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आज का दिन: किसी देश के नाम पर कोरोना वैरिएंट का नाम रखना उचित है?

‘आजतक रेडियो' के मॉर्निंग न्यूज़ पॉडकास्ट 'आज का दिन' में सुनेंगे क्या किसी देश के नाम पर कोरोना वैरिएंट का नाम रखना उचित है, नदी में बहते शवों से कोरोना और विकराल होकर फैल सकता है क्या और श्मशान-कब्रिस्तान में काम करनेवाले भी फ्रंटलाइन वर्कर्स हैं या नहीं?

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2021,
  • अपडेटेड 8:32 AM IST

आजतक रेडियो पर हम रोज़ लाते हैं देश का पहला मॉर्निंग न्यूज़ पॉडकास्ट ‘आज का दिन’, जहां आप हर सुबह अपने काम की शुरुआत करते हुए सुन सकते हैं आपके काम की ख़बरें और उन पर क्विक एनालिसिस. साथ ही, सुबह के अख़बारों की सुर्ख़ियाँ और आज की तारीख में जो घटा, उसका हिसाब किताब. आगे लिंक भी देंगे लेकिन पहले जान लीजिए कि आज के एपिसोड में हमारे पॉडकास्टर नितिन ठाकुर किन ख़बरों पर बात कर रहे हैं.

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‘इंडियन वैरिएंट’ नाम से ख़फ़ा क्यों सरकार?

कोरोना की सेकेंड वेव के लिए ज़िम्मेदार वायरस के नए-नए वेरिएंट्स से पूरी दुनिया त्रस्त है. मौज़ूदा वक्त में जिस म्यूटेंट नें भारत में कोहराम मचा रखा है उसे B.1.617 वैरिएंट के नाम से जाना जाता है. इसी वैरिएंट को लेकर WHO  ने 32 पेज के डॉक्यूमेंट्स जारी किए जिन्हें आधार बनाकर कुछ न्यूज़ चैनल्स ने B.1.617 वैरिएंट को इंडियन वैरिएंट कहना शुरू कर दिया. किसी देश के नाम पर किसी वैरिएंट का नाम रखना कितना सही है, जिसे इंडियन वैरिएंट कहा जा रहा है वो कहां से आया और भारत सरकार की इस नाम पर आपत्ति के कूटनीतिक मायने क्या हैं इस पर Centre for Cellular & Molecular Biology के डायरेक्टर राकेश मिश्रा और इंटरनेशनल अफेयर्स एक्सपर्ट प्रोफेसर हर्ष पंत जानकारी दे रहे हैं.

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नहर में तैरती लाशों से कोरोना का ख़तरा?

यूपी का गाजीपुर और बिहार का बक्सर पिछले दिनों चर्चा में रहा. यहाँ गंगा नदी में बहती लाशों ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा मगर अब कुछ सवालों की तरफ़ सबका ध्यान गया है. पूछा जा रहा है कि अगर ये शव कोरोना संक्रमितों के हैं तो क्या अब इस पानी में नहाना सेफ़ है, इसे पीना सेफ़ है या जानवर इन नदियों में नहाते हैं तो उनका इसमें जाना सेफ़ है? इस पर विस्तार से इंडिया टुडे के सीनियर एसिस्टेंट एडिटर प्रभाष के दत्ता जवाब दे रहे हैं.

कब्रिस्तान-श्मशान में काम करनेवालों की क्या माँग?

कोरोना महामारी के दौर में हमारी सरकारों ने एक तय तबके को कोविड फ्रंटलाइन वर्कर्स का दर्ज़ा दिया है लेकिन क्या वो लोग भी फ्रंटलाइन वर्कर्स नहीं कहलाए जाने चाहिए जो श्मशान से लेकर क़ब्रिस्तान तक अंतिम संस्कारों में जुटे हैं? ये वही लोग हैं जिन्हें सरकार की तरफ़ से एक पीपीइ किट तक नसीब नहीं लेकिन कोरोना का ख़तरा उठाकर ये लगातार अपने काम में जुटे हैं. आजतक रेडियो रिपोर्टर सुशांत मेहरा दिल्ली के शमशानों और कब्रिस्तानों में पहुंचे और वहां काम कर रहे लोगों से बात की.

इसके अलावा आज के पॉडकास्ट में सुनिए कि आज की तारीख़ में पहले क्या घट चुका है और साथ ही देश-विदेश के अख़बारों की सुर्ख़ियाँ भी, जिन्हें लेकर आए हैं अमन गुप्ता.

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