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कोरोना फैलने से रोकने के लिए कितने लोगों का टीकाकरण जरूरी है?

यूनाइटेड किंगडम कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है और इसी के साथ ये होड़ और भी तेज हो गई है. लेकिन महत्वपूर्ण सवाल ये है कि महामारी को नियंत्रित करने के लिए कितने लोगों का टीकाकरण किया जाना चाहिए?

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 3:35 PM IST

कोविड-19 वैक्सीन की होड़ मानव जाति के इतिहास में अभूतपूर्व है. यूनाइटेड किंगडम कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है और इसी के साथ ये होड़ और भी तेज हो गई है. लेकिन महत्वपूर्ण सवाल ये है कि महामारी को नियंत्रित करने के लिए कितने लोगों का टीकाकरण (vaccination) किया जाना चाहिए?

बाकी देशों की तरह भारत भी वैक्सीन वितरण के लिए अपनी रणनीति बना रहा है. भारत के स्वास्थ्य निकाय इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने हाल ही में कहा कि कोरोना वैक्सीन के जरिये पूरी आबादी का टीकाकरण जरूरी नहीं है क्योंकि वायरल ट्रांसमिशन की चेन को तोड़ने के लिए एक निश्चित संख्या में लोगों का टीकाकरण पर्याप्त हो सकता है.

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लेकिन रुकिए. जंगल की आग के बारे में कल्पना कीजिए. आग की चपेट में आने वाले हर एक पेड़ को बचाना असंभव हो सकता है, लेकिन ये संभव है कि आग को और ज्यादा फैलने से रोक दिया जाए. हमें आग को फैलने से रोकने के लिए हर एक पेड़ को बुझाने की जरूरत नहीं होती. इसी तरह, किसी टीकाकरण अभियान में कई व्यक्ति छूट सकते हैं, लेकिन एक निश्चित संख्या का टीकाकरण करने से बड़े समुदाय में वायरस के प्रसार में कमी आएगी. टीका लगवाने वाले हर व्यक्ति को निजी तौर पर सुरक्षा मिलती है, लेकिन टीका लगवा चुके सभी लोग मिलकर बड़े स्तर पर पूरी आबादी को सुरक्षा देते हैं, जिसे हर्ड इम्युनिटी (herd immunity) कहा जाता है.

जब किसी आबादी में एक बड़े हिस्से का टीकाकरण कर दिया जाता है और वे संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेते हैं तो उनकी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता समाज के उन सदस्यों की भी रक्षा करती है जिनमें प्रतिरोधक क्षमता नहीं है. इसे हर्ड इम्युनिटी या पॉपुलेशन इम्युनिटी कहा जाता है. 

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इस मुद्दे को समझने के लिए एक छोटी सी कहानी देखें:

सोचिए कि मशहूर बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स की तिकड़ी कोरोना के समय में है. रैंचो बाहर निकलता है और कोरोना संक्रमित हो जाता है. वह बिना मास्क पहने राजू से मिलता है और वह भी संक्रमित हो जाता है. फरहान राजू से दूरी नहीं बनाता और संक्रमण के चेन की तीसरी कड़ी बन जाता है. उन तीनों में से कोई एक इंपीरियल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में संक्रमण फैलने की वजह बन सकता है. ज्यादातर छात्र ठीक हो जाते हैं लेकिन कॉलेज डायरेक्टर, फिल्म में जिसका नाम 'वायरस' है, वह रिकवर नहीं कर पाता.

अब अगर हमारे पास सिर्फ एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त टीका होता तो रैंचो को टीका लगाने से उसे तो सुरक्षा मिलती ही, पूरे कॉलेज में हुए ट्रांसमिशनप को रोका जा सकता था. अगर हम कई छात्रों और शिक्षकों का टीकाकरण कर देते हैं, तो कुछ छात्रों को टीका नहीं लगने पर भी पूरे वायरस कॉलेज में नहीं फैलेगा. जिन्हें टीका लगा है, अगर ऐसे लोगों की संख्या पर्याप्त है तो प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमण की चेन को तोड़ देंगे और वायरस का फैलना रुक जाएगा.

कोरोना वायरस का फैलाव
R0 (आर नॉट) यानी प्रसार दर संक्रमण की उस संख्या का प्रतिनिधित्व करती है जो एक संक्रमित व्यक्ति से शुरू होकर पूरी आबादी में फैलती है. R0 अगर 1 से ज्यादा है तो संक्रमण बढ़ता रहेगा. इसके उलट, R0 अगर 1 से कम है तो संक्रमण का फैलाव कम होता जाएगा. समय के साथ तमाम लोग या तो संक्रमण की वजह से या टीकाकरण के बाद प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर सकते हैं. इसके अलावा, अगर लोग सावधानियां बरतें तो एक व्यक्ति से तमाम लोगों में फैलने वाले संक्रमण की संख्या को कम किया जा सकता है.

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जिस सीमा पर जाकर वायरस का फैलाव बाधित होता है उसे हर्ड इम्युनिटी सीमा (herd immunity threshold-HIT) कहा जाता है. कोरोना के लिए ये सीमा 60 फीसदी मानी जा रही है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वायरस 60 फीसदी तक जनसंख्या में फैलना बंद कर देगा. जैसे आप कार चला रहे हैं और अचानक ब्रेक लगाते हैं तो कार धीमी हो जाती है, लेकिन तुरंत नहीं रुकती. इसी तरह, वायरस बहुत तेजी से फैलता है तो हर्ड इम्युनिटी सीमा पर इसका फैलाव धीमा हो जाता है लेकिन ये 70 या 80 फीसदी तक जा सकता है. 

हर्ड इम्युनिटी की सीमा तक पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि महामारी खत्म हो जाएगी, बल्कि खास परिस्थितियों में ये धीमी हो सकती है लेकिन संक्रमण अब भी कुछ लोगों में फैलता रहेगा. अगर संक्रमण या टीकाकरण से 60 फीसदी जनसंख्या इम्यून हो जाती है और प्रसार दर 1 से नीचे आ जाती है तब भी कुछ संवेदनशील लोग वायरस से संक्रमित होते रहेंगे. लॉकडाउन के दौरान 1 से नीचे आई प्रसार दर लॉकडाउन के खुलते ही बढ़ सकती है. इससे ये अंदाजा लगाने में मुश्किल आती है कि महामारी को रोकने के लिए वैक्सीन कवरेज कितना होना चाहिए.

 
वैक्सीन कवरेज का गणित 

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वैक्सीन सभी को नहीं मिलेगी, वैक्सीन 100 फीसदी प्रभावी नहीं हैं और पहले से संक्रमित और रिकवर होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसलिए वैक्सीन कवरेज को समझने के लिए इसका मुश्किल गणित समझने की जरूरत है. सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों के बिना चल रही महामारी को खत्म करने के लिए वैक्सीन को कम से कम 80 फीसदी प्रभावी होना चाहिए और कम से कम 75 फीसदी लोगों का टीकाकरण होना चाहिए. लेकिन 60 फीसदी प्रभाव दर के साथ इसे 100 फीसदी कवरेज की जरूरत हो सकती है.

जैसे जैसे संक्रमित आबादी की संख्या बढ़ती है, महामारी को प्रभावित करने की वैक्सीन की क्षमता और महामारी का पीक कम होता जाता है. एक बार अगर 30 फीसदी आबादी संक्रमित हो गई तो हम महामारी के लगभग चरम पर पहुंच जाएंगे और महामारी पर वैक्सीन का प्रभाव कम हो जाएगा.

हमें एक प्रभावी वैक्सीन और एक बड़ी आबादी के टीकाकरण की जरूरत है लेकिन अधिकतम प्रभाव डालने के लिए ये काम बहुत जल्दी करना होगा. अगर वैक्सीन को मास टेस्टिंग, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे अन्य उपायों के साथ जोड़ें तो हो सकता है कि कम लोगों को टीका लगाना पड़े. ये सारे उपाय एक साथ किए जाएं तो बिना 100 फीसदी वैक्सीन कवरेज के भी महामारी को समाप्त कर सकते हैं. 

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महामारी का पहला केस दर्ज होने के ठीक एक साल बाद ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को मंजूरी दे दी है. वैक्सीन बनाने में उल्लेखनीय वैज्ञानिक सफलता के साथ कई वैक्सीन विकसित की गई हैं और कुछ विशेषज्ञों ने सही फरमाया है कि वैक्सीन की खोज का कोई मतलब नहीं है अगर इसका वितरण सही ढंग से न हो पाए. 

वैक्सीन आने के बाद सरकार की योजना है कि करीब 25-30 करोड़ की आबादी का टीकाकरण किया जाए जिसमें हेल्थ वर्कर और फ्रंटलाइन कार्यकर्ता, बुजुर्ग और सह-रुग्णता वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी.

हर ​वैक्सीन की इम्युनिटी अलग

हर वैक्सीन एक ही तरह की प्रतिरोधक क्षमता पैदा नहीं करती. कुछ वैक्सीन किसी को बहुत बीमार होने या मरने से बचा सकती हैं, लेकिन हल्के या बिना लक्षण वाले संक्रमण को नहीं रोक सकतीं. टीका लगने के बाद किसी व्यक्ति को कुछ हद तक सुरक्षा मिलेगी, लेकिन फिर भी वह दूसरों को संक्रमित कर सकता है. दूसरी वैक्सनी युवा लोगों में संक्रमण और मौतें रोक सकती हैं, लेकिन बुजुर्गों को मौत के खतरे से नहीं बचा सकतीं. कुछ वैक्सीन वायरस को पूरी तरह या आंशिक रूप से रोक कर संक्रामकता को कम कर सकती हैं.

अन्य देशों की तुलना में भारतीय आबादी में वैक्सीन का प्रभाव अलग हो सकता है. हालांकि, हम सतर्क रूप से आशावादी हो सकते हैं कि कोरोना वैक्सीन की मदद से संक्रमण रुकेगा, लेकिन अभी ऐसा होने में काफी वक्त है. किन्हें टीका लगाने की जरूरत है और किन्हें हमने टीकाकरण के लिए चुना है, यह इस पर भी निर्भर करेगा कि वैक्सीन किस तरह की क्षमता प्रदान करती है.

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अंत नाजुक है, सतर्क रहें

महामारी को रोकने के लिए वैक्सीन कवरेज कितना होना चाहिए, इसका पुख्ता जवाब दे पाना मुश्किल है. लेकिन हमें कितने लोगों का टीकाकरण करना चाहिए, इसका आसान सा जवाब है कि जितना संभव हो और जितनी जल्दी हो सके. हमने असंभव वक्त में असंभव वैक्सीन की खोज की है, अब हमें इसे बड़ी आबादी तक पहुंचाने की जरूरत है.

दुनिया के प्रमुख संक्रामक रोग विशेषज्ञों में से एक डॉ एंथनी फॉसी ने कहा, “वैक्सीन को इस रूप में न लें कि सावधानी को हवा में उड़ा दें. यह ऐसा होगा कि युद्ध खत्म होने वाला था कि आखिरी सैनिक भी मारा गया. आप वह व्यक्ति नहीं बनना चाहते.”


(इस आर्टिकल के लेखक डॉ स्वप्निल पारिख कोविड-19 क्लिनिकल रिसर्चर और 'द कोरोनावायरस: व्हाट यू नीड टू नो अबाउट द ग्लोबल पें​डेमिक' के राइटर हैं.)

 

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