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नोएडा पुलिस की ओर से किसी के स्मार्टफोन पर आरोग्य सेतु ऐप का न होना दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया. नोएडा पुलिस के मुताबिक ऐसा केंद्र और राज्य सरकार की ‘एडवाइजरी’ के आधार पर किया गया.
इंडिया टुडे की ओर से दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में यह बात सामने आई. हालांकि इस तथ्य के साथ गौर करने लायक बात ये है कि नोएडा पुलिस का निर्देश गृह मंत्रालय और राज्य सरकार के आदेशों से कई दिन पहले ही आ गया था. गृह मंत्रालय का आदेश 12 दिन बाद जारी किया गया. वहीं राज्य सरकार का आदेश नोएडा पुलिस के निर्देश के 13 दिन बाद आया. तो इन आदेशों के आधार पर नोएडा पुलिस का निर्देश कैसे जारी हो सकता है?
आरोग्य सेतु एक ओपन सोर्स कोविड-19 कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग और सिंड्रोम-मैपिंग ऐप है. इसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर की ओर से विकसित किया गया है. ऐप को लेकर कई लोग निजता संबंधी चिंताओं को इंगित कर चुके हैं.
5 मई को नोएडा पुलिस ने निर्देश जारी किया था, जिसमें सभी निवासियों को अपने मोबाइल फोन पर आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा गया था. साथ ही चेतावनी दी गई थी कि इसका पालन नहीं करना लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के समान माना जाएगा और यह प्रासंगिक धाराओं के तहत दंडनीय अपराध भी हो सकता है.
अखिलेश कुमार, डीसीपी, लॉ एंड ऑर्डर, को यह कहते हुए कोट किया गया कि उल्लंघन करने वालों को "आईपीसी की धारा 188 के तहत बुक किया जा सकता है, उसके बाद, एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से तय किया जाएगा कि उल्लंघन करने वाले पर कार्रवाई की जाए, जुर्माना लगाया जाए या चेतावनी देकर छोड़ा जाए.”
आईपीसी की इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को 6 महीने तक की कैद या 1,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. यह धारा लोक सेवक की ओर से घोषित आदेश को न मानने से संबंधित है.
आशुतोष द्विवेदी अतिरिक्त डीसीपी, लॉ एंड ऑर्डर ने कहा था, "अगर स्मार्टफोन यूजर्स के पास उनके फोन पर आरोग्य सेतु ऐप नहीं है, तो यह लॉकडाउन का उल्लंघन माना जाएगा, इसलिए, यह दंडनीय होगा."
ऐसा निर्देश जारी करने के लिए नोएडा पुलिस को किसने अधिकृत किया, यह जानने के लिए, इंडिया टुडे ने आरटीआई याचिका दाखिल की, जिसके जवाब में उसने दो आदेशों को उद्धृत किया- पहला, गृह मंत्रालय (MHA) का 17 मईका आदेश. और दूसरा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव का 18 मई का आदेश.
संयोग से, MHA का आदेश 12 दिन बाद और राज्य सरकार का आदेश 13 दिन बाद आया, तो ये दोनों नोएडा पुलिस के निर्देश का आधार कैसे हो सकते हैं? क्या नोएडा पुलिस को पहले से पता था कि केंद्र और राज्य ये आदेश जारी करने वाले थे?
नोएडा पुलिस ने इंडिया टुडे को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी की ओर से 18 मई टॉप सरकारी अधिकारियों को भेजे पत्र की प्रति उपलब्ध कराई.
पत्र में मुख्य सचिव की ओर से जिला अधिकारियों से हर व्यक्ति को आरोग्य सेतु और आयुष कवच ऐप डाउनलोड करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया है ताकि उनके हेल्थ स्टेट्स को अपडेट किया जा सके.
यहां तक कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश में भी कहा गया है: "जिला अधिकारियों को लोगों को संबद्ध मोबाइल फोन पर आरोग्य सेतु एप्लिकेशन इंस्टॉल करने की सलाह देने और नियमित रूप से ऐप पर हेल्थ स्टेट्स को अपडेट करने के लिए कहने को कहा गया है."
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तो सवाल उठता है - अगर ये दोनों आदेश एडवाइजरी थे, तो नोएडा पुलिस अपने निर्देश पर क्यों जोर देती रही? हमारे इस सवाल के जवाब में कि आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड नहीं करने के लिए कितने लोगों पर अभियोग चलाया गया है, नोएडा पुलिस ने जवाब दिया- ‘किसी पर नहीं’.
नोएडा पुलिस रहस्यमयी तरीके से काम करती है. वो पहले आरोग्य सेतु ऐप को नहीं रखने पर दंडनीय अपराध बनाती है वो भी 12 और 13 दिन बाद मिलने वाली एडवाइजरी के आधार पर. और फिर निर्देश जारी करने के लगभग तीन महीने बाद भी ऐप डाउनलोड नहीं करने के लिए एक भी व्यक्ति पर अभियोग कायम करने में सक्षम नहीं हो पाती.