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Crime Katha: एक कत्ल, शातिर कातिल और 25 साल... पुलिस ने ऐसे किया था सनसनीखेज हत्या का खुलासा

25 साल पहले किशनलाल और सुनीता दिल्ली के ओखला इलाके में रहते थे. दोनों की जिंदगी ठीक से गुजर रही थी. सुनीता उन दिनों गर्भवती थी. दोनों का ध्यान पूरी तरह से घर में आने वाले नए मेहमान पर था. मगर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

किशनलाल मर्डर का खुलासा करने के लिए पुलिसवालों बीमा अधिकारी बनना पड़ा था किशनलाल मर्डर का खुलासा करने के लिए पुलिसवालों बीमा अधिकारी बनना पड़ा था
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 12 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:27 AM IST

कहते हैं कि अगर पुलिस अपने पर आ जाए तो कोई भी मुजरिम बच नहीं सकता और कोई भी केस पुलिस के लिए मुश्किल नहीं होता. हालांकि आज भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जिन्हें सुलझाया नहीं जा सका. कुछ ऐसे मामले भी होते हैं, जो सालों तक पुलिस की फाइलों में दबे रहते हैं और फिर अचानक बरसों बाद पुलिस उन मामलों का खुलासा कर देती है. आज क्राइम कथा में बात ऐसी ही एक मर्डर मिस्ट्री की. जिसे सुलझाने में पुलिस को एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे 25 साल का वक्त लगा.

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4 फरवरी 1997, ओखला इलाका, दिल्ली

किशनलाल और सुनीता दिल्ली के ओखला इलाके में रहते थे. दोनों की जिंदगी ठीक से गुजर रही थी. सुनीता उन दिनों गर्भवती थी. दोनों का ध्यान पूरी तरह से घर में आने वाले नए मेहमान पर था. मगर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 4 फरवरी 1997 को किशनलाल घर से बाहर गया हुआ था. लेकिन वो वक्त से लौटकर घर नहीं आया. तभी अचानक एक शख्स उनके घर पहुंचा और सुनीता को ऐसी खबर सुनाई कि उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. सुनीता को पता चला कि उसके पति की चाकू गोदकर हत्या कर दी गई है.

मौका-ए-वारदात पर पड़ी थी खून से सनी लाश

किशनलाल का कत्ल ओखला इलाके में ही हुआ था. कत्ल की खबर मिलते ही पुलिस भी मौके पर जा पहुंची. मौका-ए-वारदात को पुलिस ने घेर लिया और आस-पास के हालात का जायजा लिया. मौके पर किशनलाल की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. उसे बेरहमी के साथ तेजधार हथियार से गोदा गया था. उसके जिस्म पर चाकू से गोदे जाने के कई निशान दिख रहे थे. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहां भी जमीन पर खून जम गया था. पुलिस ने पंचनामे की कार्रवाई करने के बाद किशनलाल की लाश को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने वहां से सबूत और सुराग जु़टाने की कोशिश भी की लेकिन पुलिस के हाथ कुछ खास नहीं लगा. 

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पुलिस के सामने थे कई सवाल

अब पुलिस ने मामले की छानबीन शुरू कर दी थी. पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि कत्ल के वक्त या उससे पहले किशनलाल किसके साथ था. क्या उसकी किसी से कोई दुश्मनी थी? या किसी से कोई पुरानी रंजिश थी? या किसी लेन-देन का कोई मामला चल रहा था? ऐसे कई सवाल थे, जिनके जवाब पुलिस तलाश करना चाहती थी.

सुनीता को भी था रामू पर शक

पुलिस तहकीकात को आगे बढ़ाते हुए कई लोगों से पूछताछ करती है. इसी दौरान पुलिस को पता चलता है कि आखिरी बार किशनलाल को उसके दोस्त रामू के साथ देखा गया था. यानी कत्ल से पहले किशनलाल अपने दोस्त रामू के साथ था. ये जानकारी पुलिस के लिए काफी अहम थी. पुलिस फौरन रामू की तलाश करती है. लेकिन रामू रहस्यमयी तरीके से लापता हो जाता है. पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिलता. ऐसे में मृतक किशनलाल की पत्नी भी रामू पर ही उसके पति की हत्या का शक जाहिर करती है. 

रामू ने दी थी पार्टी

पुलिस सुनीता के बयान के आधार पर ही अपना पूरा ध्यान रामू पर फोकस करती है. जांच आगे बढ़ती है. तभी पुलिस को पता चलता है कि 4 फरवरी को रामू ने एक पार्टी दी थी. जिसमें किशनलाल को भी बुलाया गया था. वो वहां पहुंचा भी था. सबने मिलकर पार्टी की. खाया पिया. मजे किए. और इसी पार्टी के बाद अचानक किशनलाल की लाश मिलने की खबर आती है. मगर रामू भी गायब हो जाता है. उसका कुछ अता-पता नहीं चलता.

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कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल

पुलिस रामू को तलाश करते करते थक जाती है. मगर उसका कोई सुराग नहीं मिलता. मामला कोर्ट में पहुंच जाता है, जहां पुलिस को जवाब देना होता है लेकिन जब इस मामले का कोई छोर या रामू नहीं मिलते तो पुलिस इस केस को लेकर अदालत में एक रिपोर्ट दाखिल करती है. पुलिस कोर्ट में कहती है कि इस मामले में कोई सबूत नहीं है और संदिग्ध रामू भी फरार है. ऐसे में इस केस का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा.

रामू को भगोड़ा घोषित किया

अदालत पुलिस की रिपोर्ट का जायजा लेने के बाद किशनलाल के दोस्त रामू को भगोड़ा घोषित कर देती है. साथ ही पुलिस को फरमान जारी करती है कि रामू को हर हाल में तलाश किया जाए. पुलिस अदालत के आदेश पर रामू की तलाश जारी रखती है.

पुलिस से इंसाफ की गुहार

इस मामले को लेकर किशनलाल की पत्नी सुनीता लगातार पुलिस थाने के चक्कर लगा रही थी. इसी बीच एक दिन वो एक बेटे को जन्म देती है. इसके साथ ही वो ये प्रण भी लेती है कि अपने पति के कातिलों को पकड़वाकर ही दम लेगी. मां बन जाने के बाद भी उसकी ये लड़ाई जारी रहती है. वो पुलिस के सामने जाकर इंसाफ की गुहार लगाती है. अपने पति के कातिल को तलाश करने के गिड़गिड़ाती है.

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हार मान लेती है सुनीता

वक्त बीतता जाता है, लेकिन न तो रामू पुलिस के हाथ आता है और ना ही इस मामले में कोई खुलासा होता है. समय बीतने के साथ-साथ पुलिसवाले भी इस केस में रूचि लेना बंद कर देते हैं. इसी तरह से वक्त बीतने के साथ-साथ सुनीता भी थक जाती है. वो पुलिस के चक्कर लगाना भी बंद कर देती है. वो इसी बात को अपनी किस्मत मान लेती है कि उसकी पति की मौत लिखी थी, तो बस हो गई.

जवान हो गया था सुनीता का बेटा

साल बीतने लगते हैं और सुनीता का ध्यान अपने बच्चे की तरफ हो जाता है, उसे पाल पोसकर बड़ा करने की जिम्मेदारी में वो भी उलझकर रह जाती है. पति की मौत का गम उसके दिल में दफन हो जाता है. साल दर साल बीतते-बीतते सुनीता का बेटा जवान हो जाता है.

फिर से खुल जाती है किशनलाल मर्डर की फाइल

किशनलाल की मौत को 24 साल बीत जाते हैं. साल 2021 आ जाता है. इसी दौरान पुलिस एक टीम बनाती है, जो पुराने पेंडिंग मामलों की फाइलें निकलवाकर उनका निपटारा या खुलासा करने के मिशन पर लग जाती है. इसी टीम के सीनियर अफसर ओखला इलाके की फाइलें भी खंगालते हैं तो उनके हाथ आती है 24 साल पुराने किशनलाल मर्डर केस की फाइल. जिसे देखकर पुलिस को पता चलता है कि इस मामले का खुलासा आज तक हुआ ही नहीं. बस यही देखकर पुलिस इस केस को रिओपन करने का फैसला करती है.

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सुनीता तक पहुंचती है पुलिस की जांच टीम

24 साल बाद नए सिरे से इस मर्डर मिस्ट्री की जांच का आगाज होता है. सबसे पहले पुलिस किशनलाल की पत्नी सुनीता की तलाश शुरू करती है. कुछ दिन की मशक्कत के बाद पुलिस सुनीता तक पहुंच जाती है और उससे इस मर्डर केस के बारे में सारी जानकारी हासिल करती है. पुलिस की इस कवायद से एक बार फिर सुनीता के जख्म भी हरे हो जाते हैं, उसका दर्द आंसू बनकर उसकी आंखों से छलकने लगता है.

रामू के दोस्त टिल्लू की गिरफ्तारी
इसी दौरान सुनीता पुलिस को बताती है कि किशनलाल के दोस्त रामू का तो आजतक कुछ पता नहीं चला. लेकिन रामू का एक दोस्त टिल्लू इलाके में ही कहीं रहता है. इसके बाद नई जांच टीम बिना देर किए टिल्लू तक पहुंच जाती है और उसे हिरासत में ले लेती है. पुलिस उससे पूछताछ शुरू करती है. पहले तो वो इधर-उधर की बात करता है, पुलिस के सामने इस मामले से खुद को अनजान बताता है. लेकिन जब पुलिस सख्ती करती है, तो वो एक ऐसा खुलासा करता है कि सब हैरान रह जाते हैं.

टिल्लू ने किया कातिल का खुलासा
पुलिस की सख्त पूछताछ के सामने टिल्लू टूट जाता है. उसकी सारी चालाकी धरी की धरी रह जाती है. वो पुलिस के सामने रो-रोकर बताता है कि उसने किसी का कत्ल नहीं किया. वो बेकसूर है. कत्ल तो रामू ने किया था. जिसमें उसका कोई हाथ नहीं. पुलिस उससे रामू का ठिकाना पता पूछती है तो कहता है कि उसे नहीं पता कि रामू कहां है. क्योंकि उन दोनों के बीच बरसों से कोई बात या मुलाकात नहीं हुई. रामू ना जाने कहां चला गया. पुलिस उसके बयान की तस्दीक करती है तो पता चलता है कि वो सच बोल रहा था, उसे नहीं पता था कि रामू कहां है?

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जांच टीम ने नहीं हारी हिम्मत
कातिल का खुलासा हो जाने के बाद भी मामले की फाइल को रिओपन करने वाली टीम को लगता है कि 24 साल पुराना मामला है, इसे सुलझाना आसान नहीं होगा. क्योंकि इन 24 बरसों में कई जांच अधिकारी आए और चले गए. संबंधित थाने के कई एसएचओ आए और चले गए. मगर ये मामला लगातार फाइलों में दबा रहा. थोड़ा मायूस हो जाने के बाद भी टीम ने हिम्मत नहीं हारी. वो लगातार सुनीता से बातचीत करती रही.

रामू के भाई की जानकारी
किशनलाल की पत्नी को पहले दिन से ही ये यकीन था कि उसके पति का कातिल कोई और नहीं बल्कि उसका दोस्त रामू ही है. इसी वजह से वो लगातार रामू और उसके करीबियों पर नजर रखती थी. अपने रिश्तेदारों की मदद से वो ऐसा करने में कामयाब रही. इसी के चलते एक दिन सुनीता ही पुलिस टीम के अधिकारियों को बताती है कि रामू भले ही लापता है, लेकिन उसका एक भाई अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के तुगलका बाद इलाके में रहता है.  

सादा कपड़ों में पुलिस ने की रेकी
सुनीता से ये जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम सादे कपड़ों में दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके में जाती है और रामू के भाई के घर की रेकी करती है. सादी वेशभूषा में पुलिसवाले वहां इसलिए जाते हैं, ताकि रामू के बारे में पुख्ता सबूत, सुराग या जानकारी मिल जाए. लेकिन पुलिस जब रामू के भाई तक पहुंचती है तो एक नई खबर मिलती है कि कुछ दिन पहले ही रामू की मां एक सड़क हादसे में मारी गई. यही वजह थी कि वहां गम का माहौल था.

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बीमा अधिकारी बने पुलिसवाले
इसी हालात को देखते हुए पुलिस टीम ने बड़ी फूर्ति से एक प्लान बनाया. जिसमें उस सड़क हादसे को शामिल किया गया, जिसमें रामू की मां का देहांत हुआ था. पुलिस ने उस सड़क हादसे से जुड़ी हर जानकारी जुटाई. हर छोटी-छोटी बात का पता किया. फिर वे इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारी बनकर सादे कपड़ों में रामू के भाई के घर तुगलकाबाद पहुंच जाते हैं. 

मुआवजा देने के नाम पर पूछताछ
घरवालों को भी उन पुलिसवालों पर कोई शक नहीं होता. क्योंकि वे बीमा कंपनी की तरफ से पूछताछ करने की बात कहते हैं. वे घरवालों को बताते हैं कि सड़क हादसे में मरने वाली आपकी मां का बीमा था, जिसका मुआवजा घरवालों को दिया जाना है. लेकिन इससे पहले इस संबंध में कुछ पूछताछ होगी. कुछ सवालों के जवाब देने होंगे. मुआवजा और बीमा की बात सुनकर रामू का भाई और उसकी पत्नी खुश हो जाते हैं.

ऐसे काम कर गई पुलिस की चाल
बीमा अधिकारी बनकर आए पुलिसवाले पूछताछ शुरू करते हैं. वो नाम, पति का नाम, पता और उम्र सब पूछते हुए आगे बढ़ते हैं. वे सवालों को धीरे-धीरे तसल्ली से पूछते हैं ताकि उन लोगों को शक ना हो जाए. फिर वे मृतका के बच्चों के बारे में पूछते हैं. जिसके जवाब में रामू का भाई सब भाई-बहनों के नाम बताता है. जिसमें से एक नाम रामू का भी होता है. फिर भाइयों और उनके बच्चों के नाम पूछे जाते हैं. रामू का भाई वो भी बता देता है. फिर सबके पते ठिकाने पूछे जाते हैं, तो वो सबका पता बता देता है. जिसमें रामू का पता भी शामिल था. वो दिल्ली का ही पुराना पता था. जहां से वो गायब हो चुका था.
 
रामू के बारे में नहीं मिली पुख्ता जानकारी  
रामू का पता बताने के साथ ही उसका भाई बताता है कि वो उसका भाई तो है लेकिन उसके बारे में उसे करीब 24 साल से कोई जानकारी नहीं है. तब पुलिसवालों को भी एक बार लगा कि वाकई उसे अपने भाई रामू के बारे में कोई जानकारी नहीं है. पुलिस ने उनके पास-पड़ोस में भी रामू की तस्वीर दिखाकर पूछताछ की. मुखबिरों से भी पता कराया कि क्या वो अपने भाई के घर तो नहीं आता? लेकिन सबने यही कहा कि वो नहीं आता. अब पुलिस को लगा कि शायद पुलिस से बचने के लिए ही रामू ने अपने रिश्तेदारों से भी दूरी बना ली है.

लखनऊ में रहता था रामू का बेटा
पुलिस इसी उधेड़-बुन में उलझी थी कि कैसे रामू का पता किया जाए. तो इसी बीच रामू के भाई ने सबके बारे में बताते हुए रामू के बेटे का भी जिक्र किया. उसने पुलिस को बताया कि रामू का बेटा लखनऊ में रहता है. बीमा अधिकारी बने पुलिसवालों ने उसका पूरा नाम पता पूछा. रामू ने सरसरी पता बता दिया. पुलिसवाले इस बात से वाकिफ थे कि आजकल की जनरेशन सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहती है. लिहाजा, पुलिस सोशल मीडिया पर रामू के बेटे को तलाश करती है. और पुलिस की तलाश तब जाकर पूरी होती है, जब रामू का बेटा फेसबुक पर नजर आ जाता है.

रामू के बेटे की फेसबुक पर मिला एक चेहरा
इधर, पुलिस देखती है कि मृतक किशनलाल की पत्नी सुनीता भी फेसबुक पर एक्टिव थी. पुलिस ने रामू के बेटे का फेसबुक प्रोफाइल खंगाला और यह जानने की कोशिश करती है कि उसके साथ कौन-कौन फ्रेंडलिस्ट में हैं? तलाश के दौरान पुलिस को रामू के बेटे की फ्रेंडलिस्ट में एक अधेड़ चेहरा दिखाई दिया, जिसका नाम अशोक यादव था. पुलिसवालों की निगाहें उस पर ठहर गई. पुलिस को लगा कि ये अशोक यादव है कौन? 

रामू के बेटे को सुनाई बीमा वाली कहानी
अब इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए पुलिस टीम ने दिल्ली से लखनऊ जाने का फैसला किया. इसी के साथ एक टीम लखनऊ रवाना हो गई. वहां पुलिस टीम सादा कपड़ों में बीमा कंपनी के अधिकारी बनकर रामू के घर पहुंचती है. बीमा अधिकारी बने पुलिसवालों ने रामू के बेटे को भी मुआवजे वाले कहानी सुनाई और कहा कि परिवार में आपसी विवाद ना हो इसलिए आपसे पूछताछ करने आए हैं. रामू का बेटा भी जवाब देने के लिए तैयार हो गया.

पुलिस ने हासिल किया अशोक यादव का पता
अधिकारियों ने परिवार के बारे में पूछताछ शुरू की. रामू के बेटे से पूछा कि उसके पिता कहां हैं? उसने जवाब देते हुए बताया कि वो लखनऊ में ही रहते हैं. पुलिस ने पूछा तुम्हारे पिता का पूरा नाम क्या है? तो उसने जवाब देते हुए कहा- अशोक यादव. पुलिसवाले ये जानकर हैरान रह गए. वो सोचते हैं कि उन्हें तो रामू की तलाश है, फिर ये अशोक यादव कहां से आ गया. बावजूद इसके वे रामू के बेटे उसके पिता का पता पूछ लेते हैं.

अशोक यादव तक ऐसे पहुंची पुलिस
लेकिन पुलिस को आशंका थी कि अगर अशोक यादव को पता चला कि उसके बारे में कोई पूछताछ कर रहा है, तो वो भाग सकता है. ऐसे में पुलिस ने उसके बारे में छानबीन कर पता लगाया कि वो क्या करता है. इसी साल 16 सितंबर को पुलिस ने पता लगा लिया कि अशोक लखनऊ में कहां मिलेगा. ये पता लगाया कि उसका संबंध ईरिक्शा के कारोबार से है. लिहाजा पुलिस ने ई-रिक्शा कंपनी के अधिकारी बनकर उसे मैसेज भिजवाया कि वो उससे एक डील के बारे में मिलना चाहते हैं. 

ई-रिक्शा डील के नाम पर मुलाकात
इसके बाद ईरिक्शा कंपनी के अधिकारी बनकर पुलिसवाले अशोक यादव तक जा पहुंचे. उन्होंने उससे उसका नाम पूछा, तो उसने कहा अशोक यादव. फिर अधिकारियों ने कहा कि आपसे डील करने आए हैं तो आपके आईडी प्रूफ देखने हैं. इसके बाद आशोक यादव ने अपना आधार और अन्य सारे दस्तावेज दिखा दिए. सभी अशोक यादव के नाम से थे. अब पुलिस को लगा कि कहीं हम गलत आदमी के पास तो नहीं आ गए?

सुनीता से कराई कातिल की शिनाख्त
परेशान अधिकारियों की टीम सोच रही थी कि क्या किया जाए? तभी टीम के अधिकारियों ने किशनलाल की पत्नी सुनीता को फोन किया और कहा कि शायद हम आपके पति के कातिल तक पहुंच गए हैं. क्या आप लखनऊ आ सकती हैं, जिस पर सुनीता ने हामी भर दी और वो लखनऊ के लिए रवाना हो गई. अब सुनीता लखनऊ पहुंच जाती है और वहां दिल्ली पुलिस की टीम उसका सामना अशोक यादव से करवाती है. सुनीता किसी बुत की तरह उस आदमी को देखती रहती है और चंद लम्हे रुक-कर कहती है कि यही वो शख्स है, जिसने मेरी मांग उजाड़ दी. ये कहकर सुनीता वहीं बेहोश होकर गिर जाती है.

अशोक यादव ही निकला रामू
दिल्ली पुलिस की विशेष टीम अपने मकसद में कामयाब हो जाती है. 24 साल पहले कत्ल की वारदात को अंजाम देने वाला कातिल पुलिस के सामने मौजूद था. पुलिस फौरन उसे गिरफ्तार कर लेती है. अशोक यादव उर्फ रामू ने शायद कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि वो एक दिन ऐसे पकड़ा जाएगा. पुलिस की टीम सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रामू और सुनीता को लेकर वापस दिल्ली लौट आती है. 

ये थी किशनलाल के मर्डर की वजह
अब दिल्ली में अशोक यादव उर्फ रामू को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले जाती है. उससे सवाल जवाब का सिलसिला शुरू होता है. पूछताछ के दौरान रामू खुलासा करता है कि 4 फरवरी 1997 को उसने ही किशनलाल का कत्ल किया था. कत्ल की वजह पूछने पर रामू बताता है कि उस वक्त उसका हाथ बहुत तंग था. उसे पैसे की सख्त ज़रूरत थी. लेकिन पैसों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. तभी उसे पता चला कि किशनलाल को कहीं मोटी रकम मिली है. इस बात की तस्दीक करने के बाद उसने एक पार्टी रखी और किशनलाल को वहां बुलाया. उसे शराब पिलाई और फिर उसे चाकू से गोदकर मार डाला. कत्ल के बाद उसने किशनलाल की जेब से पैसे निकाले और वहां से फरार हो गया. 

शातिर रामू ने बना ली थी नई पहचान 
फरारी के दौरान रामू यहां-वहां भटकता रहा. उसे पता था कि पुलिस उसे कभी भी पकड़ सकती है. लिहाजा उसने अपने सभी रिश्तेदारों से दूरी बना ली. दिल्ली की तरफ जाना तक बंद कर दिया. फिर वो अलग-अलग तरीके से रास्ते बदल-बदल कर लखनऊ जा पहुंचा. वहां जाकर उसने अपनी नई पहचान और नाम बनाया. इसके बाद उसने अशोक यादव के नाम से ही सारे सरकारी दस्तावेज बनवा लिए और लखनऊ में ही बस गया. कुछ समय बाद उसने अपनी पत्नी को भी लखनऊ बुला लिया और रामू नाम को हमेशा के लिए दफन कर दिया.

मगर कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं. कातिल चाहे कितना भी शातिर हो, एक दिन वो सलाखों के पीछे पहुंच ही जाता है. और इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. पुलिस की स्पेशल टीम ने जिस तरह से इस 24 साल पुराने ब्लाइंड मर्डर केस को रिओपन किया और इसमें जिस तरह से एक्शन लिया, वो भी काबिल-ए-तारीफ है. 

 

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