इस समय कोरोना को लेकर देश में सबसे बड़ा सवाल ये है कि कितने लोगों को वैक्सीन लगाई जाए कि देश इस महामारी से सुरक्षित रहे. दूसरा सवाल ये है कि क्या दुनिया में मौजूद वैक्सीन लगातार बदल रहे कोरोना वायरस को रोक सकती हैं. एक्सपर्ट्स की माने तो वायरस किसी भी समय वैक्सीनेशन के बाद भी धोखा दे सकता है. यानी वैक्सीन लगने के बाद भी कोरोना वायरस आपको चकमा दे सकता है. आइए जानते हैं कि क्या कहते हैं देश के दिग्गज डॉक्टर्स. (फोटोः गेटी)
पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल एंड एमआरसी के कंसलटेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. लैंसलॉट पिंटो कहते हैं कि फाइजर के ट्रायल में 16 लोगों में न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉ़डीज विकसित हुई हैं, जो किसी भी प्रकार के वायरस से लोगों को बचा सकती हैं. इसमें यूके वैरिएंट से भी बचाव शामिल है. यह बाकी वैक्सीन्स पर भी लागू होता है. लेकिन भविष्य में किस तरह के वैरिएंट आएंगे, उनकी ताकत कितनी होगी, उनका प्रोटीन स्पाइक कितना दुष्प्रभावी होगा, इस पर वैक्सीन कितना असर करेंगी ये कहा नहीं जा सकता. (फोटोः गेटी)
जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की डॉ. माला वी. करेरिया ने कहा कि अगर हर्ड इम्यूनिटी आ भी जाती है तो भी हमें आराम से बैठने की जरूरत नहीं है. अगर म्यूटेंट वायरसों की दूसरी लहर आती है, जो भविष्य में ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं, उनपर वैक्सीन का असर कितना होगा. यह कह पाना मुश्किल है लेकिन मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर मृत्यु दर बढ़ सकती है. डॉ. माला वी. करेरिया ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के वैरिएंट चिंता बढ़ा रहे हैं. (फोटोः गेटी)
डॉ. माला ने कहा कि N501Y (जो ज्यादा संक्रामक है) और E484K म्यूटेशन ये दोनों एंटीबॉडीज को धोखा देने में सक्षम हैं. इसका मतलब ये है कि वैक्सीन की वजह से और प्राकृतिक इम्यूनिटी दोनों ही इन वायरसों के प्रभाव के आगे कमजोर पड़ सकती है. क्योंकि ये दोनों वैरिएंट उन लोगों को भी बीमार कर रही हैं, जो वैक्सीन ले चुके हैं और जो पुराने कोरोना वायरस संक्रमण से रिकवर कर चुके हैं. (फोटोः गेटी)
डॉ. लैंसलॉट पिंटो कहते हैं कि हमें पता है कि एंटीबॉडी शरीर में समय के साथ कम होते जाते हैं. लेकिन जो एंटीबॉडी हमारी कोशिकाओं द्वारा शरीर के अंदर ही बनती हैं, वो कुछ हद तक कोरोना वायरस के नए रूपों से हमें बचा सकती हैं. हमें यह भी पता है कि वायरस म्यूटेट करते हैं, कई बार इनका नया रूप ज्यादा संक्रामक होता है. कई बार ये अपनी ही नई पौध बनाते हैं. ये लगातार खुद को शरीर के अंदर नए रूप में ढालते रहते हैं. इसलिए लगातार निगरानी की जरूरत है. (फोटोः गेटी)
डॉ. लैंसलॉट पिंटो कहते हैं कि हमें लगातार वैक्सीन को विकसित करते रहना पड़ेगा. साथ ही ऐसी वैक्सीन्स बनानी पड़ेंगी जो शरीर में कोरोना वायरस के नए रूपों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती रहें. फिलहाल किसी भी देश के डॉक्टर को यह नहीं पता कि अगर पूरी आबादी के 50-60 फीसदी हिस्से को वैक्सीन दे भी दें तो इससे पूरा देश सुरक्षित रहेगा या नहीं. (फोटोः गेटी)
डॉ. लैंसलॉट पिंटो ने बताया कि हमें अभी कई प्रश्नों के उत्तर नहीं पता. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वायरस कितना म्यूटेट करता है. वह कितनी बार अपना रूप बदलता है. कौन सा रूप कितना खतरनाक या संक्रामक होगा नहीं पता. हमें समय-समय पर ऐसी वैक्सीन लानी होंगी जो म्यूटेशन कर चुके वायरस की वजह से आने वाली लहर को रोक सकें. (फोटोः गेटी)
अगर हम उन लोगों का वैक्सीनेशन कर देते हैं, जो कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील हैं, बीमार हैं, बुजुर्ग हैं. साथ ही साथ पूरी आबादी के 50-60 फीसदी हिस्से को वैक्सीनेट कर दें तो उम्मीद है कि अगली कोरोना लहर उतनी प्रभावी नहीं होगी, जितनी पहली लहर ने परेशान किया है. यह जरूर होगा कि कम लोग संक्रमित होंगे और कम मौतें होंगी. (फोटोः गेटी)