
बिहार के बहुचर्चित सेनारी हत्याकांड के 13 दोषियों को पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बरी कर दिया. अश्विनी कुमार सिंह और अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी को फौरन रिहा करने का फरमान सुना दिया. अदालत के इस फैसले से एक बार फिर सेनारी गांव का नरसंहार सुर्खियों में आ गया. लेकिन अभी भी कई लोग हैं, जो नहीं जानते कि आखिर ये पूरा मामला क्या था?
ये था पूरा मामला
ये खौफनाक वारदात बिहार के जहानाबाद जिले की है. जहां सेनारी गांव में एक साथ 3 दर्जन से ज्यादा लोगों को बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया गया था. ये वो दौर था, जब बिहार के उस इलाके में लोगों का एक ही मकसद था, बदला. दरअसल, ये सारा मामला भूमिहार जाति और भूमिहीनों के बीच की उपज था. भूमिहार सारी जमीनों पर कब्जा कर रहे थे और भूमिहीन उन पर खेती करना चाहते थे. भूमिहार कहते थे कि ये सारी जमीनें उन लोगों ने खरीदी हैं. जबकि भूमिहीन बताते थे कि सारी जमीनें धोखे से छीनी गई हैं. लोगों को विश्वास में लेकर मूर्ख बनाया.
ये विवाद काफी बढ़ चुका था. इसमें रणवीर सेना और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) भी शामिल हो चुका था. वो 18 मार्च 1999 का दिन था. उस रात सेनारी गांव में 500 से ज्यादा लोग घुस आए. उन्होंने गांव को चारों ओर से घेर लिया. इसके बाद शुरू हुआ दरिंदगी का खेल. गांव के घरों से खींच-खींच कर पुरुषों को बाहर निकाला गया. फिर उनमें से 40 लोग चुने गए, जिन्हें जानवरों की तरह खींचकर गांव से बाहर ले जाया गया. फिर उन्हें तीन टीम में बांट दिया गया. फिर सबको एक साथ खड़ा किया गया और बारी-बारी उनका गला काट दिया गया और उनके पेट चीर दिए गए. नतीजा ये हुआ कि उनमें से 34 लोग मौके पर ही मर गए. जबकि कुछ लोग वहां पड़े तड़प रहे थे.
मारने वालों में इतनी नफरत और गुस्सा भरा था कि वे एक एक कर सबको मारते गए. ना कुछ सुना ना कुछ कहा. सेनारी गांव भूमिहारों का था. जबकि मारने वाले आरोपी एमसीसी के थे. घटना के अगले दिन पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार पद्मनारायण सिंह वहां जा पहुंचे. वो सेनारी गांव के ही निवासी थे. अपने परिवार के 8 लोगों की फाड़ी हुई लाशें देखकर उनको दिल का दौरा पड़ा और वे मर गए.
इस वारदात से इलाके में ऐसी दहशत फैल गई कि इलाके में लोग लाइसेंसी हथियारों के साथ घरों की छतों पर बैठ जाते थे. जिनके पास लाइसेंसी हथियार नहीं थे, वे कट्टा खरीदते थे. पर खरीदते जरूर थे. कई बार अफवाह उड़ जाती थी कि माओ वाले आ गए. और गांव वाले तुरंत पोजीशन ले लेते थे. जिनमें गांव की महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते थे.
सेनारी नरसंहार की जड़ में एक पुरानी रंजिश थी. दरअसल, दिसंबर 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे के शंकरबिगहा गांव में 58 लोगों को तेजधार हथियारों से काट दिया गया था. फिर 10 फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों को काट दिया गया था. मरने वाले सारे लोग दलित समुदाय के थे. जबकि मारने वाले भूमिहार थे.
मामला इतना बढ़ा कि केंद्र सरकार ने उस वक्त बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. मगर कांग्रेस के विरोध के चलते 24 दिनों में ही कानून वापस लेना पड़ा था. जो लोग इन हमलों में मारे गये थे, उनके परिजन बदला लेने के लिए दिन गिन रहे थे. उन्ही लोगों ने सेनारी कांड को अंजाम तक पहुंचाने के लिए साजिश रची थी. 18 मार्च 1999 के दिन गांव को घेरकर सेनारी में इस सामूहिक हत्याकांड को अंजाम दिया गया.
रणवीर सेना भूमिहारों ने बनाई थी और एमसीसी दलितों और भूमिहीनों के लिए लड़ रही थी, भूमिहारों के पास 500 बीघा जमीन थी. जबकि दलित समुदाय के पास बहुत कम जमीन थी. दलित आरोप लगाते थे कि उनकी सारी जमीनें भूमिहारों ने हड़प ली थीं. इस मामले में ऐसा लगता था कि जैसे सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती थी. इस लिए ये मामला इस खूनी अंजाम तक पहुंचा.
इस केस में निचली अदालत ने 2016 में 10 दोषियों को फांसी और 3 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. जिस पर शुक्रवार को पटना हाईकोर्ट का फैसला आया, और 13 दोषियों को बरी कर दिया गया. निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए बिहार सरकार द्वारा पटना हाईकोर्ट में डेथ रेफरेंस दायर किया गया. साथ ही दोषियों ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी. जहां कोर्ट ने आज 13 दोषियों को बरी करने का फैसला सुनाया है.
गौरतलब है कि 2016 में निचली अदालत पहले ही इस मामले में 20 आरोपियों को बरी कर चुकी थी. वहीं इस केस के कुल 70 आरोपियों में से 4 की मौत हो चुकी है. जिसके बाद अब शुक्रवार को पटना हाई कोर्ट ने सेनारी नरसंहार के 13 दोषियों को बरी करने का आदेश देते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने को कहा है.