
देश की वैक्सीनेशन नीति पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. राज्यों ने वैक्सीन की खरीद पर अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. उनका कहना है कि वैक्सीन केंद्र को ही खरीदनी चाहिए और इसे बांटने के लिए राज्यों को देना चाहिए. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने 11 गैर बीजेपी राज्यों के सीएम को चिट्ठी लिखी है और वैक्सीन की खरीद के लिए केंद्र पर मिलजुल कर दबाव बनाने की बात की. उधर सुप्रीम कोर्ट में भी वैक्सीनेशन नीति पर केंद्र से तीखे सवाल पूछे गए हैं.
केंद्र को सस्ती और राज्यों को महंगी वैक्सीन क्यों? राज्य वैक्सीन की ज़्यादा कीमत आखिर क्यों दें? 18 प्लस के टीके राज्यों के भरोसे क्यों छोड़ दिए? ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन गांवों में कैसे मुमकिन होगा? क्या नीति बनाने वाले ज़मीनी हालत नहीं जानते हैं? ये वो सवाल हैं, जो सरकार की वैक्सीनेशन नीति पर सुप्रीम कोर्ट में उठे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कि आखिर सरकार की वैक्सीनेशन नीति है क्या?
क्योंकि वैक्सीन खरीद के लिए राज्यों को एक दूसरे से कंपटीशन में लगा दिया गया. नगर निगम तक वैक्सीन खरीदने के लिए ग्लोबल टेंडर जारी कर रहे हैं. क्या यही केंद्र की नीति है? केंद्र सिर्फ 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए टीके खरीद रहा है. 45 साल से नीचे की आबादी के लिए टीके क्यों नहीं खरीदे जा रहे हैं.
45 प्लस आबादी के लिए तो केंद्र राज्यों को टीके दे रहा है, लेकिन क्या 18 से 44 साल के लोगों के टीकाकरण को राज्यों के भरोसे छोड़ दिया गया? राज्य अपने लिए वैक्सीन की व्यवस्था कैसे करेंगे. क्या केंद्र ये सुनिश्चित करेगा कि राज्यों को टीका मिल जाएगा और समस्या का समाधान हो जाएगा.
वैक्सीन की कीमत तय करने वाली कोई नीति भी साफ नहीं है. केंद्र को वैक्सीन सस्ती मिल रही है, जबकि वही वैक्सीन राज्य महंगे दाम पर खरीद रहे हैं. पूरे देश में वैक्सीन की एक कीमत होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में वैक्सीन की कीमत और वैक्सीन की खरीद, दोनों पर केंद्र सरकार की नीति और सोच सवालों के कठघरे में खड़ी थी.
सरकार की तरफ सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि पूरी दुनिया वैक्सीन की उपलब्धता के संकट का सामना कर रही है, वैक्सीन बनाने वालों की कमी है, अगर कोर्ट वैक्सीन की कीमत निर्धारण के बारे में भी जांच करेगा, तो इससे सप्लाई में रुकावट आएगी. वैक्सीन की अलग-अलग कीमत वाले सवाल पर केंद्र ने जवाब दिया कि उसने राज्यों और वैक्सीन निर्माताओं से बातचीत की है और इस बात पर राजी किया है कि सबके लिए एक कीमत तय की जाए.
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई में केंद्र ने भरोसा दिलाया और उम्मीद जताई कि 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को इस साल के आखिर तक टीका लगा दिया जाएगा, लेकिन केंद्र के इस जवाब के बाद भी सुप्रीम कोर्ट के सवाल नहीं रुके. क्योंकि वैक्सीनेशन में सिर्फ वैक्सीन की खरीद और उसकी कीमत ही मुद्दा नहीं है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने डिजिटल डिवाइड की बात की और ये पूछा कि इसको देखते हुए क्या इंतज़ाम किए गए. कोविन एप पर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन ग्रामीण इलाके में कैसे व्यावहारिक होगा. सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है लेकिन झारखंड के किसी गांव का मजदूर अगर राजस्थान में है और वहां टीका लगवाना चाहता है तो वो कैसे रजिस्ट्रेशन करवाएगा?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वो ई-कमेटी के चेयरमैन हैं, जो समस्याएं आती हैं, उन्हें जानते हैं, नीति बनाने वालों को लचीला होना चाहिए. ज़मीनी हालात पता होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई में खरी खरी बात हुई. वैक्सीनेशन में ग्रामीण इलाकों पर अब तक ध्यान नहीं है. 75 प्रतिशत वैक्सीनेशन शहरी इलाकों में हुआ है. कोर्ट ने सरकार से उसकी नीति साफ करने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा कि सरकार नीति में सुधार करे. अपनी कमियों को स्वीकार करना मजबूती की निशानी होती है और कोर्ट में ये सुनवाई किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं हो रही है. विदेश मंत्री ज़रूरी चीज़ों के इंतज़ाम के लिए अमेरिका गए थे, इसी से हालात की गंभीरता का पता चलता है, इसलिए अभी ऐसा कोई आदेश पारित नहीं करेंगे जो किसी बातचीत में रुकावट डाले.
(रिपोर्ट- आजतक ब्यूरो)