
देश की सबसे सुरक्षित जेल का तमगा रखने वाली तिहाड़ जेल के अफसरों को क्या मुबारक देनी चाहिए? मुबारकबाद तिहाड़ जेल को मिट्टी में मिला देने के लिए, मुबारकबाद तिहाड़ जेल को बेच डालने के लिए. मुबारकबाद तिहाड़ को जेल से कत्लगाह बना देने के लिए. मुबारकबाद तिहाड़ को गुंडों के हवाले कर देने के लिए. बड़ी शर्म की बात है कि हमारे देश में एक ऐसी जेल है, जिसे जेल के अफसरों और कर्मचारियों ने जुर्म का अड्डा बना डाला. इसलिए कहना पड़ रहा है कि तिहाड़ जेल पर ताला ही लगा देना चाहिए.
पुलिसवालों के सामने कत्ल की दो वारदात
आपको अतीक अहमद और अशरफ के मर्डर का मंजर तो याद होगा. वहां 17 पुलिसवाले थे और उन 17 पुलिसवालों के सामने ही उन दोनों भाईयों को तीन बेखौफ शूटर्स ने गोलियों से भून डाला था. ऐसा ही दूसरा मंजर सामने आया देश की सबसे सुरक्षित जेल से, जहां दस पुलिसवाले मौजूद थे और चार लोग उन पुलिसवालों की मौजूदगी में नुकीले खंजर से एक कैदी को गोद रहे थे.
कानून तोड़ने वालों का हौसला बुलंद
इन दोनों वारदातों को जानने के बाद आपको लगता है कि अब कुछ कहने या सुनने की जरूरत है. अगर कानून के रखवालों का ये हाल है तो फिर अंदाजा लगाइये कानून तोड़ने वालों के हौसलों का क्या आलम होगा? तिहाड़ जेल के अंदर जो कुछ चल रहा है, जो कुछ हो रहा है, जिस तरह हो रहा है, उसके बारे में अब तक आप सिर्फ सुनते आए हैं.
खूनी और दहला देने वाला सच आया सामने
पहली बार तिहाड़ के अंदर का नंगा, घिनौना, खूनी और दहला देने वाला जो सच सामने आया है, उसे जानकर आपकी सारी गलतफहमी दूर हो जाएगी. तो चलिए फ्रेम दर फ्रेम तिहाड़ के अंदर हुए एक कत्ल की कहानी को समझने की कोशिश करते हैं. तिहाड़ की जेल नंबर 8 और वॉर्ड नंबर 5 में लगे सीसीटीवी कैमरे में एक फिल्म शुरू होती है, सुबह 6 बजकर 10 मिनट और 45 सेकंड पर. इससे पहले इस वॉर्ड में बिलकुल सन्नाटा था. सुबह का वक्त था. लिहाजा सभी कैदी अपनी-अपनी बैरक और सेल में ही थे. तभी ठीक 6 बजकर 10 मिनट और 58 सेकंड पर सामने बाईं तरफ से एक कैदी ऊपर से नीचे कूदता है.
पहली मंजिल से नीचे उतरे थे हमलावर
दरअसल ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर भी कैदियों के बैरक और सेल हैं. पहले कैदी के कूदने के तुरंत बाद दायीं तरफ एक और कैदी नज़र आता है. जिसने लाल टी शर्ट और काली हाफ पैंट पहनी हुई है. ये कोई और नहीं बल्कि गैंगस्टर टिल्लू ताजपुरिया था. इसी बीच फर्स्ट फ्लोर से एक दूसरा कैदी नीचे कूदता है. टिल्लू ताजपुरिया उसे देखते ही अपनी सेल के अंदर घुस जाता है और सेल का दरवाजा बंद करने लगता है. फर्स्ट फ्लोर से नीचे उतरे दोनों कैदी सेल के बाहर से ही उस पर धारदार हथियारों से हमला करने लगते हैं. इसी बीच एक तीसरा कैदी ऊपर से कूदता है. फिर चौथा कूदता है. कूदते वक्त वो गिर भी जाता है. इस दौरान एक बुजुर्ग कैदी इस चौथे कैदी को रोकने की कोशिश करता है. वो उससे उलझ पड़ता है.
नुकीले हथियारों से ताबड़तोड़ हमला
इधर, पहले ही नीचे कूद चुके तीनों कैदी अब तक टिल्लू ताजपुरिया को उसकी सेल से बाहर खींच चुके थे और अब एक साथ सभी उस पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे थे. इस दौरान दो चार कैदी हमलावरों को रोकने की कोशिश करते हुए नजर आए. मगर कमाल ये है कि अभी तक एक भी पुलिसवाला कैमरे में नमूदार नहीं हुआ. हालांकि इस कैमरे में ऑडियो नहीं है, लेकिन जिस वक़्त टिल्लू ताजपुरिया पर हमला हो रहा था तब इस पूरे वार्ड में चीख पुकार मची हुई थी. एक चीख खुद टिल्लू ताजपुरिया की थी दूसरी चीख हमलावरों की और तीसरी ताजपुरिया को बचाने वाले कैदियों की. लेकिन ये सारी चीखें भी तिहाड़ के किसी भी सिपाही या अफसर के कानों तक नहीं पहुंची.
दस मिनट तक चला खून खराबा
ये खून खराबा पूरे दो मिनट तक चलता रहा. दो मिनट बाद जब हमलावरों को यकीन हो गया कि टिल्लू ताजपुरिया मर चुका है, तो वो वहां से निकल लेते हैं. चूंकि सारे हमलावर पहली मंजिल से नीचे कूदे थे, लिहाजा अब वो नीचे ही रह जाते हैं. सीसीटीवी कैमरे की पहली फिल्म यहीं खत्म हो जाती है. वक्त नोट कर लीजिए 6 बजकर 10 मिनट और 58 सेकंड पर शुरू हुई ये फिल्म 6 बजकर 12 मिनट 42 सेकंड पर खत्म होती है.
33 मिनट बाद दूसरी कोशिश
अब चलिए इसी तिहाड़ की जेल नंबर आठ और वॉर्ड नंबर पांच की एक दूसरी फिल्म की बात करते हैं. ये फिल्म शुरू होती है 6 बजकर 45 मिनट पर यानी पहली फिल्म के खत्म होने के 33 मिनट बाद. इस फिल्म की शुरुआत में वॉर्ड नंबर पांच ही है. जगह वही है जहां टिल्लू ताजपुरिया को मारा गया. इस फिल्म के हिसाब से हमले के बाद भी लगभग 33 मिनट तक टिल्लू ताजपुरिया उसी हालत में उसी जगह पड़ा था. अब 33 मिनट बाद तिहाड़ के बहादुर पुलिसवाले, वहां आते हैं. उन्हें घायल या मर चुके टिल्लू ताजपुरिया को मौके से उठाकर अस्पताल या मुर्दाघर पहुंचाना था. पहले तीन पुलिसवाले कैमरे में एंट्री लेते हैं.
टिल्लू को चादर पर डालकर ले गए थे पुलिसवाले
फिर जालीदार गेट के पीछे दो पुलिसवालों के साथ लाल टी शर्ट में वो कैदी भी दिखाई देता है, जिसने बस कुछदेर पहले ही अपने साथियों के साथ मिलकर टिल्लू ताजपुरिया पर हमला किया था. अब दायें गेट से दो कर्मचारी और दो पुलिसवाले टिल्लू ताजपुरिया को पता नहीं जिंदा या मुर्दा चादर पर रख कर उठाते और घसीटते हुए ले जा रहे हैं. पीछे तीन पुलिसवाले और हैं.
पुलिसवालों के सामने दोबारा हमला
जैसे ही वो पुलिसवाले सलाखों वाले गेट के करीब पहुंचते हैं वो वहीं पर टिल्लू ताजपुरिया को घायल या मुर्दा हालत में जमीन पर रख देते हैं क्योंकि तब तक सामने का दरवाजा खुल चुका था और वही हमलावर जो 33 मिनट पहले टिल्लू पर हमला कर चुके थे. अब जिंदा या मुर्दा टिल्लू पर दोबार हमला शुरू कर देते हैं. वो हथियार जिससे उन्होंने टिल्लू को मारा था अब भी उनके हाथों में ही थे.
सामने आया तिहाड़ जेल के लापरवाही का सच
अब जरा तिहाड़ के बहादुर पुलिसवालों की बहादुरी देखिये. जैसे ही सामने वाला दरवाजा खुलता है. एक-एक कर वो सारे बहादुर पीछे हटते जाते हैं. बस एक पुलिसवाला इसमें दिखाई देता है, जो शुरुआत में उन्हें रोकने की कोशिश करता है. लेकिन फिर वो भी हार जाता है. कुल दस बहादुर पुलिसवालों की मौजूदगी में टिल्लू ताजपुरिया अब सचमुच मर चुका था. पीछे अब सिर्फ तिहाड़ के निकम्मेपन और उनके जांबाज पुलिसवालों की जांबाजी की निशानियां रह गई थीं.
15 मिनट की सीसीटीवी फुटेज ने खोली पोल
ये दूसरी फिल्म कुल 9 मिनट 35 सेकंड की थी. तिहाड़़ की घड़ी में ये फिल्म खत्म होती है सुबह 6 बजकर 25 मिनट पर. यानी 6 बजकर 10 मिनट पर शुरू हुई ये फिल्म कुल 15 मिनट की थी. उस 15 मिनट की फिल्म का हर फ्रेम तिहाड़ की चुगली खा रहा था.
कैमरे की पीछे असल कहानी
अब चलिए इस फिल्म के बाद फिल्म के पीछे की वो कहानी आपको बताते हैं, जो तिहाड़ के सीसीटीवी कैमरे में कैद ना हो सकी और ना हो सकती थी. ये कहानी भी सिलसिलेवार है. बाहर से बिल्कुल सूना सन्नाटा था और वॉर्ड खाली था. दायें बायें और सामने सारे सेल और बैरक हैं. जिनमें कैदी बंद हैं. वहां कहीं भी यहां तक कि किसी कोने में भी एक भी सुरक्षा कर्मी दिखाई नहीं था. अब आप सोच रहे होंगे कि शायद उस एरिया में सुरक्षा कर्मी होते ही नहीं तो फिर आप गलत सोच रहे हैं.
हाई गार्डेड सेल या बैरक में 24 घंटे रहते हैं सुरक्षा गार्ड
तिहाड़ में दो तरह के सेल और बैरक होते हैं. एक आम सेल और बैरक और दूसरा हाई गार्डेड सेल बैरक. आम सेल या बैरक में अमूमन एक सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी होती है. जबकि हाई गार्डेड सेल या बैरक में दो से तीन सुरक्षा गार्ड चौबीसो घंटे मौजूद रहते हैं.
टिल्लू ताजपुरिया की सेल में नहीं था कोई गार्ड
जेल नंबर आठ के वॉर्ड नंबर पांच में टिल्लू ताजपुरिया जिस सेल में बंद था, वो हाई गार्डेड था. वजह ये थी कि टिल्लू ताजपुरिया के राइवल यानी गोगी गैंग के बहुत से गुर्गे इसी वार्ड में फर्स्ट फ्लोर में बंद थे. जहां से वो कूद कर नीचे आए थे. इसी खतरे को देखते हुए टिल्लू ताजपुरिया को उस सेल में रखा गया था. जहां सुरक्षा गार्ड चौबीसों घंटे मौजूद हों. अब कायदे से देखें तो तिहाड़ जेल प्रशासन सफाई देने लायक भी नहीं है. क्योंकि कैमरा पहले ही उनके निकम्मेपन की चुगली खा चुका है. खुद कैमरा ये बता रहा है कि उस पूरे वार्ड में एक भी सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं था.
प्री प्लान्ड था ये हमला?
यहीं पर ये सवाल उठ रहा है कि क्या ये सब कुछ प्री प्लान्ड था. तिहाड़ के भ्रष्ट अफसरों ने जानबूझकर हमलावरों को हमले के मौके दिए. क्या हमलावरों ने भ्रष्ट तिहाड़ से हमले के लिए 15 मिनट खरीदे थे. अगर ये सारे इल्जाम सच हैं तो फिर टिल्लू ताजपुरिया का कातिल वो हमलावर हैं या खुद तिहाड़ जेल?
बिश्नोई गैंग ने चुकाई वक़्त खरीदने की कीमत!
टिल्लू ताजपुरिया के कत्ल के फौरन बाद गोल्डी बराड ने सोशल मीडिया के जरिए ये दावा किया कि ये काम जेल में बंद उसके लोगों ने किया है. गोल्डी बराड़ और लॉरेंस बिश्नोई गैंग के बहुत से गुर्गे तिहाड़ में हैं. तिहाड़ के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो टिल्लू ताजपुरिया पर हमला बेशक फर्स्ट फ्लोर के कैदियों ने किया, लेकिन हमले की जमीन तैयार करने और हमले के वक़्त तिहाड़ के सुरक्षा कर्मियों को वॉर्ड नंबर पांच से दूर रखने का काम लॉरेंस बिश्नोई के खास गुर्गों ने ही किया. जाहिर है वक़्त खरीदने की क़ीमत चुकानी पड़ती है. अब ये क़ीमत कितनी रकम में चुकाई गई ये तो पता नहीं, लेकिन बिना रकम दिए वक़्त छोड़िये तिहाड़ में एक बीड़ी तक नहीं मिलती.
7 पुलिसकर्मियों को वापस तमिलनाडु भेजा
भ्रष्ट हो चुके तिहाड़ के अफसरान पर कोई गाज गिरेगी भी या नहीं ये तो नहीं पता, लेकिन कैमरे में कैद तिहाड़ जेल के उन सात पुलिसवालों को फिलहाल वापस तमिलनाडु भेज दिया गया है. जिनके खिलाफ कार्रवाई के लिए दिल्ली के डीजी जेल ने तमिलनाडु पुलिस को खत लिखा था. लेकिन सवाल उठता है कि क्या उन पुलिसवालों या उनका साथ देने वालों के खिलाफ महज इतनी कार्रवाई बहुत है?