
सुशांत की मौत के करीब 50 दिन बाद पहली बार मुंबई पुलिस सामने आई और उसने बताया कि सुशांत अपनी मौत से पहले गूगल पर मौत ढूंढ रहे थे. पर मुंबई पुलिस की अब तक की जांच रिपोर्ट से पहले ये जानना जरूरी है कि एक जीरो एफआईआर ने अचानक दो राज्यों की पुलिस को कैसे लड़ा दिया है. और अब सवाल उठ रहा है कि क्या बिहार पुलिस मुंबई जाकर सुशांत की मौत की जांच कर सकती है?
बिहार के डीजीपी ने साफ कहा "हमारी टीम को जांच में मदद नहीं मिल रही." इस बात पर सफाई पेश करते हुए मुंबई पुलिस के कमिश्नर ने कह दिया कि उन्हें (बिहार पुलिस) अधिकार ही नहीं यहां आकर जांच करें. दरअसल, 26 जुलाई को दो पुलिस इंस्पेक्टर और दो सब इंस्पेक्टर यानी कुल मिलाकर बिहार की चार सदस्यीय टीम मुंबई पहुंची थी. 26 जुलाई को मुंबई में कोरोना के कुल 48661 मामले थे. पर इन चारों को कहीं नहीं रोका गया. वे पैदल, ऑटो, कार, टैक्सी, लग्जरी कार में मुंबई भर में घूमते रहे लेकिन उन्हें किसी ने नहीं पूछा.
मगर 6 दिन बाद पटना के एसपी विनय तिवारी 1 अगस्त को मुंबई पहुंचे. वहां पहले से मौजूद अपने चार साथियों की मदद के लिए. 1 अगस्त को मुंबई में कोरोना के कुल मामले 57118 थे. यानी 26 जुलाई के मुकाबले लगभग 9 हज़ार ज़्यादा. पर 26 जुलाई को बीएमसी को याद नहीं रहा कि बिहार से चार पुलिसवाले आए हैं. उन्हें क्वारनटीन पर भेजना चाहिए. लेकिन 2 अगस्त को बीएमसी को याद रहा और उसने एसपी विनय तिवारी के हाथ पर मुहर लगा कर उन्हें 48 घंटे के लिए उनकी टीम से अलग कर दिया.
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देश के इतिहास में शायद ये पहला मौका है जब दो राज्यों की पुलिस इस तरह सड़कों पर खुलेआम लड़ रही है. और तो और दोनों राज्यों की पुलिस के बीच इस लड़ाई को दोनों ही राज्यों के नेता पूरे दम खम से आगे बढ़ा रहे हैं. यहां तक कि दोनों राज्यों के नेता-मंत्री इस मामले को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं.
सीधे कहें तो कानून के मुहाफ़िज़ खुद लड़ रहे हैं. पर कानून के नाम पर इस लड़ाई में कौन कितना क़ानूनी है और कौन गैरकानूनी इसे कानून की किताब से ही समझते हैं. सबसे पहले बात उस एफआईआर की, जो पटना पुलिस ने दर्ज की है. उसमें तारीख समय शिकायतकर्ता सभी कुछ है.
लेकिन वो वाला कॉलम ख़ाली है, जिस कॉलम में घटना की जगह लिखी जाती है. पर वहां ना पटना लिखा है और ना मुंबई. ये जगह अगर होती तो ये तय होता कि जहां घटना हुई है, उसी इलाके की पुलिस इस मामले की जांच करेगी. अब चूंकि सुशांत की मौत मुंबई में हुई है, तो कायदे से मामले की जांच का अधिकार मुंबई पुलिस के पास है. क्योंकि घटनास्थल उनकी सीमा में आता है.
तो फिर बिहार पुलिस ने ये एफआईआर क्यों दर्ज की? और क्या इस एफआईआर की कोई कानूनी मान्यता है? तो जवाब है- बिल्कुल है. निर्भया केस के बाद 2013 में जस्टिस वर्मा कमेटी ने देश में ज़ीरो एफआईआर की शुरुआत की थी. इसका मकसद ये था कि कई बार शिकायतकर्ता शिकायत कराने एक राज्य से दूसरे राज्य नहीं जा पाता. ख़ास कर रेप और महिलाओं से जुड़े अपराध के मामलों में. इसी को ध्यान में रखते हुए जस्टिस वर्मा कमेटी ने इस ज़ीरो एफआईआर की शुरुआत की.
इसके तहत कोई भी भारतीय नागरिक भारत के किसी भी हिस्से में वो अपनी एफआईआर अपने नज़दीकी पुलिस स्टेशन में लिखा सकता है. भले ही क्राइम कहीं और हुआ हो. जैसे आसाराम बापू केस में दिल्ली के कमला मार्केट थाने में पीड़ित लड़की ने एफआईआर लिखाई थी. हालांकि पीड़िता के साथ रेप जोधपुर में हुआ था. दिल्ली पुलिस ने जीरो एफआईआर लिख कर केस राजस्थान पुलिस के सुपुर्द कर दिया था. क्योंकि घटनास्थल राजस्थान था.
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कानून कहता है कि ज़ीरो एफआईआर दर्ज करने के बाद उस इलाक़े या उस राज्य की पुलिस को वो एफआईआर उस इलाके या राज्य की पुलिस को ट्रांसफर कर देना चाहिए, जहां जुर्म हुआ है. यानी इस हिसाब से एफआईआर दर्ज करने के बाद आगे की जांच के लिए पटना पुलिस को ये ज़ीरो एफआईआर मुंबई पुलिस के हवाले कर देनी चाहिए थी. ताकि मुंबई पुलिस इसकी जांच करे. यानी कानूनन जीरो एफआईआर के आधार पर पटना पुलिस आधिकारिक तौर पर मुंबई जाकर मामले की जांच नहीं कर सकती. और मुंबई पुलिस इसी कानून की दुहाई देकर बिहार पुलिस को जांच से दूर रखे हुए है.
मुंबई पुलिस के कमिश्नर ने अपने बयान में इसी कानून का हवाला भी दिया है. हालांकि बिहार पुलिस के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने आजतक से बात करते हुए कहा कि मुंबई पुलिस चाहती तो लिखित में ये दे सकती थी कि हम आपको जांच करने नहीं देंगे. ना ही केस से जुड़े कोई दस्तावेज़ देंगे. मगर उसने ऐसा नहीं किया और ना ही पिछले 50 दिनों में सुशांत की मौत को लेकर कोई एफआईआर ही दर्ज की. अभी तक वो एडीआर पर ही अपनी जांच आगे बढ़ा रहे हैं. यानी सुशांत की मौत को वो संदिग्ध ही नहीं मानते.
दूसरी तरफ मुंबई पुलिस का कहना है कि चूंकि अभी तक सुशांत के परिवार में से भी किसी ने कोई शिकायत नहीं दी, ना ही किसी पर शक जताया, इसीलिए एफआईआर की नौबत नहीं आई. हालांकि तफ्तीश अब भी जारी है. फिलहाल दोनों राज्यों की पुलिस आमने-सामने है और नेता इनके पीछे-पीछे. लगता है इस लड़ाई का अंत शायद 5 अगस्त को हो जाए. क्योंकि उसी दिन इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.