
देश में कोरोना की रफ्तार ने फिर तेजी पकड़ ली है. पिछले कुछ दिनों से हर दिन 1 लाख से ज्यादा नए संक्रमित सामने आ रहे हैं. संक्रमण बढ़ने के साथ ही रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड भी बढ़ गई है. इसे देखते हुए सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी है. लेकिन इस बीच सरकारी सूत्रों ने दावा किया है कि पिछले 6 महीने में केंद्र सरकार ने रेमडेसिविर इंजेक्शन के 11 लाख डोज विदेशों में भेज दिए. ये इंजेक्शन 100 से ज्यादा देशों को निर्यात किए गए हैं.
सूत्रों ने बताया कि पिछले 6 महीने में करीब 35 लाख से ज्यादा इंजेक्शन की मांग रही. इनमें से 30 लाख के आसपास इंजेक्शन निजी तौर पर और 5 लाख इंजेक्शन सरकारी अस्पताल या राज्यों ने लिए. सूत्र ये भी बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों से देश में कोरोना के मामलों में कमी आने लगी थी, जिसके बाद रेमडेसिविर इंजेक्शन की डिमांड भी कम हो गई. इसलिए इन इंजेक्शन को निर्यात कर दिया गया.
7 भारतीय कंपनियां बनाती हैं रेमडेसिविर
सरकार के मुताबिक, देश में 7 कंपनियां रेमडेसिविर इंजेक्शन का उत्पादन करती हैं. इनमें सिप्ला लिमिटेड, डॉ. रेड्डी लैबोरेटरीज लिमिटेड, हीटेरो लैब्स लिमिटेड, जुबिलेंट लाइफ साइंसेस लिमिटेड, बायोकॉन लिमिटेड सिंजेन, जायडस कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड और इंडियन यूनिट ऑफ मिलान शामिल हैं. ये सातों कंपनियां मिलकर हर महीने 38.80 लाख इंजेक्शन तैयार करती हैं.
हर महीने इतनी बड़ी संख्या में उत्पादन होने के बाद भी रेमडेसिविर की कमी इसलिए हुई, क्योंकि कंपनी ने इसका उत्पादन दिसंबर में घटा दिया था, क्योंकि उस वक्त रोजाना 30 हजार के आसपास मामले ही आ रहे थे और इंजेक्शन की डिमांड कम हो गई थी.
सरकार का कहना है कि जब एक बार फिर कोरोना से हालात बेकाबू हो रहे हैं, तब रेमडेसिविर को अस्पतालों और मरीज तक पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है और इसके लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाए गए हैं. सरकार ने इंजेक्शन बनाने वाली सभी कंपनियों से कहा है कि वो अपनी वेबसाइट पर इसके स्टॉक और डिस्ट्रीब्यूटर्स की जानकारी दें. साथ ही ड्रग इंस्पेक्टर और बाकी अधिकारियों को भी इंजेक्शन की कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने के निर्देश दिए गए हैं. इसके अलावा डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल को भी कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी गई है, ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो सके.
WHO ने इसे अभी भी सही इलाज नहीं माना
जब कोरोना के मामले तेजी से बढ़े थे, तो सामने आया था कि रेमडेसिविर कोरोना मरीजों के इलाज में कारगार है. लेकिन पिछले साल नवंबर में डब्ल्यूएचओ ने इस बात को नकार दिया था. उसका कहना था कि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना के इलाज में मददगार है. इसके बावजूद भारत समेत कई देशों ने इसका इस्तेमाल जारी रखा. इलाज के दौरान रेमडेसिविर के 6 डोज लेने पड़ते हैं.
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कीमत भी घट रही है. पिछले साल तक ये इंजेक्शन ब्लैक मार्केट में 30 से 40 हजार रुपए में मिलता था, जो अब 4 से 5 हजार रुपए में मिल रहा है. महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों का कहना है कि वो इस इंजेक्शन को 1,000 से 1,400 रुपए के बीच बेचेंगे.