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वैक्सीनेशन की नई नीति: अब केंद्र के हाथ में कमान, क्या बदला और कैसे पूरा होगा मिशन? जानें पूरा प्लान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश की नई वैक्सीनेशन नीति का ऐलान कर दिया. अब केंद्र सरकार के जिम्मे ही टीकाकरण अभियान होगा. 21 जून से देश में 18 प्लस वाले लोगों को केंद्र की ओर से मुफ्त वैक्सीन लगाई जाएगी. ये प्लान कैसे पूरा होगा, जानिए...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया नई वैक्सीनेशन नीति का ऐलान (फोटो: PTI) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया नई वैक्सीनेशन नीति का ऐलान (फोटो: PTI)
राहुल श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 08 जून 2021,
  • अपडेटेड 10:04 AM IST
  • केंद्र सरकार के हाथ में अब नई वैक्सीनेशन पॉलिसी
  • राज्यों को वैक्सीन के लिए नहीं देना होगा पैसा
  • पीएम मोदी ने देश के नाम संबोधन में किया ऐलान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश की नई वैक्सीन रणनीति का ऐलान किया. 8 हफ्ते के बाद भारत एक बार फिर अपनी उसी नीति पर पहुंचा है, जहां केंद्र के पास वैक्सीनेशन का सबसे अधिक अधिकार है. एक मई से वैक्सीन लगाने को लेकर कुछ बदलाव किया गया था, जिसमें 18-44 साल के उम्र वाले लोगों के लिए टीकाकरण का 25 फीसदी हिस्सा राज्यों को लेने का अधिकार दिया गया. लेकिन अब जब वैक्सीन गाइडलाइन्स का 3.0 वर्जन आया है, तो फिर सबसे पहली गाइडलाइन्स का रुख किया गया है जहां केंद्र सर्वोपरि है और राज्यों को वैक्सीनेशन के लिए पैसा नहीं देना होगा. 

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद विपक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार और विपक्ष के दबाव के कारण सरकार ने ये फैसला लिया है. वहीं, इससे अलग पीएम मोदी ने अपने संबोधन में ये भी संकेत दिया कि कैसे अप्रैल के आखिर में राज्य सरकारों और विपक्ष ने वैक्सीनेशन के अधिकार में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ाने की वकालत की थी. 

सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई नीति का ऐलान किया, लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि एक जून को इस नीति को लेकर प्रधानमंत्री को एक प्रेजेंटेशन दी गई थी. उसी दिन इसपर मुहर लग गई थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, 31 मई तक कई राज्य वैक्सीन इकट्ठा करने में फेल रहे, जिसके बाद इसपर विचार किया गया, इस बीच 3 जून को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आ गई, हालांकि तबतक रोडमैप तैयार हो गया था. 

अब केंद्र ने अपनी वैक्सीन पॉलिसी पर जो यू-टर्न लिया, उसको उन्होंने सही करार दिया और कहा कि करीब दस राज्यों ने अपील की थी कि केंद्र ही वैक्सीनेशन के प्रोग्राम को चलाए और वैक्सीन निर्माताओं से सप्लाई ले. 

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31 दिसंबर तक 187 करोड़ वैक्सीन का रोडमैप
अब जब केंद्र ने नई नीति का ऐलान कर दिया है, तो हर किसी की नज़रें हैं कि अब टीकाकरण होगा कैसे. नई नीति के तहत केंद्र को वैक्सीन के लिए करीब 45 हजार करोड़ रुपये का खर्च उठाना पड़ सकता है, केंद्र ने बजट में 35 हजार करोड़ देने की बात कही थी. अभी तक इसमें से करीब 4 हजार करोड़ रुपये खर्च किया गया है. 

अब अगर टीकाकरण की बात करें, तो देश में अभी करीब 94 करोड़ ऐसे लोग हैं जो 18 प्लस की श्रेणी में आते हैं. ऐसे में इनके लिए 188 करोड़ डोज़ की जरूरत होगी. भारत में 16 जनवरी को वैक्सीनेशन शुरू हुआ, केंद्र के मुताबिक 31 जुलाई तक भारत के पास 53.6 करोड़ डोज़ होंगी. इनमें से 23 करोड़ अभी तक दी भी जा चुकी हैं. अब सरकार के सामने लक्ष्य है कि 1 अगस्त से 31 दिसंबर तक 133.6 करोड़ वैक्सीन दी जाएं, यानी हर रोज़ करीब 90 लाख वैक्सीन की डोज़ लगें तब जाकर ये लक्ष्य पूरा हो पाएगा. 

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भारत में जारी है मिशन वैक्सीनेशन (PTI)


कहां से आएंगी वैक्सीन?
वैक्सीन लेने की छूट जब राज्यों को दी गई, तब उन्हें निर्माताओं से वैक्सीन लेने में काफी दिक्कत आई. लेकिन अब जब ये सुविधा सिर्फ केंद्र के पास है, तो केंद्र को सीधे वैक्सीन मिलने में आसानी होगी. केंद्र सरकार ने ये भी बताया है कि अगले पांच महीने में कैसे टारगेट पूरा करने के लिए वैक्सीन मिल पाएगी. केंद्र के मुताबिक, अगस्त से दिसंबर के बीच सीरम इंस्टीट्यूट 50 करोड़, भारत बायोटेक 38.6 करोड़, बायो-ई 30 करोड़, जायडस कैडिला 5 करोड़, स्पुतनिक-वी 10 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध कराएगा. 130 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन यहां से आएंगी, इनमें अभी विदेशी वैक्सीन को शामिल नहीं किया गया है. 


वैक्सीनेशन पर आएगा कितना खर्च?
जब वैक्सीनेशन की गाइडलाइन्स 2.0 सामने आईं तो दामों को लेकर काफी संकट हुआ था. 31 जुलाई तक केंद्र को जो 53.6 करोड़ वैक्सीन मिल रही हैं, वो केंद्र को 150 रुपये प्रति डोज़ के हिसाब से मिल रही हैं. हालांकि, नीति आयोग मेंबर डॉ. वीके पॉल के अगुवाई वाली कमेटी की ओर से आगे की वैक्सीन के लिए दाम कम करवाने की कोशिश जारी है. क्योंकि अब सिर्फ केंद्र ही सीधे तौर पर वैक्सीन खरीदेगा, तो इसमें आसानी भी हो सकती है. 

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नई और पुरानी नीति में कितना अंतर...
सवाल उठता है कि अब अगर केंद्र सरकार फिर से वैक्सीनेशन अपने हाथ में ले रही है, तो उससे कितना फर्क पड़ेगा. दरअसल, 1 मई से जब वैक्सीनेशन 2.0 शुरू हुआ तब राज्य सरकारों को वैक्सीन निर्माताओं से सीधे सप्लाई लेने की छूट दी गई. लेकिन अब राज्यों का कोटा भी सीधे केंद्र ही खरीदेगा और फिर उन्हें देगा. केंद्र पहले 50 फीसदी हिस्सा ले रहा था, बाकी 25 फीसदी राज्य और अन्य 25 फीसदी प्राइवेट अस्पतालों को दिया गया.

लेकिन अब केंद्र 75 फीसदी हिस्सा रखेगा और प्राइवेट अस्पतालों को 25 फीसदी हिस्सा दिया जाएगा. पहले केंद्र की ओर से सिर्फ 45 प्लस वाले लोगों को वैक्सीन मुफ्त में दी जा रही थी, लेकिन अब केंद्र ने 18 प्लस वालों के लिए भी मुफ्त वैक्सीन की बात कही है जो 21 जून से लागू होगी. 

सूत्रों का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों को 25 फीसदी हिस्सा देकर केंद्र की कोशिश मुफ्त वैक्सीन को क्रॉस सब्सिडाइज़ करने की है, साथ ही इससे सरकारी हेल्थ सिस्टम पर कुछ भार कम होगा. यहां भी केंद्र ने 150 रुपये का सर्विस चार्ज फिक्स कर दिया है, ऐसे में लोगों को दिक्कत नहीं होगी. 

अब नई नीति में जब वैक्सीन का हिस्सा केंद्र के पास ज्यादा है, तो राज्यों को ये छूट दी गई है कि वो अपने हिसाब से टारगेट ग्रुप तय कर सकते हैं. यानी किन्हें प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाया जाए, ये राज्यों के हाथ में होगा.

वैक्सीन को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाने के लिए भी जोर दिया जा रहा है, पहले टीयर 2-3 के इलाकों में 8-9 हजार प्राइवेट अस्पतालों ने वैक्सीनेशन में अहम भूमिका निभाई, लेकिन बाद में बड़े अस्पतालों तक वैक्सीन सीमित रह गई. अब केंद्र की कोशिश है कि एक बार फिर छोटे अस्पतालों की भूमिका को बढ़ाया जाए, ताकि कोई भी कहीं भी टीका लगवा सके.

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वैक्सीन के लिए लग रही लंबी कतारें (PTI)


अब वैक्सीनेशन को तेज़ी से रफ्तार देने के लिए केंद्र की ओर से 10 लाख आशा वर्कर्स और 2 लाख अन्य वर्कर्स को मैदान में उतारा जाएगा, ताकि जागरुकता को बढ़ाया जा सके. वहीं, कोई भी व्यक्ति अब किसी दूसरे व्यक्ति के लिए ई-वाउचर खरीद पाएगा, यानी अगर कोई क्षमतावान है तो वह वाउचर खरीदकर किसी अन्य व्यक्ति के लिए वैक्सीन का बोझ उठा पाएगा. इससे इस मिशन में जनता का सहयोग भी बढ़ेगा. 

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कब तक आ पाएंगी विदेशी वैक्सीन?
भारत सरकार इस वक्त कई तरह की वैक्सीन का इंतजार कर रही हैं, जिसमें जीनोवा वैक्सीन के साथ-साथ भारत बायोटेक की नेसल स्प्रे वैक्सीन भी है. देशी वैक्सीन के अलावा एक रोड मैप विदेशी वैक्सीन के लिए भी तैयार हो रहा है. फाइजर, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन जैसी वैक्सीन निर्माता कंपनियों से बातचीत अंतिम दौर में चल रही है. ऐसे में उम्मीद है कि जल्द ही इन विदेशी वैक्सीन की भारत में एंट्री हो पाएगी. 

वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार के लिए कौन जिम्मेदार?
कोरोना संकट शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री ने बीते दिन नौवीं बार देश को संबोधित किया. इस बार पीएम मोदी ने वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब भी दिया. पीएम मोदी ने साफ कहा कि राज्यों द्वारा बनाए गए दबाव के बाद वैक्सीन लेने की ताकत उन्हें दी गई, लेकिन राज्य इसमें सफल नहीं हो सके.

वहीं, सरकारी सूत्रों का कहना है कि 16 जनवरी को जब भारत ने वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू किया, तब अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया गया. जिसमें पहले हेल्थकेयर वर्कर्स, फिर फ्रंटलाइन वर्कर्स, फिर सीनियर सिटिजन, उसके बाद 45 प्लस वालों के लिए वैक्सीनेशन खोला गया. हेल्थ सेक्रेटरी राजेश भूषण के मुताबिक, इसके पीछे कोशिश थी कि पहले हेल्थकेयर वर्कर्स को सुरक्षित किया जाए, क्योंकि पूरी लड़ाई उनके जिम्मे ही है. 

सरकारी सूत्रों का कहना है कि वैक्सीनेशन की रफ्तार पूरी तरह से वैक्सीन के प्रोडक्शन पर निर्भर करती है, सरकार लगातार वैक्सीन को लेने में जुटी हुई है. सरकार की ओर से लगातार वैक्सीन को सरप्लस में रखा जा रहा है और राज्यों को उसका आंकड़ा भी बताया जा रहा है. 

वैक्सीन वेस्टेज के लिए कौन जिम्मेदार?
वैक्सीनेशन के मिशन में एक बड़ा मुद्दा वैक्सीन की खराबी का है. केंद्र ने कई बार राज्यों को वैक्सीन वेस्टेज को कम करने पर काम करने की कही, केंद्र की ओर से केरल और बंगाल जैसे राज्यों की तारीफ भी की गई जहां पर वैक्सीन वेस्टेज सबसे कम था. तो वहीं, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में प्रतिशत ज्यादा होने के कारण केंद्र-राज्यों में जंग भी शुरू हुई. वहीं, हेल्थकेयर्स वर्कर्स को वैक्सीन की दोनों डोज़ देने को लेकर भी सवाल खड़े हुए क्योंकि कई राज्यों में अभी भी इन्हें दोनों डोज़ नहीं मिल पाई है, दिल्ली जैसे राज्य राष्ट्रीय औसत से भी पीछे चल रहे हैं. 

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