने वाले प्रमोटर्स (Promoters) के लिए लॉक-इन पीरियड को तीन साल से घटाकर 18 महीने कर दिया गया है. इसी तरह जिन प्रमोटर्स के पास 20 फीसदी से ज्यादा अलॉटेड शेयर रहेंगे, उनके लिए लॉक-इन पीरियड अब एक साल के बजाय छह महीने का रहेगा. नॉन-प्रमोटर इन्वेस्टर के लिए अब एक साल की जगह छह महीने का लॉक-इन पीरियड होगा.
पानी की तरह नहीं बहेगा पब्लिक का पैसा
सेबी ने फ्लोर प्राइस (Floor Price) से लेकर आईपीओ से जुटाए गए फंड के इस्तेमाल तक नियमों में बदलाव किया है. अब आईपीओ से मिले पूरे पैसे के खर्च का हिसाब रखा जाएगा. कंपनियां आईपीओ से मिले फंड का 25 फीसदी हिस्सा ही विलय व अधिग्रहण पर खर्च कर पाएंगी. इन बदलावों से उम्मीद की जा रही है कि अब पब्लिक से पैसे जुटाकर कंपनियां मनमाने तरीके से खर्च नहीं कर पाएंगी. रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए निवेश के जोखिम भी अब कम हो जाएंगे.