
गैर इरादन हत्या या हत्या? आईपीसी की धारा 304 या फिर 302? आखिर अंजलि की मौत का मामला क्या है? हालात और चश्मदीद बता रहे हैं कि ये मामला सीधे-सीधे कत्ल का है. लेकिन दिल्ली पुलिस के मुताबिक ये केस आईपीसी की धारा 304 यानी गैर इरादतन हत्या का बनता है. वैसे आपको बता दें कि गैर इरादतन हत्या के मामलों में अधिकतम सजा 10 साल से लेकर उम्रकैद तक है. लेकिन हमारे देश में इस धारा के मामलों में आज तक किसी को भी 5 साल से ज्यादा सजा नहीं मिली.
चर्चित बीएमडब्ल्यू केस
वो दिन था 10 जनवरी 1999 का. जब पूर्व नौसेना प्रमुख एस.एस. नंदा के पोते संजीव नंदा ने अपनी बीएमडब्ल्यू कार से फुटपाथ पर सो रहे 6 लोगों को कुचलकर मार डाला था. संजीव नंदा पर भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. और सजा हुई फकत दो साल की.
एलिस्टर परेरा केस
बात साल 2006 की है. जब देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एलिस्टर परेरा नाम के एक शख्स ने अपनी कार से सात लोगों को कुचल डाला था. एलिस्टर पर भी आईपीसी (IPC) की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. और बाद में सजा मिली फकत तीन साल.
सलमान खान हिट एंड रन केस
वो 28 सितंबर 2002 की रात थी. जब मायानगरी मुंबई में एक बेकरी के बाहर सो रहे पांच लोगों को सलमान खान की कार ने कुचल दिया था. उनमें से एक की मौत हो गई थी जबकि चार लोग घायल हो गए थे. सलमान पर भी बाकी धाराओं के अलावा आईपीसी (IPC) की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. सजा हुई महज पांच साल की. अभी सुप्रीम कोर्ट से आखिरी फैसला आना बाकी है.
मामूली सजा पाकर बरी हो गए कई लोग
दरअसल, ये तीन केस सिर्फ बानगीभर हैं. आईपीसी की धारा 304 के तहत ऐसे नामालूम कितने सैकड़ों और हजारों केस हैं, जिनमें गुनहगार मामूली सज़ा के बाद बरी हो गए. अब आप सोच रहे होंगे कि हम ये पुराने केस के गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहे हैं. तो इसकी वजह है आईपीसी की धारा 304 के तहत दिल्ली के कंझावला का बिल्कुल नया मामला.
कैसे अलग हैं दोनों मामले
एक ऐसा केस जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं कि ये केस गैर इरादतन हत्या यानी IPC की धारा 304 का है या फिर धारा 302 यानी हत्या का. धारा 302 यानी हत्या के बारे में तो आप जानते ही हैं. जिसमें अधिकतम सज़ा मौत से लेकर उम्र कैद तक है. अब हत्या से गैर इरादतन हत्या अलग कैसे है? और ये आईपीसी की धारा 304 है क्या?
अंजलि केस में साफ नहीं मकसद और इरादा
तो इस बारे में दिल्ली पुलिस की स्पेशल कमिश्नर डॉक्टर सागर प्रीत हुड्डा ने खुद मीडिया को बताया और समझाया. अब ये भी समझ लेते हैं कि कंझावला की अंजलि की मौत के मामले में हत्या की धारा यानी 302 क्यों नहीं लग सकती. तो स्पेशल कमिश्नर सागर प्रीत हुड्डा के हिसाब से मसला मोटिव और इंटेंशन यानी मकसद और इरादे का है.
ऐसे उलझा है मामला
हालांकि स्पेशल सीपी हुड्डा खुद कह रहे हैं कि अंजलि को कार के पहियों तले कुचलकर मारने वालों को पता था कि वो उसे मार रहे हैं. इस हिसाब से मकसद और इरादा दोनों अंजलि की मौत का ही था. यही नहीं.. खुद इस हादसे की इकलौती चश्मदीद भी कह रही है कि कार सवार को पता था कि वो क्या कर रहे हैं. फिर भी वो इसे 302 के लिए फिट केस नहीं मान रहे.
आरोपियों से अंजलि और निधि थे अंजान
स्पेशल कमिश्नर साहब बाकायदा बीएमडब्ल्यू केस का भी हवाला देते हैं. साथ ही ये भी कहना नहीं भूलते कि ऐसे केस पुलिस के लिए बडे चैलेंजिंग होते हैं. 302 और 304 की बहस के दौरान मोटिव और इंटेंशन पर जोर देते हुए स्पेशल कमिश्नर साहब ये भी बताते हैं कि अब तक की तफ्तीश, पूछताछ और कॉल डिटेल में कहीं भी अंजलि और आरोपियों के बीच कोई लिंक दिखाई नहीं दिया. चश्मदीद निधि और आरोपियों के बीच भी कोई लिंक स्थापित नहीं होता यानी कार में सवार लोगों से अंजलि और निधि अंजान थे.
कानूनी सलाह भी ले रही है पुलिस
हालांकि वो ये भी कहते हैं कि मामले की जांच अभी जारी है. नए सबूत और नए सुराग सामने आ सकते हैं. मगर लगे हाथ ये भी जता देते हैं कि अंजलि केस 302 के लिए नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या यानी 304 के लिए एक फिट केस है. हालांकि 302 की धारा एफआईआर में जोड़ने को लेकर बार-बार कुरेदने पर आखिरकार उन्हें कहना पड़ता है कि पुलिस इस पहलू पर हर पहलू से विचार कर रही है, साथ ही कानूनी सलाह भी ली जा रही है.
अंजलि के गुनहगार 5 नहीं 7
बीते गुरुवार को स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस डॉक्टर सागरप्रीत हुड्डा अंजलि केस पर मीडिया से मुखातिब हुए थे. हालांकि इससे पहले वो 93 सेकंड में ही अपनी बात खत्म कर चल गए थे. मगर गुरुवार को वो पूरी तसल्ली से हर सवाल के जवाब देते नजर आए. पर उन्होंने शुरुआत ही एक ऐसी खबर से की जो एक बार फिर दिल्ली पुलिस को कठघरे में खड़ा कर रही है. उन्होंने बताया कि अंजलि की मौत के पांच नहीं सात गुनहगार हैं.
पुलिस की बदलती कहानी
अब ये कमाल की बात है कि नहीं. अपनी स्मार्ट दिल्ली पुलिस को हादसे के 35 घंटे बाद ये पता चलता है कि स्कूटी पर अकेली अंजलि नहीं बल्कि उसकी एक दोस्त निधि भी थी. और चार दिन बाद ये पता चलता है कि आरोपी पांच नहीं सात थे. कार दीपक नहीं अमित चला रहा था.
कार मालिक ने छुपाया सच
दिल्ली पुलिस के मुताबिक चार दिन बाद जो दो नए आरोपी जन्मे हैं, उनके नाम आशुतोष और अंकुश हैं. इसमें आशुतोष वो है जो मारुति बलेनो कार का मालिक है और अंकुश एक और आरोपी अंकित का भाई. आशुतोष पर इल्जाम है कि उसे पता था कि उसकी कार से एक्सीडेंट हुआ है. पांचों आरोपियों ने उसी रात उसे ये बात बता दी थी, लेकिन उसने ये सच पुलिस से छुपा लिया.
निधि की हरकत से पुलिस भी हैरान
दिल्ली पुलिस के मुताबिक चश्मदीद निधि का बयान धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हो चुका है. हालांकि निधि ने अपने बयान में क्या कहा ये अभी उन्हें नहीं मालूम. हादसे के बाद निधि अंजलि को मौके पर मरता छोड़कर क्यों भागी? और क्यों उसने पुलिस या किसी और को इस हादसे की खबर नहीं दी? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि ये जानकर खुद पुलिस भी हैरान है.
पुलिस की लापरवाही
हादसे वाली रात सड़क पर पुलिस की गैर मौजूदगी और पीसीआर का वक़्त पर रिस्पॉन्स न करना भी अंजलि की मौत की एक बड़ी वजह मानी जा रही है. खुद पुलिस के मुताबिक करीब 12 किमी तक तीन तीन थाना इलाकों में अंजलि को पहियों तले घसीटा गया. लेकिन इस दौरान एक भी पुलिसवाला दिखाई नहीं दिया. न ही एक चश्मदीद की कॉल पर पीसीआर ने वक्त रहते रिस्पॉन्स किया.
आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने का वादा
स्पेशल कमिश्नर ने नए साल पर दिल्ली की सड़कों पर ज्यादा चौकसी और सख्ती होने के बावजूद इस हादसे को लेकर अपनी बात कही. दिल्ली पुलिस ने ये भरोसा दिलाया है कि वो अंजलि को न सिर्फ इंसाफ दिलाएंगे बल्कि इस केस में एक मजबूत चार्जशीट भी जल्द ही अदालत में दाखिल करेंगे. उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस ने 18 अलग अलग टीमें इस केस पर लगी हुई हैं.
वैसे कुछ भी कहिए, इतना जरूर है कि जिस तरह दिल्ली वालों और मीडिया ने अंजलि को इंसाफ दिलाने की मुहिम छेड़ी है. उसका असर अब दिखने लगा है. पर काश दिल्ली पुलिस यही मुस्तैदी पहली रात से ही दिखा देती तो इस फजीहत से भी बच जाती.