
कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती रह चुके मरीजों में 16 महीने तक अवसाद और चिंता की दर उन लोगों की तुलना में ज्यादा रहती है, जो कभी संक्रमित नहीं हुए. वहीं, जिन कोरोना मरीजों को 7 दिन या उससे ज्यादा समय तक बेड पर रहना पड़ा, उनमें अवसाद और चिंता उन मरीजों की तुलना में अधिक थी, जिन्होंने संक्रमित होने के बाद कभी बेड का सहारा नहीं लिया. द लैंसेट पब्लिक हेल्थ की नई रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है.
रिसर्च के मुताबिक, COVID-19 से संक्रमित जिन मरीजों को अस्पताल का मुंह नहीं देखना पड़ा, उनके अवसाद और चिंता के लक्षण ज्यादातर दो महीने के भीतर कम हो गए जबकि जिन रोगियों को 7 दिन या उससे अधिक समय तक बेड पर रखा गया, उनमें 16 महीने तक अवसाद और चिंता की संभावना बढ़ गई.
शोधकर्ताओं ने पाया कि कुल मिलाकर कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों में उन व्यक्तियों की तुलना में अवसाद और खराब नींद की गुणवत्ता का अधिक प्रसार था, जिनकी कभी जांच नहीं हुई.
डेनमार्क, एस्टोनिया, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और यूके के 7 समूहों में शामिल 2 लाख 47 हजार 249 लोगों से यह विश्लेषण निकाला गया है. ये लोग फरवरी 2020 और अगस्त 2021 के बीच COVID-19 से संक्रमित हुए थे.
यूनिवर्सिटी ऑफ आइसलैंड के प्रोफेसर उन्नूर अन्ना वाल्दीमार्सडॉटिर ने कहा, 'हमारी रिसर्च जांच के 16 महीने बाद तक सामान्य आबादी में गंभीर कोरोना बीमारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों का पता लगाने वाली पहली रिसर्च है.'
प्रोफेसर उन्नूर अन्ना के मुताबिक, यह रिसर्च बताती हैं कि मेंटल हेल्थ इफेक्ट सभी कोरोना मरीजों के लिए समान नहीं हैं और अस्पताल में बेड पर बिताया गया समय मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की गंभीरता को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है.
शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि कोरोना के लक्षणों से शरीर के जल्दी ठीक होने से यह स्पष्ट हो सकता है कि हल्के संक्रमण वाले लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण समान दर से क्यों घटते हैं. हालांकि, गंभीर रूप से कोरोना पीड़ित रोगियों को अक्सर सूजन हो जाती है जो पहले पुराने मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों, और विशेष रूप से अवसाद से जुड़ी होती है.
आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो इस खतरनाक कोरोना वायरस और इसके नए वैरिएंट्स से दुनियाभर में अब तक 60.5 लाख मौतें हो चुकी हैं जबकि कुल 46 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. हालांकि, रिसर्च जनरल और दूसरी एजेंसियों के मुताबिक यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है.