
एक साल से कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही दुनिया के लिए वैक्सीन पर ट्रायल के नतीजे उम्मीद बढ़ाने वाले हैं. सबकुछ ठीक रहा तो फाइजर, स्पूतनिक-5 और मॉडर्ना के टीके अगले महीने या अगले साल की शुरुआत तक आ सकते हैं. इनका ट्रायल एडवांस स्टेज में है. WHO के अनुसार दुनिया में अभी करीब चार दर्जन कोरोना वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के दौर में हैं. इसी के साथ दुनिया में इन वैक्सीन्स को लेकर कई सवालों पर भी चर्चा शुरू हो चुकी है. जैसे- पहले किसे मिलेगी ये वैक्सीन, कितनी कीमत होगी और गरीब देशों की इन वैक्सीन में क्या हिस्सेदारी होगी?
चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि दुनिया की आबादी करीब 7 अरब है जबकि तैयार हो रही वैक्सीन के डोज की संख्या काफी सीमित. कोरोना से बचाव के लिए एक इंसान को वैक्सीन की दो डोज की जरूरत होगी. जबकि कई अमीर देश अभी से अपने हर नागरिक के लिए वैक्सीन के 5-5 डोज बुक कर चुके हैं. इस रेस में गरीब देश पिछड़ते हुए दिख रहे हैं जबकि अफ्रीका के कई देशों में अभी कोरोना वायरस संक्रमण की पहली लहर ही शुरू हुई है और आने वाले समय में महामारी के संकट के और गहराने का अंदेशा जताया जा रहा है.
कितनी होगी कोरोना वैक्सीन की कीमत?
दुनिया की कई बड़ी कंपनियां वैक्सीन निर्माण की रेस में हैं. अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने दावा किया है कि ट्रायल में उसकी वैक्सीन 95 फीसदी प्रभावी साबित हुई है. वहीं फाइजर ने 90 फीसदी प्रभावी वैक्सीन का दावा किया है. मॉडर्ना ने अपने वैक्सीन को 2,800 रुपये प्रति डोज और फाइजर ने लगभग 3,000 रुपये में आंका है. वहीं ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को फंड करने वाले भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने संकेत दिया है कि भारत में उनके टीके की एक डोज की कीमत 500 रुपये के आसपास होगी. वहीं निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए वैक्सीन 225 रुपये में उपलब्ध हो सकती है.
अमीर देशों ने कितनी डोज खरीदी?
कोरोना वैक्सीन की पहली डोज किसे मिलेगी इस सवाल का जवाब एडवांस में हुई बुकिंग्स के आंकड़ों से ही मिल जाता है. अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार अब तक कोरोना वैक्सीन के 6.4 बिलियन डोज की बुकिंग हो चुकी है. जबकि 3.2 बिलियन और डोज की खरीद पर बातचीत चल रही है. अमेरिकी सरकार ने वैक्सीन डेवलपमेंट पर 11 अरब डॉलर का निवेश किया है. मॉर्डना के साथ अमेरिकी सरकार ने शुरुआत में ही 10 करोड़ डोज के ऑर्डर पर समझौता कर लिया था. इस बीच, अमेरिकी संसद में एक कानून भी पेश किया गया समें देश में तैयार हो रही वैक्सीन के निर्यात पर देश की डिमांड पूरी होने तक रोक लगाने की मांग की गई है.
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चीन 10 लाख लोगों को लगा चुका है वैक्सीन
कोरोना वायरस की जहां से शुरुआत हुई थी उस चीन में भी वैक्सीन पर काम काफी एडवांस स्टेज में है. कम से कम 5 कंपनियां वैक्सीन निर्माण में लगी हैं. चीन की कंपनी Sinopharm का दावा है कि 150 देशों में रह रहे चीन के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, डिप्लोमैट्स और स्टूडेंट्स पर इन वैक्सीन का बड़े पैमाने पर ट्रायल किया गया है. चीन का दावा है कि 10 लाख लोगों पर हुए ट्रायल में कोई खराब नतीजे देखने को नहीं मिले.
गरीब देशों को लेकर क्यों जताई जा रही चिंता?
कोरोना का संकट दुनियाभर में फैला हुआ है. इसी के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैक्सीन के लिए शुरुआती तौर पर 35 अरब डॉलर का शुरुआती फंड तय किया था. खासकर गरीब देशों को लेकर चिंता अलग है. तमाम देशों में वैक्सीन नेशनलिज्म पर WHO ने चिंता जताते हुए गरीब देशों पर फोकस करने की बात कही है. संसाधनों की कमी से जूझ रहे गरीब देशों में दुनिया की 87 फीसदी से अधिक आबादी रहती है जबकि यहां स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति काफी खराब है.
COVAX ने जगाई गरीब देशों में उम्मीद
सभी देशों को सुचारू रूप से वैक्सीन देने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर इसी साल अप्रैल में पब्लिक-प्राइवेट वैक्सीन पार्टनरशिप GAVI ने COVAX योजना लॉन्च की थी. इसमें वैक्सीन की फंडिंग और परचेजिंग पावर का पूल बनाने का लक्ष्य रखा गया. ताकि साझेदार देशों को कम कीमत पर वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जा सके. इसमें गरीब देशों को वैक्सीन की दो डोज 4 डॉलर में मुहैया कराए जाने का लक्ष्य रखा गया है. इस योजना में अबतक 2 अरब डॉलर से अधिक की फंडिंग हो चुकी है और 82 से अधिक देश इस समझौते में शामिल हो चुके हैं. इस परियोजना का लक्ष्य है साल 2021 के अंत तक दो अरब डोज वैक्सीन तैयार करना.
चुनौतियां आगे भी कम नहीं
कोरोना वैक्सीन को प्रिजर्व करने के लिए माइनस 70 डिग्री तक तापमान की भी जरूरत एक्सपर्ट बता रहे हैं. ऐसे में अगर इन देशों में कोरोना की वैक्सीन आ भी जाती है तो भंडारण और वितरण को लेकर बड़ी चुनौती होगी. ऐसे में डब्ल्यूएचओ बड़ा नेटवर्क तैयार करने में अहम भूमिका निभा सकता है.
वैक्सीन को लेकर भारत में क्या है स्थिति?
भारत में सीरम इंस्टीट्यूट की मदद से बन रहे ऑक्सफोर्ड वैक्सीन और सरकार के सहयोग से बन रही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की सबसे ज्यादा चर्चा है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला ने फरवरी तक बुजुर्गों और हेल्थ केयर वर्कर्स के लिए और अप्रैल तक आम लोगों के लिए ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के मुहैया हो जाने की बात कही है. इसी के साथ वैक्सीन की दो डोज की कीमत के 1000 से 1100 तक रहने का भी खुलासा किया है. सीरम इंस्टीट्यूट 1 अरब डोज टीके तैयार करेगी और कंपनी की योजना फरवरी से हर माह लगभग 10 करोड़ डोज बनाने की है.
पहले के वैक्सीन के समय क्या था वर्किंग मॉडल?
कोरोना वैक्सीन को लेकर दुनियाभर में जगी उम्मीद के बीच अमेरिकी मेडिकल एक्सपर्ट वॉल्टर ऑरेस्टेन ने दावा किया है कि अब तक के इतिहास में वैक्सीन से सिर्फ एक बीमारी को इंसानों से खत्म किया जा सका है और वह है स्मॉलपॉक्स. अमेरिकी न्यूज वेबसाइट सीएनएन के लिए लिखे लेख में कोरोना वैक्सीन को लेकर जल्दबाजी और बढ़ती उम्मीदों पर चेताते हुए वॉल्टर ऑरेस्टेन ने कहा कि कई वैक्सीन ट्रायल के फेज में हैं और उन्हें आम लोगों को देने से पहले उनपर उठ रहे सवालों के जवाब देने चाहिए ताकि वैक्सीन महामारी को खत्म करे न कि किसी नए संकट का कारण बन जाए.
COVAX की तर्ज पर 2005 में GAVI ने न्यूमोनिया के टीके के लिए भी तमाम देशों का पूल तैयार किया था. इससे वैक्सीन बनने के बाद गरीब देशों में टीकाकरण कर हजारों लोगों की जान बचाई गई. लेकिन 2009 में स्वाइन फ्लू संकट के समय अमीर देशों ने पहले ही वैक्सीन के अधिकांश डोज बुक कर लिए थे.
1 साल में दुनिया ने कोरोना से क्या कुछ खोया?
चीन में पिछले साल 17 नवंबर 2019 को कोरोना वायरस का पहला केस सामने आया था. तबसे अब तक एक साल का समय बीत चुका है. कोरोना संक्रमण चीन से आगे निकलकर करीब 191 देशों में फैल चुका है और दुनिया का कोई भी हिस्सा अब इस महामारी से अछूता नहीं है. अभी तक दुनियाभर में कोरोना के केस 5 करोड़ 80 लाख के करीब पहुंच चुके हैं जबकि 13 लाख से अधिक लोगों की इससे जान जा चुकी है. जबकि लॉकडाउन के कारण लाखों लोगों का रोजगार दुनियाभर में छिन चुका है और अरबों-खरबों का वित्तीय नुकसान कंपनियों, कारोबारियों, आम लोगों और सरकारों को हो चुका है. संकट कब तक जारी रहेगा और कब लोगों की मुश्किलें खत्म होंगी इसको लेकर लोगों के मन में तमाम सवाल हैं. वैक्सीन बना रही जर्मन कंपनी BioNTech के सीईओ का अनुमान है कि साल 2021 के आखिर तक ही दुनिया में जनजीवन सामान्य हो सकेगा.