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चीन में फैले कोरोना वैरिएंट की जांच के लिए भारत में क्या है व्यवस्था? कैसे होती है जीनोम सिक्वेंसिंग

चीन में कोरोना से तबाही जारी है. वहां ओमिक्रॉन का BF.7 वैरिएंट मामले बढ़ा रहा है. भारत में भी इस वैरिएंट के चार मामले सामने आ चुके हैं. सरकार ने वैरिएंट की पहचान करने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग बढ़ाने को कहा है. जानें- जीनोम सिक्वेंसिंग से वैरिएंट का पता कैसे चलता है और भारत में इसकी क्या व्यवस्था है?

भारत में जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए 70 से ज्यादा लैब हैं. (फाइल फोटो-PTI) भारत में जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए 70 से ज्यादा लैब हैं. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:33 PM IST

कोरोना एक बार फिर लौट रहा है. अपने नए रूप के साथ. यानी, नए वैरिएंट के साथ. चीन में कोरोना से जो तबाही मच रही है, उसकी वजह ओमिक्रॉन का BF.7 वैरिएंट है. ये वैरिएंट बहुत ज्यादा संक्रामक है. इतना कि एक संक्रमित व्यक्ति 18 लोगों को संक्रमित कर सकता है.

BF.7 सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि अमेरिका और जापान जैसे देशों में भी आ चुका है. भारत में भी इसके चार मामले आ चुके हैं. अक्टूबर महीने में गुजरात में BF.7 का पहला मामला ट्रेस किया गया था. अब तक गुजरात में दो और ओडिशा में एक मामला सामने आ चुका है.

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इस वैरिएंट ने चिंता बढ़ा दी है. फिर से नई लहर का खतरा बढ़ गया है. केंद्र सरकार भी अलर्ट मोड पर है. बैठक पर बैठक हो रही है. केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वो सभी पॉजिटिव मामलों की जीनोम सिक्वेंसिंग करें ताकि वैरिएंट को ट्रैक किया जा सके. 

इसी साल जून में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक गाइडलाइन जारी की थी. ये नई गाइडलाइन इसलिए जारी की गई थी ताकि नए वैरिएंट की जल्द से जल्द पहचान की जा सके और संक्रमण को फैलने से रोका जा सके. इसमें कहा गया था कि विदेश से आने वाले कम से कम 2% यात्रियों की रैंडम सैम्पलिंग की जाए और सभी पॉजिटिव केसेस को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजा जाए. इसके अलावा अगर किसी जगह पर मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, तो वहां के सैम्पल की भी जीनोम सिक्वेंसिंग की जाए.

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कितने सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग कर सकता है भारत?

जीनोम सिक्वेंसिंग से ही वायरस के म्यूटेट होने और नए वैरिएंट का पता चलता है. भारत में कोरोना के मामलों की जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए इंडियन सार्स-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्शियम यानी INSACOG है. 

इसी साल 1 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोकसभा में बताया था कि INSACOG के तहत देशभर में 52 सरकारी लैब हैं, जहां जीनोम सिक्वेंसिंग होती है. इनके अलावा 7 राज्यों में 20 प्राइवेट लैब्स भी हैं जो जीनोम सिक्वेंसिंग करतीं हैं. इनमें कर्नाटक, तमिलनाडु और दिल्ली में 4-4, गुजरात और महाराष्ट्र में 3-3, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में एक-एक लैब है.

सरकार का दावा है कि INSACOG की लैब में हर महीने 60 हजार सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग हो सकती है. हालांकि, इन लैब्स में कभी इतनी जीनोम सिक्वेंसिंग हुई नहीं है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद में इस बात की जानकारी भी दी थी कि हर महीने कितने सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग की गई. कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर के वक्त भी काफी कम जीनोम सिक्वेंसिंग हुई थी. दूसरी लहर के वक्त जनवरी से जून 2021 के लगभग 50 हजार सैम्पल की ही जीनोम सिक्वेंसिंग हुई थी. 

वहीं, पिछले साल नवंबर में ही ओमिक्रॉन का पता चल गया था. इस दौरान नवंबर 2021 में 10 हजार से भी कम सैम्पल की जांच हुई थी. दिसंबर से फरवरी तक तीन महीनों में 86 हजार से ज्यादा सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग की गई थी.

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क्या भारत के लिए ये चिंता की बात है?

केंद्र सरकार ने जीनोम सिक्वेंसिंग बढ़ाने को कहा है. महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात और दिल्ली समेत कई राज्यों ने भी जीनोम सिक्वेंसिंग में तेजी लाने को कह दिया है. लेकिन भारत में अभी इतनी ज्यादा लैब्स नहीं हैं कि बड़े पैमाने पर जीनोम सिक्वेंसिंग की जा सके.

दूसरी बात ये कि जीनोम सिक्वेंसिंग की रिपोर्ट आने में भी काफी समय लगता है. वायरस के म्यूटेशन या वैरिएंट की पहचान करने में हफ्तों लग जाता है. 

इससे वैरिएंट का पता कैसे लगता है?

हमारी कोशिकाओं के अंदर जेनेटिक मटैरियल यानी आनुवंशिक पदार्थ होता है. इसे DNA और RNA कहते हैं. इन्हें ही जीनोम कहा जाता है. 

एक जीन की तय जगह और दो जीन के बीच की दूरी और उसके आंतरिक हिस्सों के व्यवहार और उसकी दूरी को समझने के लिए कई तरीकों से जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) या जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है. इससे पता चलता है कि जीनोम में किस तरह के बदलाव आए हैं.

जीनोम में एक पीढ़ी से जुड़ें गुणों और खासियतों को अगली पीढ़ी में भेजने की काबिलियत होती है. इसलिए आपने सुना होगा कि अलग-अलग वैरिएंट मिलकर नया कोरोना वैरिएंट बना रहे हैं. यानी इनके अंदर पुरानी पीढ़ी के जीनोम और नए बने वैरिएंट की खासियत होगी. 

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जीनोम सिक्वेंसिंग में DNA या RNA के अंदर मौजूद न्यूक्लियोटाइड के लयबद्ध क्रम का पता लगाया जाता है. इसके तहत मौजूद चार तत्वों यानी एडानिन (A), गुआनिन (G), साइटोसिन (C) और थायमिन (T) की सीरीज का पता लगाया जाता है. ताकि इनमें आने वाले बदलाव से यह पता चल सके कि कौन सी बीमारी का वायरस या बैक्टीरिया कितना नुकसानदेह हो सकता है.

सरल भाषा में अगर कहें तो जीनोम सिक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडेटा होता है. कोई वायरस कैसा है, किस तरह का दिखता है. इसकी जानकारी जीनोम से मिलती है.

आखिर में बात BF.7 की...

BF.7 ओमिक्रॉन के BA.5 का ही सब-लाइनेज है. ये भी बहुत संक्रामक है. चीन के ज्यादातर शहरों में BA.5.2 और BF.7 ही डोमिनेट कर रहे हैं और इस वजह से संक्रमण तेजी से फैल रहा है. BA.5.2 के मामले तो भारत में भी सामने आ चुके हैं.

BF.7 का RO यानी रिप्रोडक्शन नंबर तो 10 से 18 के बीच का है. इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई व्यक्ति BF.7 से संक्रमित होता है तो वो 10 से 18 लोगों को भी संक्रमित कर सकता है.

चिंता की बात एक ये भी है कि ज्यादातर संक्रमितों में कोई लक्षण भी नहीं दिखता है. इस वजह से अनजाने में ये संक्रमण और तेजी से दूसरों में फैलने का खतरा है.

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सबसे ज्यादा चिंता बढ़ाने वाली बात ये है कि ये वैक्सीन और नैचुरल तरीके से बनी इम्युनिटी को भी चकमा दे सकता है. यानी, आप भले ही पूरी तरह वैक्सीनेटेड हों या बूस्टर डोज ले चुके हों या फिर पहले कोरोना से संक्रमित हो चुके हों, तब भी इससे आप फिर से संक्रमित हो सकते हैं.

 

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