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भड़कते शोले, जलती लाशें, बदहवास लोग...हरदा हादसे के चश्मदीदों ने सुनाई दर्दनाक मंजर की खौफनाक दास्तान

Harda Blast: मध्य प्रदेश के हरदा शहर की मंगलवार सुबह शायद अब तक की सबसे बुरी और चीख पुकार से भरी थी. दोपहर की तरफ जाता सूरज 11 बजे करीब अचानक जबरदस्त धमाके की आवाज से ठिठक गया. इन आवाजों के साथ लोगों के घरों के शीशे, टिन, दरवाजे, बर्तन सब हवा में उड़ने लगे थे. इस हादसे के चश्मदीदों ने सुनाई दर्दनाक मंजर की खौफनाक दास्तान.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 150 किलोमीटर दूर हरदा शहर बसा है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 150 किलोमीटर दूर हरदा शहर बसा है.
aajtak.in
  • भोपाल,
  • 07 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:13 PM IST

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 150 किलोमीटर दूर हरदा शहर बसा है. करीब 7 लाख की आबादी वाले इस शहर की मंगलवार की सुबह शायद अब तक की सबसे बुरी और चीख पुकार से भरी सुबह थी. दोपहर की तरफ जाता सूरज 11 बजे करीब अचानक जबरदस्त धमाके की आवाज से ठिठक गया. धमाके की गूंज इतनी ताकतवर थी कि 10 किलोमीटर दूर तक उसकी आवाजें सुनाई दे रही थी.

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इन आवाजों के साथ लोगों के घरों के शीशे, टिन, दरवाजे, बर्तन सब हवा में उड़ने लगे थे. कुछ पल के लिए तो शुरु में ऐसा लगा जैसे कोई बम ब्लास्ट हुआ हो. लेकिन फिर जब इस इलाके से इस तरह शोले उठने लगे तो यहां हरेक को अंदाजा हो गया कि किसी चिंगारी ने बारूद की फैक्ट्री यानि पटाखे के कारखाने में जाकर दस्तक दे दी. जिस वक्त धमाका हुआ उस वक्त फैक्ट्री के भीतर और बाहर कई लोग मौजूद थे.

कुछ लोगों को तो वही धमाका हवा में उड़ा कर दूर खेतों और सड़कों तक ले गया. दूर-दूर तक लोगों की लाशे बिखरी पड़ी थी. उस वक्त घायलों की तो सुध लेने वाला भी कोई नहीं था. ऐसे में गिनती नामुमकिन थी. एक बार धमाके और गुबार में लिपटी लपटों के आसमान तक उठने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो अगले कई मिनटों तक ऐसा ही चलता रहा. रुक-रुक कर धमाके होते रहे. लोग बदहवास जान बचाने के लिए भागते रहे.

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आसमान के रास्ते उड़ रहे थे फैक्ट्री से निकले शोले-चिंगारी

पटाखे की इस फैक्ट्री में काम करने वाले बहुत से लोग आस-पास ही रह रहे हैं. फैक्ट्री के साथ-साथ कई घरों में भी बारूद रखे हुए थे. फैक्ट्री से निकले शोले और चिंगारियां आसमान के रास्ते उड़-उड़ कर उन घरों तक पहुंच रही थी. जहां पहले से ही बारूद रखे हुए थे. देखते ही देखते फैक्ट्री के आस-पास के करीब 60 घर भी इसकी चपेट में आ गए. थोड़ी ही देर में उन घरों से धमाकों की आवाजें आने लगीं जहां बारूद रखे थे.

किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस हाल में वो क्या करे. फैक्ट्री के साथ-साथ एक-एक कर लगातार घर जल रहे थे. इस पूरे रास्ते में बहुत सारे लोग तब मौजूद थे. कुछ लोग उन फंसे लोगों को बचाना भी चाहते थे. लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि आग के शोलों में कूदे कैसे? हरदा जैसी छोटी जगह पर इतने बड़े हादसे से निपटने या मदद पहुंचाने के उतने इंतजाम भी नहीं थे. कुल मिलाकर हालात बहुत भयावह थे.

रोते हुए अरुणा राजपूत ने सुनाई दर्दनाक मंजर की दास्तान

इस खौफनाक हादसे के चश्मदीदों ने जो हाल सुनाया है, उसे सुनकर किसी का भी दिल दहल सकता है. पांच बच्चों की मां अरुणा राजपूत ने इस घटना में अपना घर खो दिया और अपने बच्चों के साथ सड़क पर रात बिताई. उन्होंने रोते हुए उस दर्दनाक मंजर के बारे में बताया, "मैं पहले विस्फोट के बाद भाग गई थी. मेरी कॉलोनी में कई लोगों को चोटें आईं और उनका इलाज चल रहा है. मेरा पूरा घर क्षतिग्रस्त हो गया. 

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अरुणा राजपूत करीब 15 साल पहले शादी करके इस इलाके में आई थी. उन्होंने कहा, "पहले भी छोटी-मोटी घटनाएं हुई थीं लेकिन इस बार मैं बेघर हो गई हूं. मैंने सड़क पर रात बिताई है. मेरे पास कुछ नहीं बचा है और मैं सरकारी मदद चाहती हूं." अपने परिवार के सुरक्षित होने पर भगवान को धन्यवाद करते हुए कहा कि इस हादसे के बाद वो भागती रही, रात में सड़क पर सोई और सुबह अब जाकर लौट हैं.

माता-पिता को खोने वाली नेहा ने कहा- ये तो होना ही था 

इस हादसे में अपने माता-पिता को खोने वाली नेहा ने कहा कि त्रासदी तो होनी ही थी. ऐसी फैक्ट्री रिहायशी इलाकों में संचालित नहीं की जानी चाहिए थी. उन्होंने इस हादसे के लिए सरकार और फैक्ट्री मालिक को जिम्मेदार ठहराया. इस इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने पटाखा फैक्ट्री को हटाने की मांग की थी, लेकिन उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. प्रशासन का रवैया उदासीन रहा है.

नेहा ने रुंधी आवाज में बताया, ''फैक्ट्री और गोदाम का विस्तार कार्य चल रहा था. यह तो होना ही था. मैं इस घटना के लिए सरकार और फैक्ट्री मालिक को जिम्मेदार मानती हूं. उन्हें आबादी वाले इलाके में फैक्ट्री नहीं चलानी चाहिए थी. ऐसी घटना पहले भी हुई थी, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया. सरकार ने उन्हें अनुमति दे दी. फैक्ट्री मालिक जैसे ही पैसा जमा करते, सरकार सील खोल देती.''

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स्थानीय निवासी अमरदास सैनी अपने घर पर थे जब मंगलावर की सुबह करीब 11 बजे पहला विस्फोट हुआ. उन्होंने बताया, ''जब पहला विस्फोट हुआ तब मैं घर पर था. मेरी पत्नी खाना बना रही थी. हम धमाकों के बीच घरे से भागे. बजरी, कंक्रीट के टुकड़े और आग के गोले हमारी ओर गिर रहे थे. सड़क से गुजर रही कई मोटरसाइकिलें बुरी तरह प्रभावित हुई थी. कई लोगों के शरीर के अंग उड़ गए थे. हम पिछले 25 वर्षों से इस इलाके में रह रहे हैं. हमने कलेक्टर को फैक्ट्री हटाने के लिए कई आवेदन दिए हैं, लेकिन किसी ने हमारी याचिका न ही सुनी, न ही कोई कार्यवाही हुई है.''

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