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कोरोना सर्वाइवर दोबारा सं​क्रमित नहीं होंगे, इसके कोई सबूत नहीं: WHO

कोरोना को लेकर प्रकाशित नए वैज्ञानिक शोधपत्र में कहा गया है कि प्राकृतिक रूप से संक्रमण के जरिए कोई बीमारी हुई है, तो उसके रोगाणु से लड़ने के लिए शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र का विकास कई चरणों में होता है.

कोरोना पर एक नया वैज्ञानिक शोधपत्र (Photo- PTI) कोरोना पर एक नया वैज्ञानिक शोधपत्र (Photo- PTI)
अंकित कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 4:56 PM IST

  • कोरोना के अगले चरण को लेकर एक नया शोधपत्र प्रकाशित
  • सर्वाइवर की एंटीबॉडी संक्रमण रोक सकती है या नहीं, सबूत नहीं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने Covid-19 के अगले चरण को लेकर एक नया वैज्ञानिक शोधपत्र प्रकाशित किया है. इसमें कहा गया है कि जो लोग कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो चुके हैं, उनके ब्लड में मौजूद एंटीबॉडीज कोरोना वायरस का संक्रमण रोक सकती हैं या नहीं, अब तक इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं. सर्वाइवर की एंटीबॉडी की वजह से उनमें कोरोना का संक्रमण दोबारा नहीं होगा, इस पर भी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.

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कुछ सरकारों ने कोविड-19 के एंटीबॉडी का पता लगाने और उसके आधार पर इलाज की सलाह दी थी. इसके पहले कुछ विशेषज्ञों ने कहा था कि एंटीबॉडी वाले व्यक्तियों को यह मानकर चलना चाहिए कि वे दोबारा संक्रमण से सुरक्षित हैं. वे यात्रा करने या काम पर लौटने में सक्षम हैं. एंटीबॉ​डी शरीर में मौजूद वह तंत्र है जिसके सहारे शरीर किसी रोग से लड़ता है.

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डब्ल्यूएचओ का कहना है, "मौजूदा वक्त में इस बात के कोई सबूत नहीं है कि जो लोग कोरोना वायरस (Covid-19) के संक्रमण से लड़कर स्वस्थ हो चुके हैं और जिनमें एंटीबॉडी विकसित हो चुकी हैं, वे दोबारा सं​क्रमित नहीं हो सकते".

यह वैज्ञानिक शोधपत्र शुक्रवार को प्रकाशित हुआ है. इसमें कहा गया है, "प्राकृतिक रूप से संक्रमण के जरिए कोई बीमारी हुई है, तो उसके रोगाणु से लड़ने के लिए शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र का विकास कई चरणों में होता है. इसमें एक से दो सप्ताह या इससे ज्यादा का वक्त लगता है."

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शरीर अपने प्रतिरक्षा तंत्र से वायरस को खत्म करता है

किसी संक्रमण के जवाब में मानव शरीर में विकसित एंटीबॉडी दरअसल इम्यूनोग्लोबुलिन नामक प्रोटीन है. शरीर T-cells (टी-कोशिकाओं) का भी निर्माण करता है जो वायरस से संक्रमित अन्य कोशिकाओं की पहचान करती हैं और उन्हें खत्म करने का काम करती हैं. इस प्रक्रिया को सेलुलर इम्युनिटी कहा जाता है. अधिकांश वायरल संक्रमणों में जब शरीर अपने प्रतिरक्षा तंत्र से वायरस को खत्म करता है. अगर यह प्रतिरक्षा तंत्र पर्याप्त मजबूत है, तो यह दोबारा उसी वायरस या बीमारी के संक्रमण को रोकता है." शरीर की इस प्रतिक्रिया या प्रतिरक्षा को मापने के लिए ब्लड में मौजूद एंटीबॉडी को मापा जाता है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वह इस बात की समीक्षा जारी रखेगा कि SARS-CoV-2 संक्रमण के मामले में एंटीबॉडी की क्या भूमिका है. 24 अप्रैल तक इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि अगर किसी शरीर में SARS-CoV-2 के एंटीबॉडी मौजूद हैं तो उसे संक्रमण से सुरक्षा मिल चुकी है.

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कई देश एंटीबॉडी टेस्ट को लेकर काफी उत्साहित थे. लेकिन उनके लिए यह एक तरह का झटका है, क्योंकि अभी तक इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि एक बार कोरोना संक्रमित हो चुके इंसान को दोबारा संक्रमण नहीं होगा. अगर किसी शरीर में एंटीबॉडी का स्तर अच्छा है तो भी यह नहीं कहा जा सकता है कि वह कोरोना संक्रमण से सुरक्षित है.

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