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बच्चों के लिए वैक्सीन में कितना पीछे है भारत? अमेरिका-कनाडा कैसे निकले आगे, क्यों जरूरी है टीकाकरण

भारत ने एक बड़ा कदम उठाते हुए बच्चों पर को-वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल को मंज़ूरी दी है. भारत में ये ट्रायल दो से 18 साल से बच्चों पर किया जाएगा. ऐसे में अब उम्मीद जगी है कि बच्चों के लिए भी वैक्सीन जल्द उपलब्ध हो सकती है. बच्चों को वैक्सीन देने के मामले में भारत दुनिया में कहां खड़ा है, एक नज़र डाल लीजिए.

बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी (फाइल फोटो: PTI) बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी (फाइल फोटो: PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मई 2021,
  • अपडेटेड 4:06 PM IST
  • भारत में बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू होगा
  • अमेरिका, कनाडा जैसे देश जल्द शुरू करेंगे टीकाकरण

कोई भी काम करना हो, जब पूरी दुनिया आगे निकल जाती है तब हमारे यहां हलचल होती है. बच्चों की वैक्सीन पर भी यही हुआ है. अमेरिका और कनाडा में जब ट्रायल के बाद 12 से 15 साल के बच्चों के लिए फाइज़र की वैक्सीन को मंज़ूरी मिल गई और जब वहां पर वैक्सीनेशन भी शुरू होने वाला है. तब भारत में बच्चों की वैक्सीन के ट्रायल में तेज़ी आई है. 

भारत ने एक बड़ा कदम उठाते हुए बच्चों पर को-वैक्सीन के दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल को मंज़ूरी दी है. भारत में ये ट्रायल दो से 18 साल से बच्चों पर किया जाएगा. ऐसे में अब उम्मीद जगी है कि बच्चों के लिए भी वैक्सीन जल्द उपलब्ध हो सकती है. कोरोना की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई है, उससे हर कोई हिला हुआ है. अब तीसरी लहर में बच्चों पर संकट आ सकता है, ऐसे में चिंता और भी बढ़ने लगी है. 

भारत में को-वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी मिली है. जिसके बाद अब क्लीनिकल ट्रायल 2 से 18 साल के 525 बच्चों पर दिल्ली, पटना, नागपुर सहित देश के अलग-अलग अस्पतालों में किया जाएगा. इसके अलावा वैक्सीन के फेज़ 3 का ट्रायल शुरू करने से पहले भारत बायटेक को फेज़ 2 के ट्रायल का पूरा डाटा उपलब्ध करना होगा.

बता दें कि ये बच्चों के लिए कोई अलग वैक्सीन नहीं है, ये भारत बायोटेक की वही को-वैक्सीन है, जो अभी कोविशील्ड के साथ-साथ भारत के टीकाकरण अभियान में इस्तेमाल की जा रही है. कंपनी जनवरी से ही बच्चों पर ट्रायल चलाने की कोशिश में जुटी हुई थी. 

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कैसे बच्चों को टीकाकरण करने में आगे निकली दुनिया?

पिछले कुछ दिनों में अमेरिका और कनाडा में 12 से 15 साल के बच्चों के टीकाकरण के लिए फाइज़र की वैक्सीन को मंज़ूरी मिली है. क्योंकि ट्रायल में ये वैक्सीन बच्चों पर उतनी ही प्रभावी बताई गई, जितना प्रभावी ये किसी दूसरे पर है. वहां तो 12 से 15 साल के बच्चों का वैक्सीनेशन भी शुरू होने वाला है, वहीं पूरी दुनिया में बच्चों की वैक्सीन पर तेज़ी से काम हो रहा है.

ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका 6 साल से 17 साल के बच्चों पर ट्रायल कर रही है. एस्ट्राजेनेका की ही वैक्सीन कोविशील्ड के नाम से भारत में लगाई जा रही है. अमेरिका में फाइज़र और मॉडर्ना जैसी कंपनियां छह महीने से 11 साल के बच्चों पर अपनी वैक्सीन के प्रभाव का अध्ययन करने में जुटे हैं. फाइज़र की सहयोगी कंपनी जर्मनी की बायोएनटेक का कहना है कि वो यूरोप के देशों में 12 से 15 साल के बच्चों के लिए जून में वैक्सीन लॉन्च कर देगी. 

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अमेरिका में जॉनसन एंड जॉनसन और नोवावैक्स जैसे कंपनियां भी अपनी-अपनी वैक्सीन के बच्चों पर ट्रायल की शुरुआत कर चुकी हैं. कनाडा में फाइज़र ने 2 से 5 साल के बच्चों पर भी वैक्सीन का ट्रायल शुरू किया है और उसका दावा है कि इसके अच्छे नतीजे मिल रहे हैं. 

कोरोना के खतरे के बीच एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि बच्चों में रिकवरी रेट बहुत अच्छा है. 100 बच्चों में दो या तीन बच्चे ही ऐसे हैं, जो संक्रमण के बाद सीरियस होते हैं. लेकिन भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में ये आंकड़ा भी बहुत ज़्यादा है. इसलिए ज़रूरी ये है कि जल्द से जल्द बच्चों के लिए वैक्सीन लाई जाए.

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बच्चों के लिए वैक्सीन लगना क्यों ज़रूरी है?
ये समझना बहुत ज़रूरी है कि कुल आबादी में कम से कम 70 से 85 प्रतिशत लोगों को टीका लगाए बिना कोरोना से लड़ा नहीं जा सकता. जब तक ज़्यादा से ज़्यादा आबादी को वैक्सीन नहीं लगेगी, तब तक कोरोना की एक के बाद एक लहरें आती रहेंगी और इसीलिए वैक्सीनेशन से बच्चों को अलग नहीं रखा जा सकता.

इसे अमेरिका जैसे देश से समझना चाहिए. जहां जुलाई तक 70 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने का टारगेट है. वहां अब युवा आबादी और 18 साल से कम उम्र की आबादी को टीका लगाना सबसे बड़ा मिशन बना लिया गया है. अमेरिका में टीकाकरण के लिए फ्री आइसक्रीम और वैक्सीनेशन सेंटर तक फ्री राइड के ऑफर दिए गए हैं, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा लोग टीका लगवाएं.

भारत जैसे देश में तो 18 साल से कम उम्र की आबादी 30 प्रतिशत है. अगर इनका जल्द से जल्द वैक्सीनेशन नहीं होगा तो कोरोना को कंट्रोल करना मुश्किल होगा और बिना वैक्सीनेशन बच्चों पर खतरा भी ज़्यादा होगा.

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बच्चों पर कैसे असर डाल रहा है कोरोना?
भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार डबल म्यूटैंट ने बच्चों को भी प्रभावित किया. जब तीसरी लहर आएगी तो सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ने की आशंका है. खतरा कितना गंभीर है इसे महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े से समझा जा सकता है. अप्रैल में महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने कहा था कि बीते 30 दिनों में बच्चों में 51% संक्रमण बढ़ा है. 

बच्चों के लिए कोरोना ज्यादा खतरनाक कैसे हो रहा है, इसे अमेरिका के आंकड़े से भी देखा जा सकता है. साल भर पहले अमेरिका के कोरोना मामलों में सिर्फ 3% बच्चे थे लेकिन 29 अप्रैल को 7 दिनों के औसत में 22.4% बच्चे थे.

इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक अब तक 10 साल से कम उम्र के 7 लाख 69 हजार बच्चे भारत में कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं जबकि भारत में 11 से 20 साल के कोरोना प्रभावितों की संख्या तकरीबन 20 लाख है.

UNICEF ने मार्च में एक रिपोर्ट दी थी जिसके मुताबिक कोरोना से 5 साल से छोटे बच्चों की मौत सबसे ज्यादा भारत में हुई. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 1 मार्च से 4 अप्रैल के बीच भारत के 5 सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में बच्चों की तादाद 79 हज़ार 688 थी, ये सारे आंकड़े बच्चों को लेकर रेड अलर्ट कर रहे हैं.

अब जब भारत में बच्चों के लिए को-वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो रहा है, ऐसे में उम्मीद है कि जल्द ही इसमें सफलता मिलेगी. मौजूदा वक्त में तो भारत 18 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को ही टीका लगाने में जूझ रहा है, क्योंकि डिमांड बढ़ते ही देश में वैक्सीन की किल्लत शुरू हो गई है. 

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(रिपोर्ट: आजतक ब्यूरो) 


 

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