
कहते हैं नफरत की शक्ल में जब तेजाब की तपन किसी के जिस्म में पड़ती है, तो ये जिस्म के साथ-साथ रूह को भी छलनी कर जाती है. खाल के साथ-साथ तेजाब का शिकार बनने वाले की आत्मा भी गलने लगती है. तभी तो तेजाब की टीस से बेगुनाहों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक ने सख्त कायदे कानून बना रखे हैं. यहां तक कि किसी पर तेजाबी हमला करने के गुनहगारों को कत्ल के बराबर की सजा यानी आजीवन कारावास तक दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद कई बार ऐसा होता है, जब सिस्टम से उलझ कर या हालात से हार कर तेजाब की टीस झेलने वाली कुछ लड़कियां भी इंसाफ से महरूम रह जाती हैं. ये कहानी है कुछ ऐसी ही एक लड़की रुकैया की.
कौन है रुकैया?
34 साल की रुकैया आगरा के शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करती हैं. वो एक ऐसा कैफे है, जिसमें काम करने वाले सभी लोग एसिड अटैक सरवाइवर हैं. एसिड अटैक सरवाइवर यानी तेजाबी हमला झेल कर भी बच निकलने वाले लोग. तेजाबी हमले की टीस से उबर कर रुकैया अब अपनी जिंदगी में आगे तो बढ़ने लगी है, लेकिन सच्चाई यही है कि रुकैया के साथ हुए एसिड अटैक के वाकये को 20 सालों का लंबा वक्त गुजरने के बावजूद उसे अब भी इंसाफ का इंतज़ार है.
इंसाफ की उम्मीद
ये और बात है कि अब ये इंतज़ार ख़त्म होने की उम्मीद बंधने लगी है, क्योंकि इंसान आम तौर पर इंसाफ की आस में जिस पुलिस के पास जाता है, वही पुलिस अब रुकैया को इंसाफ दिलाने खुद उसके दरवाजे पर आ खड़ी है. रुकैया पर हुए तेजाबी हमले और उसके 20 सालों के दर्द को समझने के लिए हमें इस कहानी को शुरू से समझने की जरुरत है.
6 दिसंबर 2022
यही वो तारीख थी, जब आगरा जोन के एडीजी राजीव कृष्ण आगरा शहर के शीरोज कैफे पहुंचे थे. वो कैफे में कुछ एसिड सरवाइवर से बातचीत कर रहे थे, उनका हाल-चाल ले रहे थे. इसी बीच उन्हें पता चलता है कि कैफे में रुकैया और उस जैसी कई और ऐसी लड़कियां हैं, जो एसिड सरवाइवर होने के बावजूद सालों से इंसाफ की राह तक रही हैं. इन लड़कियों की इन कहानियों ने पुलिस की वर्दी के अंदर छुपे एक संवेदनशील इंसान को मानो झिंझोड कर रख दिया.
पीड़िताओं को इंसाफ दिलाने का फैसला
ये वो एसिड सरवाइवर थीं, जिन्होंने अपने परिवार के दबाव में या फिर किसी दूसरी वजह से अब तक इंसाफ के लिए पुलिस में शिकायत ही नहीं की थी. यानी जिस तेजाब ने उनकी हंसती खेलती जिंदगी झुलसा कर रख दी, इन लड़कियों ने उसी तेजाबी हमले को अंजाम देनेवाले गुनहगारों का हिसाब तक करने की हिम्मत तक नहीं जुटाई और तभी उन्होंने ये फैसला कर लिया कि अब वो ऐसी लड़कियों को इंसाफ दिला कर रहेंगे.
ADG ने पुलिस कमिश्नर को दिया आदेश
एडीजी राजीव कृष्ण ने रुकैया की कहानी सुनने के बाद फौरन ही आगरा के पुलिस कमिश्नर डॉ प्रीतिंदर सिंह से बात की. रुकैया और बाकी लड़कियों को इंसाफ दिलाने का हुक्म दिया. तब पुलिस कमिश्नर ने इन लड़कियों को अपने दफ्तर में बुलाया, उनकी कहानी सुनी और अपने मातहत पुलिस अफसरों को इस सिलसिले में एफआईआर दर्ज करने का हुक्म दिया. रुकैया की जिस दर्द भरी कहानी ने बड़े से बड़े और धाकड़ पुलिस अफसरों को भी हिला कर रख दिया, उसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
रुकैया की दर्दभरी दास्तान
रुकैया बताती है, "वो 7 सितंबर 2002 की बात थी. इस तारीख को भला मैं कैसे भूल सकती हूं? मेरे चेहरे पर तेजाब डालने वाला कोई और नहीं बल्कि मेरी बड़ी बहन का अपना देवर था. जो मुझसे शादी करने की जिद पर अड़ा था. उस समय मेरी उम्र महज 14 साल की थी. मैं नाबालिग थी. पढ़ना चाहती थी. घरवाले भी मेरी शादी नहीं करना चाहते थे और ना ही मैं इस शादी के लिए तैयार थी. उस रोज मैं अपनी मां के साथ दीदी की ससुराल अलीगढ़ गई थी. उस समय दीदी का मिसकैरेज हुआ था. इसलिए हम दोनों उनकी मदद के लिए गए थे. उसी समय मेरे जीजा के छोटे भाई ने मुझे शादी का प्रस्ताव दिया. तब खुद उसकी उम्र 24 साल की थी. इस शादी के लिए मेरी मां ने भी मना कर दिया और मैंने भी. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय?"
बहन के देवर ने किया था एसिड अटैक
वो कहती है "बस, यही बात उस शख्स को इतनी नागवार गुजरी कि उसने मेरी जिंदगी ही खराब कर दी. तब हल्का सा अंधेरा छाया था. मैं घर के आंगन में चारपाई के पास थी. उसी समय अचानक उसने मेरे चेहरे पर कुछ फेंका, जिससे मेरा पूरा चेहरा बुरी तरह जलने लगा. शुरू में मुझे लगा कि उसने मेरे चेहरे पर गर्म चाय फेंक दी है, लेकिन जल्द ही जलन की शिद्दत ने मुझे इस बात का अहसास दिला दिया कि ये हमला तेजाब का है."
बड़ी बहन की खातिर नहीं की शिकायत
रुकैया बताती है कि इस वारदात के बाद उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां उसकी हालत लगातार खराब हो रही थी. उसे काफी दर्द हो रहा था. एक दिन बाद उसे अलीगढ़ से आगरा लाया गया. जहां अस्पताल में करीब एक महीने तक उसका इलाज चलता रहा. इस दौरान बात पुलिस से शिकायत करने की भी आई. खुद रुकैया और उसकी मां चाहती थी कि गुनहगार को सजा मिले. पुलिस उस पर एक्शन ले, लेकिन तब उसकी दीदी के ससुरालवालों ने साफ कर दिया कि अगर वो पुलिस के पास गई तो फिर अपनी बड़ी बहन को भी ससुराल से हमेशा-हमेशा के लिए लेकर चले जाए. बस, यही रुकैया की जिंदगी का अफसोसनाक मुकाम साबित हुआ.
गुनहगार को सजा ना दिलवा पाने का अफसोस
रुकैया बताती है कि उस समय दीदी के दो बच्चे थे. उसके ससुरालवालों के इस फरमान से वो डर गई. उसकी मां भी डर गई. उसके पिता पहले ही दुनिया से जा चुके थे और तब उन्होंने सोचा कि अब किसी तरह से चेहरे का इलाज कराया जाए और इस हादसे को भूलने की कोशिश की जाए, क्योंकि अगर उन्होंने पुलिस केस किया तो बहन की जिंदगी भी बर्बाद हो जाएगी. उसकी जिंदगी तो काफी हद तक बर्बाद हो ही रही है.
हालांकि रुकैया की मानें तो उसे इस बात का अफसोस हमेशा रहा कि उसे इतना तड़पाने वाले और उसके चेहरे पर कभी ना मिटनेवाले दाग लगानेवाले शख्स को वो अब तक सजा नहीं दिला सकी. बल्कि सजा तो दूर पुलिस में एक शिकायत भी नहीं कर पाई. इस तरह वक्त गुजरता गया. झुलसे हुए चेहरे के साथ ही रुकैया बड़ी हुई. उसकी भी शादी हुई. उसे अब एक बेटा भी है और फिलहाल वो पिछले कई सालों से आगरा के एसिड अटैक सर्वाइवर कैफे में नौकरी कर रही है.
खुशहाल जिंदगी जी रहा था आरोपी
सितम देखिए कि रुकैया की दीदी के जिस दरिंदे देवर ने रुकैया पर तेजाब फेंका था, वो आज गाजियाबाद में एक खुशहाल जिंदगी जी रहा है. उसकी शादी हो चुकी है, उसे तीन बच्चे भी हैं. उस शायद इस बात का कोई अफसोस भी नहीं होगा कि उसने किसी की जिंदगी बर्बाद कर दी. उसका दिया हुआ जख्म उस लड़की के लिए ताउम्र नासूर बनकर रहेगा.
एसिड अटैक पर क्या कहता है कानून?
अब आपको बताते हैं कि पहले एसिड अटैक को लेकर देश में अलग से कोई कानून नहीं था. यानी ऐसे हमलों पर आईपीसी की धारा 326 के तहत गंभीर रूप से जख्मी करने का केस ही दर्ज होता था. लेकिन बाद में आईपीसी में धारा 326 ए और बी जोड़ी गईं. जिसके तहत तेजाबी हमला करने के मामले को गैर जमानती अपराध माना गया और गुनहगार को कम से कम दस साल और ज्यादा से ज्यादा आजीवन कारावास की सजा देने का प्रावधान किया गया. इसके अलावा उससे जुर्माना वसूल कर पीड़िता की मदद करने का नियम भी बनाया गया.
इसी तरह आईपीसी की धारा 326 बी के तहत अगर किसी को तेजाब से हमला करने की कोशिश करने का गुनहगार पाया जाता है, तो भी उसके खिलाफ गैरजमानती मुकदमा दर्ज कर उस पर कार्रवाई किेए जाने का प्रावधान है. हमले की कोशिश करने पर भी कम से कम पांच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.