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कोरोना

अपनी 60% आबादी को कोरोना संक्रमित करना चाहता था ये देश!

aajtak.in
  • 21 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 4:48 PM IST
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कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में ढाई लाख से ज्यादा लोग बीमार हैं. 11,305 लोगों की मौत हो चुकी है. कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लोगों को अस्पताल भेजा जा रहा है. क्वारंटीन हो रहा है. लोग आइसोलेशन में जा रहे हैं. ऐसे में एक देश ऐसा भी है जिसके मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार ने सरकार को ऐसी सलाह दी कि जिससे लोगों के होश उड़ गए. सलाह ये थी कि इस देश की 60 प्रतिशत आबादी को कोरोना से संक्रमित कर दो. इसके बाद सभी संक्रमित लोग कुछ दिन बाद इस वायरस से इम्यून हो जाएंगे. (फोटोः रॉयटर्स)

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इस देश का नाम है यूनाइटेड किंगडम. जिसे आप ब्रिटेन या इंग्लैंड से भी जानते हैं. यूके के अंदर इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड आता है. यूके के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार हैं सर पैट्रिक वॉलेंस (फोटो में). सर पैट्रिक वॉलेंस ने ही यह हैरतअंगेज और डरावनी सलाह दी थी. लेकिन उनकी इस सलाह के पीछे एक बहुत बड़ी मेडिकल प्रक्रिया छिपी थी. इस प्रक्रिया को हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं. यानी किसी बीमारी से झुंड में मुक्ति दिलाई जाए. (फोटोः रॉयटर्स)

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हर्ड इम्यूनिटी मेडिकल साइंस का एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है. इसके तहत देश की आबादी का एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित कर दिया जाता है. ताकि वो इस वायरस से इम्यून हो जाएं. यानी उनके शरीर में वायरस को लेकर एंटीबॉडीज बन जाएं. इससे भविष्य में कभी भी वो वायरस परेशान नहीं करेगा. (फोटोः रॉयटर्स)

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अगर हर्ड इम्यूनिटी की प्रक्रिया को लागू किया जाता तो यूनाइटेड किंगडम की 60 फीसदी आबादी को कोरोना वायरस से संक्रमित किया जाता. इसके बाद जब वे इस बीमारी से इम्यून हो जाते तब उनके शरीर से एंटीबॉडीज निकाल कर इस वायरस के लिए वैक्सीन तैयार किया जाता. फिर इसी वैक्सीन से बाकी लोगों का इलाज किया जाता. (फोटोः रॉयटर्स)

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यूरोप की मीडिया के अनुसार यूनाइटेड किंगडम की सरकार देश की पूरी आबादी के किसी एक हिस्से को कोरोना से संक्रमित कर हर्ड इम्यूनिटी लागू नहीं करना चाहती थी. सरकार चाहती थी कि यह पूरे देश में लागू हो. ताकि, ज्यादा से ज्यादा आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद इम्यून हो जाए. लेकिन बाद में वे अपने इस फैसले से पीछे हट गए. (फोटोः रॉयटर्स)

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हर्ड इम्यूनिटी की प्रक्रिया लागू होने के बाद  पूरे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमण से मुक्त हो जाता. इससे वायरस के फैलाव को रोकने में मदद मिलती. इससे उन्हें फायदा होता जो वायरस के हमले से अब तक बचे हुए हैं. अगर कोई वायरस से संक्रमित हो भी जाता तो इम्यून लोगों की एंटीबॉडीज से बनाई गई वैक्सीन से इलाज हो जाता. (फोटोः रॉयटर्स)

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हर्ड इम्यूनिटी की प्रक्रिया लागू करने से यह भी पता चल जाता कि देश की कितनी बड़ी आबादी इससे प्रभावित हो रही है. साथ ही इस वायरस की फैलने की क्षमता कितनी है. यानी अगर एक व्यक्ति को संक्रमित किया जाता वायरस से तो उस आदमी से और कितने लोग संक्रमित हो रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

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जैसे मीजल्स यानी खसरा से बीमार एक व्यक्ति करीब 12 से 18 लोगों को संक्रमित कर सकता है. इनफ्लूएंजा से पीड़ित आदमी 1 से 4 लोगों को बीमार कर सकता है. ये निर्भर करता है कि मौसम कैसा है, साथ ही वायरस जिस व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है, उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कितनी है. कोरोना वायरस एक आदमी से 2 या 3 लोगों को संक्रमित कर सकता है.  (फोटोः रॉयटर्स)

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वायरस तीन तरीके से बड़ी आबादी को संक्रमित करता है. पहला - वह समुदाय या समूह जो वायरस से इम्यून न हो यानी प्रतिरोधक क्षमता कम हो. दूसरा - ये हो सकता है कि कुछ लोग इम्यून हो लेकिन समुदाय में बाकी लोग इम्यून न हों. तीसरा - पूरे समुदाय को इम्यून कर दिया जाए ताकि जब वायरस फैलने की कोशिश करे तो वह इक्का-दुक्का लोगों को ही संक्रमित कर पाए. (फोटोः रॉयटर्स)

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जी हां, पूरी दुनिया में हर्ड इम्यूनिटी का सबसे बेहतरीन उदाहरण है पोलियो. दुनिया की लगभग पूरी आबादी पोलियो से इम्यून हो चुकी है. पोलियो को रोकने के लिए पूरी दुनिया में अभियान चला क्योंकि इसका वायरस 90 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता था. लेकिन कोरोना की क्षमता 60 फीसदी आबादी की है. इसलिए यूके में 60 फीसदी आबादी को इम्यून करने की बात कही गई थी. (फोटोः रॉयटर्स)

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