
आजतक/इंडिया टुडे ने जमीनी स्थिति जानने के लिए कुछ उद्योग परिसरों का दौरा किया. इनमें लघु से लेकर बड़े उद्योग तक शामिल थे. औद्योगिक इलाकों में जहां सामान्य परिस्थितियों में हर वक्त गहमागहमी रहती थी, वहां अब दिन उजाले में भी सन्नाटा पसरा दिखा. सबसे पहले हम एन एस इंडस्ट्रीज के मालिक जगजीत सिंह से मिले. उनका स्मॉल स्केल का इंजीनियरिंग कारखाना है. अभी यहां सिर्फ चार कर्मचारी काम करते दिखे. सामान्य दिनों में यहां 25 से अधिक श्रमिक काम करते थे. जगजीत सिंह सोशल डिस्टेंसिंग जैसी सभी सावधानियां बरत रहे हैं.
अभी नहीं लौटना चाहते हैं मजदूर
जगजीत सिंह ने आजतक/इंडिया टुडे से कहा, "अधिकतर प्रवासी मजदूर यहां से जा चुके हैं. हमने उन्हें तीन महीने का वेतन भी दिया लेकिन वो बहुत डरे हुए हैं. मैं उनसे लगातार फोन पर बात करता हूं. वो लौटना चाहते हैं, लेकिन अभी नहीं. उनका कहना है कि जब कोरोना वायरस संक्रमण मुंबई से खत्म हो जाएगा वो लौट आएंगे. अभी जो श्रमिक उपलब्ध हैं, उनकी सारी बुनियादी सुविधाओं का हम ध्यान रख रहे हैं. इनके लिए खाना मेरे घर से आता है. मेरे वाहन से ही वो आते-जाते हैं. मजदूर न होने से कारोबार बुरी तरह प्रभावित है. सिर्फ 30 फीसदी कारोबार ही हो रहा है. जो मजदूर अपने राज्यों को लौट गए हैं, उन्हें मैं टिकट समेत सारी सुविधाएं देने की बात कर रहा हूं, लेकिन उनका डर उन्हें लौटने नहीं दे रहा.”
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इसके बाद हमने ठाणे में प्रशांत कॉर्नर फूड फैक्ट्री का रुख किया. ये मिठाई और फरसाण (गुजराती नमकीन) का उत्पादन करने वाला बड़ा उद्योग है. इसके छह आउटलेट्स हैं. कुछ दिन पहले ही इन आउटलेट्स को दोबारा खोला गया. लेकिन श्रमिकों की कमी का कारोबार पर बुरा असर पड़ रहा है. यहां भी सुरक्षा संबंधी सभी सावधानियां बरती जा रही हैं. ग्राहकों और श्रमिकों को पहले सेनिटेशन चैंबर से गुजरना पड़ता है. इससे जूते-चप्पल सेनेटाइज हो जाते हैं. तापमान के लिए स्क्रीनिंग और हैंड सेनिटाइजर के इस्तेमाल के बाद ही आउटलेट या फैक्ट्री में एंट्री दी जाती है.
100 की बजाय 10 मजूदरों में चलाना पड़ रहा है काम
फैक्ट्री में अंदर जाने पर अधिकतर जगह खाली दिखती है. थोड़े से श्रमिक ही मिठाइयां और फरसाण बनाते दिखे. हम एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में गए. ऐसी यहां कई यूनिट हैं. सामान्य दिनों में एक यूनिट में 100 से अधिक श्रमिक किसी भी समय काम करते थे लेकिन अभी सिर्फ 10 ही काम कर रहे हैं, बाकी सभी अपने राज्यों को लौट गए हैं.
प्रशांत कॉर्नर के प्रोपराइटर प्रशांत सकपाल ने बताया, "लॉकडाउन के बाद बहुत कुछ बदल गया है. बड़ी दिक्कत प्रवासी मजदूरों की है. मेरी कंपनी में काम करने वाले 600 से अधिक लोग थे. अब सिर्फ 100 ही यहां हैं. अच्छी बात है कुछ मजदूर वापस गए हैं और काम कर रहे हैं. उनके ठहरने और खाने की व्यवस्था का मैं पूरा ध्यान रख रहा हूं. यह सीधे मेरे व्यवसाय को प्रभावित करता है. यहां तक कि हमारे उत्पादों की मांग भी है, लेकिन श्रमिक उपलब्ध नहीं हैं. जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने व्यक्तिगत रूप से परिवहन व्यवस्था कर उन्हें घर भेजा. मैं उन्हें फूड किट और वेतन देता हूं, लेकिन वो कोरोनोवायरस के डर की वजह से फिलहाल लौटना नहीं चाहते. हम सभी सुरक्षा सावधानी बरत रहे हैं लेकिन कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. अभी सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत कारोबार हो रहा है. उम्मीद है कि जल्द ही चीजें पटरी पर लौट आएंगी."
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600 मजदूर करते थे काम अब 100 बचे
प्रशांत कॉनर्र फूड फूड फैक्ट्री के मालिक प्रशांत सकपाल ने कहा कि लॉकडाउन के बाद काफी चीजें बदली हैं. मजदूरों की कमी सबसे बड़ी समस्या है. मेरी फैक्ट्री में लगभग 600 मजदूर काम करते थे, अब मुश्किल से 100 बचे हैं, उन्हीं के भरोसे काम हो रहा है. जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने इन मजदूरों को गांव भिजवाया. अब वे वापस नहीं आना चाहते हैं. अभी सिर्फ 10 से 20 फीसदी बिजनेस हो पा रहा है. उम्मीद है कि चीजें ठीक होंगी.