कोरोना वायरस पूरी दुनिया में अपने पैर पसार रहा है. कोरोना वायरस की फैलते संक्रमण को रोकने के लिए भारत सरकार और प्रशासन ने खास निर्देश दिए हैं. साथ ही इसे फैलने से रोकने के लिए सरकार देशभर में सतर्कता अभियान चलाकर लोगों में जागरुकता फैला रही है. (Photo-Reuters)
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस के खतरे को कम करने के लिए अपने हाथों को समय-समय पर धोना या हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण कदम है. हालांकि सफर और कार्यस्थल पर बार-बार साबुन से हाथ धोना संभव नहीं पाता है ऐसे में हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल एक बेहतर विकल्प साबित होता है. (Photo-Reuters)
जिसके चलते बाजार में हैंड सैनिटाइज़र की डिमान्ड भी बड़ गई. भारत देश के अलावा कई देशों में इसकी कमी का भी सामना करना पढ़ रहा है. वहीं कुछ लोगों ने ट्विटर पर हैंड सैनिटाइजर का आविष्कार करने वाली महिला का शुक्रिया अदा किया है. (Photo-Reuters)
एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1966 में ल्यूप हरनेंडेज नाम की महिला कैलिफोर्निया के शहर के बेकर्सफील्ड में स्टूडेंस नर्स की तरह काम करती थीं. एक दिन काम के दौरान ल्यूप ने सोचा कि अगर कोई ऐसा तरीका होता कि बिना साबुन और पानी के हाथों को साफ किया जा सके वो भी कीटाणु मुक्त बनाया जा सके. (Photo-Reuters)
इसके पीछे एक मकसद था कि अस्पताल में मरीजों के पास जाने से पहले डॉक्टर्स को पानी और साबून की जरूरत न पड़े. ल्यूप हरनेंडेज ने पाया कि जब उन्होंने शराब को हाथों में लगाया तो वह कीटाणुओं को मारते हुए हवा में उड़ गई. इस प्रकार हैंड सेनिटाइजर की खोज की गई. (Photo-Reuters)
docshultz.com के मुताबिक मूल रूप से इसका उपयोग केवल अस्पताल में किया गया. जब तक कि 1988 में प्योरल और गोजो जैसी कंपनियों ने हैंड सेनिटाइजर का व्यवसायीकरण नहीं कर दिया. कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच हैंड सेनिटाइजर के उपयोग को लोग वारदान की तरह मान रहे हैं. इसके लिए कई लोगों ने ट्वीट कर हैंड सेनिटाइजर बनाने वाली महिला को धन्यवाद बोला है. (Photo-Reuters)