
वो अंग्रेजों के जमाने का पुल था. झूलते हुए पुल पर चलना लोगों को झूले का अहसास कराता था. इस अहसास की कीमत थी 17 रुपये. हालांकि, पुल की उम्र पूरी हो चुकी थी लेकिन लालच की तो कोई उम्र नहीं होती. रविवार को भी उस पुल पर लालच का इतना बोझ डाल दिया गया कि वो बर्दाश्त नहीं कर सका और देखते ही देखते पुल नदी में समा गया. जिस पर खड़े करीब 135 लोगों की जान चली गई. ये हादसा कैसे हुआ? क्यों हुआ? किसकी वजह से हुआ? आइए आपको तफ्सील से बताते हैं.
कौन है असली जिम्मेदार?
गुजरात के मोरबी शहर में मच्छु नदी पर बने झूलते पुल की खौफनाक तस्वीरों को देखकर हर किसी का दिल दहल गया. पुल के गिरने का वो 35 सेकंड का वीडियो जितनी बार आंखों के सामने से गुजरता है, उतनी बार सिहरन पैदा करता है. लेकिन सवाल ये है कि लगभग 143 साल पुराने, सवा मीटर चौड़े और 233 मीटर लंबे उस पुल के टूटने का असली जिम्मेदार कौन है?
हादसे पर उठते संगीन सवाल
आखिर इस छोटे से कमजोर पुल पर एक ही वक्त में करीब 400 लोगों को जाने की इजाजत किसने दी? वो भी बाकायदा टिकट लेकर? लोगों को अंधाधुंध तरीके से टिकट बेचने से पहले प्रशासन ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या इस पुल को लोगों के लिए खोले जाने से पहले इसे फिटनेस सर्टिफिकेट दिया गया था या नहीं? अब हम मोरबी के झूलते पुल के हादसे से उपजे सवालों की पड़ताल करेंगे, ताकि आपको भी ये पता चल सके कि आखिर मोरबी में 135 लोगों की अकाल मौत का असली मुजरिम कौन है? और कैसे दोबारा ऐसे हादसे को होने से पहले ही रोका जा सकता है.
20 फरवरी 1879 को हुआ था उद्घाटन
गुजरात के मोरबी शहर में मच्छु नदी पर ये पुल करीब 143 साल पहले यानी अंग्रेजों के जमाने में बना था. तब इसका उद्घाटन 20 फरवरी 1879 को मुंबई के तत्कालीन गर्वनर रिचर्ड टेंपल ने किया था. इस पुल को बनाने का सारा सामान इंग्लैंड से लाया गया था और उस जमाने में इस पुल को बनाने में करीब साढे़ 3 लाख रुपये खर्च हुए थे.
महल से राज दरबार जाने के लिए इस्तेमाल
उन दिनों मोरबी के राजा वत्सल सर वाघजी ठाकोर अपने राज महल से राज दरबार तक जाने के लिए इस पुल का इस्तेमाल करते थे. लेकिन आजादी के बाद जब देश से राजशाही खत्म हुई तो ये पुल नगर पालिका को सौंप दिया गया. उसके बाद से ही इस पुल की देखभाल और रखरखाव का जिम्मा मोरबी नगर पालिका के पास था.
मरम्मत के बाद खुला था पुल
अब से करीब 6 महीने पहले मेंटेनेंस वर्क के लिए ही इस पुल को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया था. नगर पालिका की निगरानी में इसकी मरम्मत का काम अजंता ओरेवा गुप नाम की एक कंपनी को सौंपा गया और पुल का पुर्जा-पुर्जा जांचने और सुधार लेने के बाद हादसे से ठीक चार रोज पहले यानी 26 अक्टूबर को इस पुल को दोबारा आम लोगों के लिए खोल दिया गया था.
15 साल तक रखरखाव का ठेका
दरअसल, मरम्मत से पहले यानी मार्च महीने तक इस पुल की हालत काफी जर्जर हो चुकी थी, जिसके बाद नगर पालिका ने इस पुल की मरम्मत करवाने का फैसला किया. इसमें अजंता ओरेवा गुप ने रुचि दिखाई और फिर मरम्मत की दर तय होने के बाद इसका काम कंपनी के हवाले कर दिया गया. इस सिलसिले में 7 मार्च को नगर निगम और अजंता ओरेवा ग्रुप के बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत इस कंपनी को ही आने वाले 15 सालों तक इस पुल का रखरखाव करना था.
टिकट के बिना पुल पर नहीं थी एंट्री
फिलहाल, दरबारगढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ने वाले इस पुल पर एंट्री के लिए बाकायदा 17 और 12 रुपये का टिकट तय किया गया था. 17 रुपये का टिकट बड़ों के लिए, जबकि 12 रुपये का बच्चों के लिए. यानी इस पुल पर बिना टिकट पास के किसी का भी जाना मुमकिन नहीं था. वैसे तो इस पुल का मालिकाना हक नगर पालिका के पास था, लेकिन नगर पालिका ने इसके रखरखाव के बाद इसके संचालन की जिम्मेदारी भी ओरेवा नाम की कंपनी के हवाले कर दी थी. एक मोटे अनुमान के मुताबिक इस पुल पर एक वक्त में 100 लोगों के ही जाने की इजाजत थी, लेकिन 30 अक्टूबर की रात जब झूलते पुल टूटा तो सबके माथे पर सिकन आ गई.
प्राइवेट कंपनी को सौंपी रख-रखाव की जिम्मेदारी
मरम्मत के बाद पुल को दोबारा गुजराती नव वर्ष के दौरान खोला गया था. लेकिन दिक्कत ये रही अजंता ओरेवा कंपनी को मेंटेनेंस की जिम्मेदारी सौंपने के बाद मोरबी नगर पालिका कुछ इस तरह से बिल्कुल चैन की नींद सो गई कि उसने ना तो पुल को दोबारा खोलने से पहले उसकी फिटनेस की जांच करने की जरूरत समझी और ना ही पुल पर लोगों की आवाजाही के लिए टिकट बेचने के दौरान उनकी संख्या निर्धारित की.
एक साथ मौजूद थे करीब 400 लोग
अभी कुछ रोज पहले ही गुजराती नव वर्ष की शुरुआत हुई थी. दिवाली की छुट्टियां भी थीं और ऊपर से 30 अक्टूबर को रविवार का भी दिन था. ऐसे में करीब छह महीनों के बाद जब इस झूलते पुल को दोबारा खोला गया तो सैर सपाटे के लिए आने वाले लोगों की तादाद काफी ज्यादा हो गई. इन हालात में पुल पर जाने के लिए रविवार को ताबड़तोड़ टिकट की बिक्री हुई. धीरे-धीरे एक वक्त ऐसा भी आया, जब शाम को करीब 400 लोग एक ही बार में पुल के ऊपर पहुंच गए और ना सिर्फ पहुंच गए, बल्कि कुछ नौजवानों ने शरारत भी शुरू कर दी.
जानलेवा साबित हुआ रोमांच
हादसे के बाद पुल का एक वीडियो सामने आया है, जिसे देखने पर पता चलता है कि सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां थी. जिनमें ज्यादातर नौजवान और बच्चे थे. इनमें से कुछ शरारती नौजवान जोर-जोर से पुल लगे केबल और जाली पर लात मार रहे थे. जिससे पुल हिल रहा था. हालांकि, ये साफ नहीं हो सका कि ये वीडियो किस दिन का है, लेकिन मोरबी के इस पुल पर घूमने जा चुके लोगों का कहना है कि वहां शरारती लड़कों का पुल पर ऐसा करना एक आम बात बन चुकी थी और ऐसा कर लड़के पुल को हिलाते थे. जिससे थ्रिल यानी रोमांच की अनुभूति होती थी. लेकिन 30 अक्टूबर की शाम को झूलते पुल पर से हिलते हुए नीचे मच्छु नदी के पानी को निहारने का रोमांच जानलेवा साबित हुआ.
नहीं लिया था फिटनेस सर्टिफिकेट
अब बात पुल की मजबूती और उसके फिटनेस सर्टिफिकेट की. मोरबी नगर पालिका ने गुजराती न्यू ईयर के मौके पर इस पुल को दोबारा खोलने का फैसला तो कर लिया, लेकिन खोलने से पहले इसकी मरम्मत का सही तरीके से जायजा लेने और फिर उसका फिटनेट सर्टिफिकेट जारी करने की जरूरत ही नहीं समझी.
पुल की खामियों को किया गया नजरअंदाज
सवाल ये है कि आखिर मोरबी नगर पालिका ने पुल पर दोबारा आवाजाही शुरू करने से पहले इसकी जांच क्यों नहीं की और इसका फिटनेस सर्टिफिकेट जारी क्यों नहीं किया? ये एक बड़ा सवाल है और इसी सवाल ये एक सवाल ये भी उठता है कि क्या फिटनेस सर्टिफिकेट जारी नहीं करने के पीछे इस पुल के मेंटेनेंस यानी मरम्मत में रही वो कमियां तो नहीं, जिसके चलते इसे फिटनेस सर्टिफिकेट ही नहीं दिया गया और फिटनेस की खामियों को नजरअंदाज कर दिया गया?
डीएम ने ली थी बैठक
मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप झाला का कहना था कि इस मामले में कलेक्टर साहब ने बैठक की थी. बैठक में मरम्मत की दर तय होने के बाद इसका मेंटेनेंस का जिम्मा ओरेवा कंपनी को सौंपा गया और फिर जब ये काम पूरा हो गया तो इस पुल को दोबारा खोल दिया गया. इस सिलसिले में 7 मार्च को ओरेवा के साथ एक समझौते पर दस्तखत भी किए गए थे और इसी समझौते के मुताबिक अगले 15 साल तक ओरेवा को ही पुल का रखरखाव करना था. इसके बाद इस पुल को खोल तो दिया गया, लेकिन नगर पालिका ने इसके फिटनेस का कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं किया था.
किसने दी थी पुल खोलने की इजाजत?
जाहिर है कि झाला के इस बयान से ही अपने-आप में कई सवाल खड़े होते हैं. सवाल ये है कि जब नगर निगम के मुख्य अधिकारी को ही पुल की मजबूती और उसमें हुए मरम्मत की खबर नहीं है तो फिर आखिर इस पुल को खोलने की इजाजत किसने और क्यों दी? चलिए एक बार के लिए अगर ये मान भी लिया जाए कि कंपनी ने खुद अपनी मर्जी से ही इस पुल को आम लोगों के लिए खोल दिया तो भी क्या ये नगर निगम या जिला प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी कि वो इस पर नजर रखती और अगर इसे गलत तरीके से खोला गया था तो इसे बंद करवाती? ऊपर से हद ये है कि अब नगर निगम के मुख्य अधिकारी ही ये कह रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि ये पुल कैसे गिरा और इसकी वजहों की जांच होनी चाहिए.
तीन एजेंसियों से लिए जाने थे सर्टिफिकेट
फिलहाल, मोरबी पुलिस ने इस सिलसिले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. हादसे की जांच के लिए अलग से पांच सदस्यों की एक टीम बना दी गई है. ये भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कंपनी ने पुल को दोबारा शुरू करने से पहले जरूरी कागजात यानी सर्टिफिकेट्स हासिल किए थे या नहीं? अब तक की जानकारी के मुताबिक पुल के लिए कम से कम तीन एजेंसियों से सर्टिफिकेट लेने के लिए जरूरत थी.