
बगदादी ने दहशत की सल्तनत बचाने के लिए इराक और सीरिया में अपने मोहरे बिछा रखे हैं. इनमें कुछ छोटे हैं कुछ बड़े हैं. कुछ वज़नदार हैं तो कुछ बस प्यादे हैं. मगर इस बिसात के प्यादों को कम मत समझिएगा. ये दिख ज़रूर छोटे रहे हैं. मगर असर इनका इतना है कि सामने वाले के किले को एक झटके में भेद देते हैं. इन्हीं को सामने रखकर बगदादी अपने सिंहासन को बचाने की जुगत लगा रहा है. इन्हीं से उसे सबसे ज़्यादा उम्मीद भी है. जी हां, ये बगदादी के मासूम मोहरे हैं.
सिंजर की पहाड़ियों पर चढ़कर बगदादी के आतंकियों ने पिछले कई सालों में जो तबाही मचाई. हमने तो बस वही देखा. औरतों की इज़्ज़त को तार-तार किया गया. दुनिया ने आह भरी. बुजुर्गों और जवानों को मार दिया गया. सब का दिल बैठ गया. मगर कहानी वहीं खत्म हो जाती तो फिर भी गनीमत थी. हकीकत ये है कि कहानी तो उसके बाद शुरू होती है. बग़दादी के गढ़ से आई ये कहानी उन दो मासूमों की है जिनके बाप-दादाओं को बगदादी ने मार डाला. मां-बहनों की इज़्ज़त को लूट लिया.
उन्हें कयामत के इस दिन के लिए बचा कर रखा. जी ये कहानी अमजद और असद की है. वो दो यज़ीदी लड़के जिन्हें मांओं की गोद से आतंकी छीन लाए थे. बरसों इनके दिमाग में ज़हर भरा गया. हाथों में खिलौने की जगह ये भारी भरकम एके-47 थमाई गई है. इन मासूमों की ज़िंदगी का फायदा उठाने की बारी बग़दादी की है. आज इन्हें बिलकुल अलग तरह का काम दिया गया है. ये अपने मिशन के हिसाब से ये गाड़ियों की वेल्डिंग कर रहे हैं. उसे पेंट कर रहे हैं. आगे की तैयारी कर रहे हैं.
मगर सवाल ये कि आखिर इन नन्हें मासूमों को ऐसा क्या मिशन मिला है जिसके लिए ये बंदूक थाम कर खड़े हैं. असल में बगदादी इन्हें अपने खौफ को कम करने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. वो खौफ जो उसके लिए कुर्दिश, इराकी, शिया, मिलिशिया और अमेरिकी फौजों ने पैदा किया है. मौत का खौफ. बदला चाहता है बगदादी इन फौजों से. अपने आतंकियों की मौत का बदला. अपने ठिकानों के तबाह होने का बदला. अपनी ज़मीन के खो जाने का बदला. दहशत के कम हो जाने का बदला.
उसके लिए ये तमाम बदले यज़ीदी कौम के ये दो बच्चे लेंगे. पिछले 3 सालों तक इनके दिमाग में इतना ज़हर भर दिया गया है कि अब ये अपना मज़हब भी बदल चुके हैं. अपना मक़सद भी. अब ये बगदादी के लिए कुछ भी कर गुज़रने को तैयार हैं. आतंक की ट्रेनिंग तो ये पहले ही ले चुके हैं. अब इन्होंने आतंक फैलाने की कसम भी खा ली है. ऐसा ब्रेन वॉश किया गया है कि इनका कि अब ये वही सोचते हैं जो बगदादी इन्हें सोचने के लिए कहता है.
बगदादी उस बला का नाम है जो अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है. वो सिर्फ इन्हें मरने के लिए नहीं छोड़ देगा. बल्कि इन्हीं के ज़रिए वो दुनिया को अपने आतंक का पैगाम पहुंचाएगा. बच्चों को मिशन पर भेजने से पहले इन्हीं की ज़बानी वो दुनिया के भटके हुए नौजवानों को बरगलाने की कोशिश कर रहा है. इनके ज़रिए वो ये बताना चाह रहा है कि दुनिया कितनी बुरी और अकेला वो ही भला है. इंटरव्यू ख़त्म हुआ और अब इन बच्चों के लिए बग़दादी पर कुर्बान होने की बारी है.
इनमें से एक को यानी अमजद को बारूद से भरी इस गाड़ी की चाबी दी गई है. इसमें सिर्फ ड्राइवर के बैठने की जगह है वरना तो इसमें सिर्फ बारूद का अंबार भरा है. अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि बगदादी ने इन्हें इतने बरस क्यों पाला है. वो इसलिए ताकि वो इन्हें फिदायीन बना सके. ये उसके लिए जान दे सकें. गाड़ी में लगे इस स्टार्ट बटन को दबाने के साथ ही शुरू हो गया मौत का सफर. टारगेट दूर खड़े सेना के ये टैंकर हैं जिन्हें एक टक्कर के साथ तबाह और बर्बाद करना है.
गलियों से होते हुए बारूद से भरी इस गाड़ी को अमजद ठीक उस जगह पर लेकर पहुंचा जहां इराकी सेना के ये चार टैंकर एक साथ खड़े हुए थे. एक धमाका हुआ. पूरा इलाका गूंज उठा. आग की लपटें सैकड़ों फीट ऊपर तक आई. एक पल में सब कुछ बर्बाद हो गया. अभी तो आपने बगदादी के सिर्फ एक मोहरे को देखा. अभी वो दूसरा मोहरा तो बाकी ही है जिसके दिमाग में पिछले 3 सालों में इतना ज़हर भर दिया है कि वो अब मरने मारने को तैयार हो चुका है. जान देकर वो बगदादी की दहशत का पैगाम सुनाने.