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क्या भारत में कोरोना रिकवरी रेट सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी है? ये बोले एक्सपर्ट

सात दिनों के रोलिंग एवरेज से पता चलता है कि भारत में पिछले एक हफ्ते में हर दिन औसतन 34,000 से ज्यादा नए केस जुड़ रहे हैं. इसके उलट, रिकवरी का सात-दिवसीय रोलिंग एवरेज 21,000 से कम है. इसका मतलब यह है कि रोजाना जुड़ने वाले नए केसों की संख्या, रोजाना ठीक होने वालों की संख्या से ज्यादा रही.

भारत में  पिछले एक हफ्ते में हर दिन औसतन 34,000 से ज्यादा नए केस जुड़ रहे (फोटो-PTI) भारत में पिछले एक हफ्ते में हर दिन औसतन 34,000 से ज्यादा नए केस जुड़ रहे (फोटो-PTI)
निखिल रामपाल
  • नई दिल्ली,
  • 21 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:13 PM IST

  • मई के अंत तक नए केसों की संख्या, रिकवरी की तुलना में दोगुना थी
  • जितने को अस्पताल से छुट्टी मिल रही, उससे ज्यादा नए केस मिल रहे

पिछले हफ्ते देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि भारत में कोरोना वायरस का रिकवरी रेट 63 फीसदी है और जितने एक्टिव केस हैं, उसकी तुलना में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या दोगुना है. हालांकि, तब से भारत में दैनिक नए केसों की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है.

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इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने दैनिक नए केस और रिकवरी यानी मरीजों के ठीक होने की संख्या का विश्लेषण किया. हमने पाया कि हर दिन जितनी संख्या में लोगों को अस्पताल से छुट्टी दी जा रही है, उससे कहीं ज्यादा कोरोना केस दर्ज हो रहे हैं और ये अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में रिकवरी रेट के आंकड़े मात्र छलावा हैं?

सात दिनों के रोलिंग एवरेज से पता चलता है कि भारत में पिछले एक हफ्ते में हर दिन औसतन 34,000 से ज्यादा नए केस जुड़ रहे हैं. इसके उलट, रिकवरी का सात-दिवसीय रोलिंग एवरेज 21,000 से कम है. इसका मतलब यह है कि रोजाना जुड़ने वाले नए केसों की संख्या, रोजाना ठीक होने वालों की संख्या से ज्यादा रही. हर दिन जुड़ने वाले नए केसों की संख्या रिकवरी के मुकाबले 63 फीसदी ज्यादा है.

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ट्रेंड्स से पता चलता है कि यह अंतर और बढ़ा है. मई के अंत तक रोजाना नए केसों की संख्या, रिकवरी की तुलना में दोगुना थी. 21 जून तक स्थिति में कुछ सुधार आया, जब रिकवरी की तुलना में नए केस की संख्या 37 फीसदी रह गई. लेकिन इसके बाद से यह अंतर बढ़ने लगा और 20 जुलाई को डेली रिकवरी की तुलना में 63 फीसदी ज्यादा नए केस दर्ज हुए.

क्षेत्रीय विषमता

लगभग सभी बड़े राज्यों में रोजाना नए केस और रोजाना रिकवरी के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है. केरल पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है.

केरल में नए केसों की औसत संख्या, रिकवरी की औसत संख्या से कम से कम तीन गुना ज्यादा रही. यहां कोरोना केसों की संख्या 10 दिन में दोगुनी हो रही है, जबकि रिकवरी संख्या दोगुना होने में 17 दिन का समय लग रहा है.

केरल के स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा कि राज्य में जितने कोरोना क्लस्टर हैं, उनमें से 50 फीसदी में सामुदायिक संक्रमण हुआ है.

केरल उन राज्यों में से है जिसने सबसे पहले कोरोना नियंत्रित किया था. लेकिन करीब पांच लाख लोगों के विदेश से लौटने के बाद केरल कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से निपट रहा है.

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केरल का पड़ोसी राज्य कर्नाटक भी ऐसी ही परेशानी से गुजर रहा है. 19 जुलाई तक कर्नाटक में हर दिन औसतन रिकवरी संख्या 1,100 से कुछ कम थी. इस दौरान तक रोज नए केसों की संख्या औसतन 3,500 थी, यानी नए केस रिकवरी से करीब तीन गुना ज्यादा थे. राज्य के करीब आधे केस और मौतें राजधानी बेंगलुरु में ही दर्ज हुए हैं.

आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कुछ अन्य राज्य हैं, जहां रोजाना नए केसों की संख्या रिकवरी से कम से कम दोगुना ज्यादा है.

तमिलनाडु में रिकवरी की तुलना में रोजाना 13 फीसदी नए केस आ रहे हैं. इसी तरह ओडिशा में 17 फीसदी, गुजरात में 20 फीसदी, असम में 23 फीसदी, हरियाणा में 27 फीसदी और राजस्थान में 45 फीसदी ज्यादा नए केस आ रहे हैं. महाराष्ट्र सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है जहां हर दिन की रिकवरी की तुलना में 60 प्रतिशत से ज्यादा नए केस दर्ज हुए हैं.

दिल्ली के आंकड़े सबसे अलग

दिल्ली अकेला ऐसा राज्य है जहां हर दिन रिकवर होने वालों की संख्या रोजाना नए केसों से ज्यादा रही. हालांकि, दिल्ली के आंकड़ों में सावधानी बरतने की जरूरत है.

दिल्ली सरकार ज्यादातर तत्काल संपन्न होने वाला एंटीजन टेस्ट करवा रही है. इसमें संभावना रहती है कि जो रिपोर्ट निगेटिव आई है, वह सही नहीं हो. एंटीजन टेस्ट का जो रिजल्ट निगेटिव आता है, उसकी फिर से तस्दीक करने की जरूरत होती है. दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार ने बयान दिया है कि एंटीजन टेस्ट के 1,365 निगेटिव रिजल्ट वालों का फिर से टेस्ट किया गया. इनमें हर पांच सैंपल में से एक पॉजिटिव आया.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की रिकवरी रेट संपूर्णता में हमें सही तस्वीर नहीं दिखाती.

अशोका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स और बायोलॉजी पढ़ाने वाले प्रोफेसर गौतम मेनन कहते हैं, “लॉकडाउन खत्म करने और नए केसों की संख्या में वृद्धि के बीच एक अंतराल है, क्योंकि लोगों के बीच संपर्क बढ़ने का परिणाम 5-7 दिनों के बाद ही सामने आता है जब रोग के लक्षण दिखने लगते हैं. इसी तरह केसों और मौतों के बीच भी एक अंतराल है. अगर आज किसी की मौत हुई है तो इसका मतलब है कि उसे 2-3 हफ्ते पहले से संक्रमण हो सकता है.”

आईएमएससी चेन्नई में संक्रामक रोगों पर काम करने वाले प्रोफेसर मेनन कहते हैं, “लॉकडाउन विभिन्न जगहों पर अलग-अलग समय लागू हुआ और हटाया गया. कहीं-कहीं आंशिक ढील दी गई. इसका मतल​ब है कि केसों में वृद्धि, रिकवरी और मृत्यु दर के बीच सीधा संबंध स्थापित करना बहुत सार्थक नहीं है. वह भी तब जब महामारी फैल रही हो.”

उन्होंने यह भी कहा कि हाल में रोजाना नए केस में जो बढ़ोतरी हुई है, आने वाले हफ्तों में रिकवरी रेट और मृत्यु दर पर इसका असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, “पिछले कुछ हफ्तों में केस काफी तेजी से बढ़े हैं. आने वाले हफ्तों में यह बढ़ी हुई मृत्यु दर के रूप में दिखेगा. कुछ समय के लिए रिकवरी रेट में गिरावट की उम्मीद करनी चाहिए, क्योंकि जो नए केस अभी दर्ज हुए हैं, उनमें से ज्यादातर को रिकवर होने में समय लगेगा.”

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पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर गिरिधर आर बाबू कहते हैं, “रिकवरी रेट दरअसल ज्यादा महत्व नहीं रखती, क्योंकि वास्तव में ज्यादातर मरीज ठीक होने जा रहे हैं. रिकवरी रेट के बजाय एक्टिव केस ट्रैक करना ज्यादा जरूरी है.”

प्रोफेसर मेनन का कहना है, “जो लोग किसी भी रूप में संक्रमित हैं, उनमें से 98 फीसदी से ज्यादा के रिकवर होने की उम्मीद रहेगी... संक्रमणों और मौतें दोनों समुचित रूप में दर्ज नहीं हो पा रहे हैं. सिर्फ रिकवर हुए केसों की संख्या गिनाने का मतलब प्रभावित लोगों की असल संख्या को दरकिनार करना होगा.”

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