
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो चिंता जताई थी, वो अब बड़ी होती जा रही है. उन्होंने पिछले साल दिसंबर में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में कहा था कि डीपफेक पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती है. इसका इस्तेमाल जानबूझकर झूठ फैलाने के लिए किया जा सकता है. ये बात धीरे-धीरे सच साबित होती जा रही है. खासकर लोकसभा चुनाव में इस तकनीक का इस्तेमाल करके लोगों के साथ धोखाधड़ी की जा रही है. सबकुछ लोगों के वोट को पाने के लिए किया जा रहा है.
इस लोकसभा चुनाव में डीपफेक तकनीक के जरिए फेक वीडियो के शिकार सबसे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बने हैं. उनका आरक्षण को खत्म करने से संबंधित एक फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ है. इसमें उनकी आवाज में कहा गया है कि यदि बीजेपी की सरकार बनती है, तो आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा. ये वीडियो इतना वायरल हुआ कि संघ प्रमुख मोहन भागवत तक को सफाई देनी पड़ गई. इसके बाद बीजेपी ने थाने में केस दर्ज कराया.
इसके साथ ही गृहमंत्रालय ने भी दिल्ली पुलिस को इस मामले में अपनी शिकायत दी. दोनों शिकायतों के आधार पर दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी है. सबसे पहली गिरफ्तारी असम से हुई है. यहां रीतोम सिंह नामक एक शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जो कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुडा रहा है. दिल्ली पुलिस की यूनिट इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटजिक ऑपरेशंस ने तेलंगाना के सीएम को रेवंत रेड्डी को पेश होने का समन भेजा है.
इस मामले में अहमदाबाद साइबर क्राइम पुलिस ने भी दो लोगों को गिरफ्तार किया है. इसमें एक कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी का पीए और दूसरा आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता है. जम्मू कश्मीर में बडगाम के मागम में एक शख्स के खिलाफ केस दर्ज हुआ है, जो कांग्रेसी विचारधारा का समर्थक बताया जा रहा है. इससे पहले फिल्म अभिनेता आमिर खान और रणवीर सिंह भी फर्जी वीडियो का शिकार हो चुके हैं. वीडियो में दोनों वोट मांगते हुए नजर आए थे.
ऑनलाइन सिक्योरिटी फर्म की ये रिपोर्ट चौंकाने वाली है
हालांकि, आमिर खान और रणवीर सिंह ने ना सिर्फ तुरंत इन वीडियो को फर्जी बताया, बल्कि शिकायत भी दर्ज कराई. लेकिन अब लोकसभा चुनाव में एआई और डीपफेक की मदद से लोगों को तस्वीरों, वीडियो और ऑडियो के साथ इस तरह से छेड़छाड़ करके वीडियो-फोटो पहुंचाई जाने लगी हैं. ऑनलाइन सिक्योरिटी फर्म McAfee की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 12 महीनों में 75 फीसदी से अधिक भारतीय किसी न किसी रूप में डीपफेक वीडियो-फोटो के संपर्क में आए हैं.
हर चार में से एक भारतीय को राजनीतिक डीपफेक का सामना करना पड़ा है. 22 फीसदी लोगों ने कहा है कि उनके पास किसी नेता का डीपफेक वाला वीडियो, ऑडियो पहुंचा है, जिसे एक बार तो वो असली ही समझ बैठे. मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक रिसर्च में दावा हुआ कि सच्ची खबर की तुलना में झूठी खबर 70 फीसदी ज्यादा शेयर होने की आशंका रहती है. इसीलिए चुनाव के माहौल में झूठ फैलाने वालों के खिलाफ कई राज्यों में एक्शन शुरू हो चुका है.
विरोधी पार्टी और नेता का डीपफेक वीडियो क्यों बना रहे हैं?
क्या कभी सोचा कि आखिर आज के दौर में नेता ही क्यों दूसरे नेता, अपनी विरोधी पार्टी का झूठा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करने लगे हैं? क्योंकि अब प्रचार प्रसार का तरीका बदल गया है. क्योंकि अब लोग सोशल मीडिया पर नई जानकारी को अधिक शेयर करते हैं. जैसे ही आपको कोई मैसेज, कोई चुटकुला, कोई वीड़ियो, कोई रील, कोई स्टोरी नई लगती है, लोग तुरंत उसे अपने फैमिली वॉट्सएप ग्रुप में, अपने दोस्तों के ग्रुप में शेयर करते हैं.
एक्सपर्ट कहते हैं कि इसीलिए डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए करते हुए इस चुनाव में राजनीतिक दल फेक वीडियो बनाकर उन्हें वोटर तक पहुंचा रहे हैं. और तब झूठी खबरें सच्चे समाचारों की तुलना में ज्यादातर नई और बेहद रोचक नजर आती हैं. यही कारण है कि लोग नएपन के फेर में दूसरों तक उसे भेजते हैं. फेक न्यूज को वायरल करने वालों में बहुतों को पता ही नहीं होता कि वे झूठी बात का प्रचार कर रहे हैं.
क्या है डीपफेक, कब हुआ इसका पहली बार इस्तेमाल?
डीपफेक अंग्रेजी के दो शब्दों से बना है. पहला, डीप और दूसरा फेक. डीप लर्निंग में सबसे पहले नई तकनीकों खास कर जीएएन की स्टडी जरूरी है. जीएएन में दो नेटवर्क होते हैं, जिसमें एक जेनरेट यानी नई चीजें प्रोड्यूस करता है, जबकि दूसरा दोनों के बीच के फर्क का पता करता है. इसके बाद इन दोनों की मदद से एक ऐसा सिंथेटिक यानी बनावटी डेटा जेनरेट किया जाता है, जो असल से काफी हद तक मिलता जुलता हो, तो वही डीप फेक होता है.
साल 2014 में पहली बार इयन गुडफ्लो और उनकी टीम ने इस तकनीक को विकसित किया था. धीरे-धीरे इस तकनीक में नई-नई तब्दीलियां की जाती रहीं. साल 1997 में क्रिस्टोफ ब्रेगलर, मिशेल कोवेल और मैल्कम स्लेनी ने इस तकनीक की मदद से एक वीडियो में विजुअल से छेड़छाड़ की और एंकर द्वारा बोले जा रहे शब्दों को बदल दिया था. उस वक्त इसे एक प्रयोग के तौर पर किया गया था. लेकिन समय के साथ ये तकनीक एक हथियार बन चुकी है.
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हॉलीवुड में बड़े पैमाने पर होता है तकनीक का इस्तेमाल
हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था. कई बार शूटिंग के बीच में ही कुछ कलाकारों की मौत हो जाती या किसी के पास डेस्ट की कमी होती तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. उदाहरण के लिए फिल्म 'फास्ट एंड फ्यूरियस' को देख सकते हैं. उसमें लीड एक्टर पॉल वॉटर की जगह उनके भाई ने भूमिका निभाई थी, क्योंकि शूट के बीच में ही उनकी मौत हो गई थी. डीपफेक तकनीक के जरिए उनको हूबहू पॉल वॉटर बना दिया गया.
यहां तक कि उनकी आवाज भी पॉल जैसी हो गई. शुरू में डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल नकारात्मक तरीके से नहीं होता था. लेकिन जैसे-जैसे इस तकनीक ने तरक्की की, असली-नकली का फर्क करना भी मुश्किल होने लगा. इसका परिणाम ये हुआ कि लोग इसका धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल करने लगे. यहां तक कि हॉलीवुड और बॉलीवुड एक्ट्रेस के पोर्न वीडियो बनाए जाने लगे. कई सारी पोर्न वेबसाइट पर इस तरह के डीपफेक वीडियो भरे पड़े हैं.