
कोरोना संक्रमण के बीच इन दिनों 'मोनोक्लोनल एंटीबॉडी' या 'एंटीबॉडी कॉकटेल' दवा की चर्चा चल रही है. समाचार एजेंसी के मुताबिक, एक्सपर्ट इस दवा को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 'गेम चेंजर' मान रहे हैं. मेदांता अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांट एंड रिजनरेटिव मेडिसिल के हेड डॉ. अरविंदर सोइन कहते हैं कि भारत में कम कीमत पर मोनोक्नोलन एंटीबॉडी दवा का उत्पादन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में 'गेम चेंजर' साबित हो सकता है.
डॉ. अरविंद कहते हैं, "अगर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा को कम कीमत में ज्यादा मात्रा में बनाया जाता है तो ये हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले बुजुर्गों और बच्चों के लिए गेम चेंजर हो सकती है.
डॉ. सोइन बताते हैं कि अमेरिका के एफडीए ने तीन ऐसी दवाओं को मंजूरी दी है. वो बताते हैं कि पहली है कासिरिविमाब और इम्देवीमाब जो 70% तक प्रभावी है. दूसरी है बाम्लानिविनाब और इतेसेविमाब, ये भी 70% तक प्रभावी है. और तीसरी है सोत्रोविमाव जो 85% तक प्रभावी है.
वहीं, आईसीएमआर के पूर्व डीजी डॉक्टर निर्मल के. गांगुली कहते हैं, "क्योंकि मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा काफी महंगी है, इसलिए इसे हर मरीज को नहीं दिया जा सकता. इसको सिर्फ गंभीर मरीज और हाई रिस्क कैटेगरी में शामिल लोगों को दिया जा सकता है."
मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा तब चर्चा में आई थी जब पिछले साल अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को ये दी गई थी. इसकी खास बात ये है कि ये दवा लेने से 70% मामलों में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती और घर पर ही ठीक हुआ जा सकता है.
हालांकि, आईसीएमआर के पूर्व महामारी वैज्ञानिक डॉ. रमन आर. गंगाखेड़कर कहते हैं कि "आने वाले वक्त में ही पता चलेगा कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा कोविड और उसके वैरिएंट्स के खिलाफ कितनी प्रभावी है."
क्या है मोनोक्लोनल एंटीबॉडी?
दरअसल, मोनोक्नोल एंटीबॉडी दवा दो दवाओं का मिक्सचर है. इसलिए इसे एंटीबॉडी कॉकटेल दवा भी कहा जाता है. इसे दो दवाओं कासिरिविमाब (Casirivimab) और इम्देवीमाब (Imdevimab) के 600-600 एमजी का डोज मिलाकर तैयार किया जाता है. ये दवा काफी महंगी होती है. हाल ही में गुजरात की दवा कंपनी जायडस कैडिला ने ZRC-3308 के नाम से एंटीबॉडी कॉकटेल दवा बनाई है और इसके ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मांगी है.
किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बहुत जरूरी होती है. एंटीबॉडी प्रोटीन होते हैं जो किसी भी बीमारी से शरीर को बचाते हैं. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को किसी खास बीमारी से लड़ने के लिए लैब में तैयार किया जाता है. कासिरिविमाब और इम्देवीमाब को स्विट्जरलैंड की फार्मा कंपनी रोशे ने बनाया है, जो कोविड के लिए जिम्मेदार सार्स-कोव-2 के खिलाफ प्रोटीन बनाती है. ये दवा शरीर में कोरोनावायरस को फैलने से रोकती है.
ये दवा अमेरिका से आई है. फिलहाल इस दवा का इस्तेमाल गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल और दिल्ली के फोर्टिस एस्कोर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट और अपोलो अस्पताल में किया जा रहा है. हाल ही में इस दवा से एक व्यक्ति भी ठीक हुआ है.