
पूरी दुनिया में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने फिर दहशत वाला माहौल पैदा कर दिया है. केस भी रिकॉर्ड स्पीड से बढ़ रहे हैं और पाबंदियों का दौर फिर चल पड़ा है. इस बीच टीकाकरण को ही सबसे बड़ा हथियार माना गया है. इसी के दम पर इस महामारी के खिलाफ जीत के सपने देखे जा रहे हैं. कई देशों में तो बच्चों का टीकाकरण भी शुरू हो चुका है.
ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी मुसीबत
इस बीच ऑस्ट्रेलिया के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है. वहां पर काफी पहले से ही बच्चों को वैक्सीन लगना शुरू हो चुका है. 15 से 18 और 12 से 15 वाली उम्र के बच्चों को तो बड़ी तादाद में टीका लगा दिया गया है, लेकिन चुनौती अब उस वर्ग को लेकर है जिसे रविवार से वैक्सीन लगने वाली है. ऑस्ट्रेलिया अब 5 से 11 साल के बच्चों को कोरोना वैक्सीन देने की तैयारी कर रहा है. लेकिन उसके सामने एक चुनौती खड़ी हो गई है. ये चुनौती बच्चे ना होकर वो माता-पिता हैं जो बच्चों को वैक्सीन लगवाने नहीं आ रहे हैं.
इस समय ऑस्ट्रेलिया में कई ऐसे केस सामने आए हैं जहां पर माता-पिता की जिद की वजह से बच्चे वैक्सीन लगवाने से वंचित रह गए हैं. सभी केस में कारण अलग रहे हैं, लेकिन इस ट्रेंड ने वहां के प्रशासन की चिंता को बढ़ा दिया है. कई ऐसे माता-पिता सामने आए हैं जिनकी सभी वैक्सीन को लेकर एक जैसी ही धारणा बनी हुई है.
क्यों डरे हुए हैं माता-पिता?
कोई वैक्सीन को खतरनाक मान रहा है, कोई इसके साइड इफेक्ट से डर रहा है तो किसी को यहां तक लग रहा है कि इस वैक्सीन को बनाने में नुकसानदायक तत्वों का इस्तेमाल किया गया है. कुछ माता-पिता ये भी मानते हैं कि सुरक्षा देने के मामले में वैक्सीन कमजोर साबित हो जाती है. अब ये सारी धारणाएं कोरोना वैक्सीन को लेकर नहीं हैं. बल्कि ये सब कुछ दो दूसरी बीमारी वाली वैक्सीन को लेकर कहा जा रहा है. लेकिन क्योंकि ये धारणाएं इतनी पक्की बन चुकी हैं कि कई लोग अब इन बातों को कोरोना वैक्सीन से भी जोड़कर देख रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया में अभी बच्चों के टीकाकरण के दौरान माता-पिता या फिर गार्जियन के कॉन्सेंट को महत्व दिया गया है. अगर बच्चा 12 से 15 साल के बीच का है तो गार्जियन का कॉन्सेंट भी काम कर जाएगा. लेकिन 5 से 11 साल के बच्चों के लिए माता-पिता का मंजूर होना जरूरी हो जाता है. ऐसा नहीं होने पर वो बच्चे टीकाकरण से वंचित रह सकते हैं.
समाधान क्या निकाला गया?
ऐसे में अब सवाल आता है कि ऐसे माता-पिता को कैसे समझाया जाए. ऐसी परिस्थिति में क्या करना ठीक रहेगा? ऑस्ट्रेलिया में तो इस पूरी प्रक्रिया को तीन भाग में बांट दिया गया है. सबसे पहले माता-पिता को ही खुद को अच्छे से जागरूक करने का मौका दिया जाता है. वे खुद अपनी विश्वनीय साइट पर वैक्सीन को लेकर सारी जानकारी ले सकते हैं. अगर ये नहीं करना हो तो किसी थर्ड पार्टी से सुझाव भी मांगा जा सकता है. लेकिन जब सभी रास्तें बंद हो जाएं, तो फिर आखिर में ऐसे मामलों को कोर्ट ले जाया जाता है.
एक्सपर्ट मानते हैं कि ऐसे मामलों में ज्यादातर कोर्ट की तरफ से वैक्सीन देने वाली पार्टी के पक्ष में फैसला सुनाया जाता है. लेकिन प्रशासन का प्रयास रहता है कि बात यहां तक ना पहुंचे और माता-पिता खुद ही जागरूक होकर अपने बच्चों को टीका लगवाएं.
वैसे अभी तक ऑस्ट्रेलिया में 12 से 15 साल के 80 फीसदी बच्चों को वैक्सीन की पहली डोज मिल चुकी है. वहीं दूसरी डोज भी 73 फीसदी बच्चों को लग गई है. अब सरकार कोशिश कर रही है कि 5 से 11 साल के बच्चों को भी जल्द कोरोना के खिलाफ ये सुरक्षा कवच दे दिया जाए.