कोरोना काल में लोगों के जीवन जीने का सलीका बदला तो रोजी-रोजगार का तौर-तरीका भी पहले से कहीं ज्यादा चुनौती भरा हो गया. इसकी बानगी धर्म और पर्यटन की नगरी काशी के उन नाविकों की जिंदगी में तब देखने को मिली जब लगभग ठप पड़ चुके नौका संचालन के बाद अब नाविक विसर्जित हो चुकी अस्थियों के साथ प्रवाहित किए गए पैसों और आभूषण के टुकड़ों के लिए गोताखोरी कर रहे हैं.
दरअसल, कोरोना के डर से ना तो काशी के घाटों पर पर्यटक आ रहे हैं और ना ही
श्रद्धालु. जिसके चलते पिछले लगभग साढ़े 3 महीने से भी ज्यादा वक्त से काशी
के 84 घाटों पर नौका संचालन ठप पड़ा हुआ है. लॉकडाउन की मियाद खत्म होने और
नौका संचालन की अनुमति के बावजूद गंगा घाट का रुख कम ही लोगों ने किया.
ऐसे
में हाथों पर हाथ धरकर बैठे रहने से बेहतर नाव चलाने वाले नाविक अपना
ज्यादातर वक्त गंगा में प्रवाहित की जा चुकी अस्थियों को खोजने में लगा रहे
हैं, जिनके साथ कभी कभार उनको चंद सिक्के या छोटे-मोटे आभूषणों के टुकड़े
मिल जाया करते हैं, क्योंकि ये पैसे और आभूषण के टुकड़े अस्थियों के साथ
गंगा में प्रवाहित किए जाते हैं.
नाविक सुरेंद्र साहनी बताते हैं कि
वे वाराणसी के रामनगर से आकर दशाश्वमेध घाट पर नौका चलाते थे, लेकिन
फिलहाल पर्यटक और श्रद्धालु ना के बराबर ही गंगा घाट पर आ रहे हैं. जो कुछ आ
भी रहे हैं, वे नाव की सवारी नहीं करना चाह रहे हैं. उन्होंने बताया कि
गंगा में पहले अस्थि विसर्जन के लिए देश के कोने-कोने से लोग आया करते थे
और दस पांच रुपए अस्थि कलश में डाल दिया करते थे. लेकिन अब उनका भी आना कम
हो गया है.
सुरेंद्र ने बताया कि उनके साथ कुल चार गोताखोर हैं, जो
गोताखोरी करके अस्थियों को ढूंढते हैं. पूरे दिन में वे 4 घंटे गोताखोरी
करके लगभग सौ सवा सौ रुपए ही कमाकर आपस में बांट लेते हैं.
एक अन्य
गोताखोर भोला साहनी बताते हैं कि नाव चलाने में कोई खतरा तो नहीं है, लेकिन
गंगा में बाढ़ के दौरान घंटों गोता लगाते रहने में जान का खतरा बना रहता है
कि कहीं अंदर गहराई में हाथ पैर फंस न जाए. अगर ऐसा होता है तो खतरनाक हो
जाता है. लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए यह खतरा मोल लेते हैं.