
कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश में त्राहि त्राहि मचाई है. देश में जरूरतमंदों की मदद करने वाले कोरोना हीरो भी कम नहीं हैं. लेकिन साथ ही ये भी हकीकत है कि लोगों पर कोविड-19 के संक्रमण का खौफ इतना छाया हुआ है कि वो किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ाने से हिचकते हैं. ऐसी ही एक घटना ओडिशा के नबरंगपुर से सामने आई है.
यहां एक झोंपड़ी के बाहर तीन मासूम बच्चे बैठे थे. अंदर उनकी मां की लाश पड़ी थी. घंटों तक यही स्थिति बनी रही. बच्चे भूखे-प्यासे थे. आसपास से कोई भी बच्चों को खाना या पानी देने के लिए सामने नहीं आया. न ही किसी ने महिला का अंतिम संस्कार कराने के लिए आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाई. इन बच्चों की मां बिशोई दिहाड़ी मजदूर थी. पिता कुछ महीने पहले परिवार को छोड़ कर कहीं ओर चला गया. मां ही जो कमा कर लाती थी, उससे दो बेटियों और एक बेटे का पेट पालती थी.
बताया जा रहा है कि कुछ हफ्ते पहले बिशोई को तेज बुखार हुआ था. तब उसे कोरापुट DHH (डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर अस्पताल) ले जाया गया था. अस्पताल में इलाज के बाद बिशोई घऱ आ गई. लेकिन घर पर उसकी तबीयत फिर बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया. तीनों बच्चे इतने मासूम थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि मां को क्या हुआ.
वो यही समझ कर कि मां सो रही है, झोपड़ी के बाहर बैठे रहे. कई घंटे बाद बड़ी बेटी को कुछ दुर्गंध सी आई तो उसने पड़ोसियों को बताया. कोरोना के डर से कोई आगे नहीं आया. बिशोई का शव वहां घंटों तक ऐसे ही पड़ा रहा. मौत की वजह साफ नहीं है. महिला का कोविड- 19 टेस्ट नहीं हुआ था.
किसी ने इस घटना की सूचना प्रशासन को दी तो एक टीम वहां पहुंची. प्रशासन की इस टीम ने बच्चों को खाना खिलाया. साथ ही शव का अंतिम संस्कार कराया. तब तक महिला का एक रिश्तेदार भी वहां पहुंच गया. नबरंगपुर के कलेक्टर डॉ अजीत कुमार मिश्रा ने आज तक को बताया कि तीनों बच्चे अभी महिला के रिश्तेदार को सौंपे गए हैं. दस दिन में महिला की मृत्यु से जुड़ी रस्में पूरी होने के बाद दोनों बच्चियों को नबरंगपुर स्थित पंडित दीन दयाल बालिका अनाथालय और लड़के को उत्कल बाल अनाथालय भेजा जाएगा.