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सांसों की तरह ही चलती रहती है ऑक्सीजन एक्सप्रेस...जानें कैसे पहुंचाई जा रही है O2

कोविड-19 की दूसरी लहर में हर किसी की लड़ाई सांसों के साथ है. हर सांस के लिए जद्दोजहद हो रही है. राज्य कोई भी हो अस्पताल दर अस्पताल लोग ऑक्सीजन के लिए भटक रहे हैं. ऐसी किल्लत में भारतीय रेलवे द्वारा ऑक्सीजन एक्सप्रेस से एक महा अभियान शुरू किया गया है.

ऑक्सीजन एक्सप्रेस (फाइल फोटो-PTI) ऑक्सीजन एक्सप्रेस (फाइल फोटो-PTI)
आशुतोष मिश्रा
  • लखनऊ,
  • 30 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 9:26 AM IST
  • ऑक्सीजन एक्सप्रेस के साथ 7 घंटे का सफर 
  • बोकारो से विभिन्न प्रदेश में पहुंचा रही ऑक्सीजन 

कोविड-19 की दूसरी लहर में हर मरीज सांसों के लिए लड़ रहा है. हर सांस के लिए जद्दोजहद हो रही है. राज्य कोई भी हो अस्पताल दर अस्पताल लोग ऑक्सीजन के लिए भटक रहे हैं. ऐसी किल्लत में भारतीय रेलवे द्वारा ऑक्सीजन एक्सप्रेस से एक महा अभियान शुरू किया गया है. बड़े-बड़े ऑक्सीजन टैंकरों को ट्रेनों पर लादकर झारखंड के बोकारो भेजा जा रहा है, जहां से वही ट्रेनें देश के अलग-अलग राज्यों को जान बचाने के लिए ऑक्सीजन मुहैया करवा रही हैं.

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इस महामिशन के पीछे न जाने कितने नायकों की शिद्दत और लगन है. पहली बार ऑक्सीजन एक्सप्रेस पर इंडिया टुडे आज तक की टीम सवार हुई. 

लखनऊ से झारखंड के बोकारो जा रही इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस पर 3 बड़े टैंकर रखे गए थे, जिनमें बोकारो के प्लांट से ऑक्सीजन भरी जाएगी. घड़ी में 3:00 बजे ऑक्सीजन एक्सप्रेस को लखनऊ से रवाना होना है. इस ट्रेन में एक कोच लगाया गया है, जिसमें रेलवे कर्मचारी, मेंटेनेंस स्टाफ, सुरक्षाकर्मी और आज तक संवाददाता सवार हैं. लखनऊ से बोकारो के लिए रवाना होने वाली इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस के पहले बड़े टैंकर भरकर एक ऑक्सीजन एक्सप्रेस लखनऊ पहुंच चुकी है. ट्रेन से उतारकर इन टैंकरों को जल्दी ही अलग-अलग अस्पतालों तक पहुंचाया जाएगा, ताकि जिंदगी से जंग कोई हारने ना पाए. 

ट्रेन का इंजन तैयार किया गया. रवाना होने के पहले ट्रेन के ड्राइवर सुशील कुमार ने हमसे बात की. सुशील ने कहा कि यह उनकी ड्यूटी है कि वह इस ट्रेन को सुरक्षित पहुंचाएं. सुशील कहते हैं की रेलवे इस महामारी के काल में बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है और उन्हें रेलवे का कर्मचारी होने पर फक्र महसूस होता है. सुशील कहते हैं कि महामारी तो है परिवार को फिक्र भी होती है, लेकिन वह खुश हैं कि हम इस महामारी के काल में अपनी तरफ से मानवता के लिए योगदान कर रहे हैं. 

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घड़ी में 3:00 बजते ही ऑक्सीजन एक्सप्रेस अपने गंतव्य बोकारो के लिए रवाना हो गई. लखनऊ से सुल्तानपुर, वाराणसी, गया होते हुए ये ऑक्सीजन एक्सप्रेस झारखंड के बोकारो जाएगी. यह पूरी यात्रा 17 घंटे की है. आज तक संवाददाता आशुतोष मिश्रा इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस में सवार हुए, जिनका सफर लखनऊ से वाराणसी तक का रहा. इस यात्रा में 7 घंटे लगेंगे. ‌ऑक्सीजन एक्सप्रेस एक विशेष मकसद से शुरू की गई है, इसीलिए इसे किसी भी स्टेशन पर रोका नहीं जाता. सांसों की तरह ऑक्सीजन एक्सप्रेस भी चलती रहती है. भले ही दूसरी ट्रेनों को रोकना पड़े, लेकिन ऑक्सीजन एक्सप्रेस को ग्रीन मैसेज ही दिया जाता है. 
  
मौसम गर्मी का है और यात्रा की थकान सब को सुला देती है. इस ट्रेन में लगे विशेष कोच के दरवाजे बंद हैं इसलिए सुरक्षा कर्मियों को कुछ पल का आराम मिल जाता है. अपने गंतव्य के इंतजार में इस कोच में सवार लोगों को कुछ पल का आराम मिल जाता है. इस ट्रेन में बहादुर सिंह जैसे तीन ट्रक ड्राइवर सवार हैं. बहादुर सिंह पशुपालन विभाग लखनऊ में कार्यरत हैं और अमूमन अपने ट्रक से नाइट्रोजन की सप्लाई करते थे.

रसायन विज्ञान के मुताबिक ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों एक दूसरे के विपरित हैं. बहादुर सिंह कहते हैं कि इस टैंकर को सबसे पहले ऑक्सीजन भरने के लिए तैयार किया गया और अब वह इस महा मिशन पर निकले हैं. बहादुर कहते हैं कि घर वालों को भी फिक्र होती है, लेकिन जब उन्हें पता है कि हम क्या करने वाले हैं तो वह भी सहारा देते हैं. घर वाले कहते हैं कि हम सेवा कर रहे हैं. बहादुर सिंह पेशे से ड्राइवर हैं ,लेकिन उन्हें भी पता है कि देश पर कितना बड़ा खतरा है. बहादुर लोगों को बताते हैं कि वो ऑक्सीजन एक्सप्रेस से जुड़ गए हैं और लोगों की वाहवाही भी लूटते हैं. 

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बृजेश सिंह जैसे गुड्स गार्ड की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, जिन्हें यह सुनिश्चित करना है कि ट्रेन बिना रोक-टोक के बोकारो समय से पहुंच जाए. सरकारी कर्मचारी कई बार आलोचना जलते हैं, लेकिन बृजेश सिंह कहते हैं कि जब से रेलवे ने ऑक्सीजन एक्सप्रेस शुरू किया है तब से लोगों की धारणा भी बदलने लगी है. बृजेश कहते हैं, "लोगों का नजरिया अब सकारात्मक होने लगा है और हम गर्व से कहते हैं कि हम रेलवे के लिए काम करते हैं. जरूरत के समय हमने पहले पानी के टैंक भेजे थे और अब ऑक्सीजन टैंक चला रहे हैं."
 
बृजेश कहते हैं कि मैं सोच रहा था कि काश मुझे भी ऑक्सीजन एक्सप्रेस में सेवा देने का मौका मिले और आज यह मेरा पहला दिन है जब मुझे ऑक्सीजन एक्सप्रेस में ड्यूटी करने का मौका मिला है. मैं इसे अपना सौभाग्य समझता हूं और गर्व का मौका मानता हूं."  गुड्स गार्ड बृजेश कहते हैं कि मेरे लिए यह ड्यूटी नहीं बल्कि सेवा है, क्योंकि कई लोगों की जिंदगी या अब हमसे जुड़ गई है."

बृजेश ने कहा कि ट्रेन को सबसे पहले अनलोड किया गया, जिसके बाद ट्रेन की पोजीशन की जाती है, जिसमें टैंकर को सही क्रम में लगाया गया और ऐसे काम में जहां ढाई से 3 घंटे लगते हैं इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस के लिए उस काम को 1 घंटे में पूरा कर लिया गया. बृजेश कहते हैं कि रेलवे के तमाम अधिकारी इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि इस ट्रेन को ग्रीन मैसेज मिले और यह कहीं रुकने ना पाए. 

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कुछ देर आराम करने के बाद इस कोच में तैनात पुलिसकर्मी फिर से तत्पर हो गए. सब इंस्पेक्टर आलोक कुमार के नेतृत्व में जा रही पुलिस की टीम पर इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस की सुरक्षा का जिम्मा है. आलोक कुमार बताते हैं कि उनकी जिम्मेदारी है कि यह ट्रेन सही सलामत सुरक्षित बोकारो ऑक्सीजन प्लांट तक पहुंच जाए. कोच के दरवाजे बंद किए जाते हैं ताकि कोई बाहरी आदमी इस ट्रेन में न चल पाए साथ ही ट्रक के जो ड्राइवर हैं वह कहीं अलग ना हो जाएं और हर सुरक्षा का पालन करें, ताकि ऑक्सीजन एक्सप्रेस सुरक्षित तरीके से बोकारो पहुंच जाए. आलोक कुमार भी कहते हैं कि यह उनके लिए नौकरी से बढ़कर है क्योंकि इस ट्रेन से कई जिंदगियां बचाई जाएंगी. 

सूरज ढ़लने लगा. चारों तरफ अंधेरा, लेकिन ट्रेन की रफ्तार नहीं रुकी. इस ट्रेन में सवार कर्मचारी अपनी जरूरत का हर सामान साथ लेकर चलते हैं. क्योंकि यात्रा 17 घंटे की है और खाने के पैकेट भी बनारस के पहले नहीं मिलेंगे. सुरक्षा कर्मचारियों और गुड्स गार्ड के अलावा ट्रेन में मेंटेनेंस स्टाफ की भी तैनाती की गई है. मेंटेनेंस विभाग के शैलेंद्र कहते हैं कि यह उनका दूसरा मौका है जब ऑक्सीजन एक्सप्रेस पर सवार हैं. शैलेंद्र कहते हैं कि मेरा काम है इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस में कोई तकनीकी खराबी ना आने पाए ताकि यह ट्रेन कहीं ना रुके क्योंकि यह सीधा लोगों को सांसे देने के लिए बनाई गई है, ऐसे में यह ट्रेन नहीं रुकनी चाहिए. शैलेंद्र कहते हैं कि हम तमाम रेलवे कर्मचारियों के लिए सेवा का मौका है ताकि मानवता जिंदा रहे. 

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लगभग 10:00 बजे ऑक्सीजन एक्सप्रेस वाराणसी जंक्शन पहुंच जाती है. आज तक की यात्रा इस ऑक्सीजन एक्सप्रेस के साथ यहीं खत्म होती है. लेकिन इस एक्सप्रेस की यात्रा भी जारी रहेगी, क्योंकि जितनी यात्रा यह करेगी उतनी ही ज्यादा लोगों को सांसे मिलेंगी. जब पूरा देश एक महामारी से जूझ रहा हो तो कुछ लोगों की मेहनत और भारतीय रेल लोगों के लिए लाइफ लाइन बन गई है. 

 

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