
शबनम की फांसी को लेकर चर्चा जोरों पर है. सच्चाई ये है कि फिलहाल शबनम की फांसी दूर-दूर तक होती नजर नहीं आ रही है. इसकी वजह है सलीम. सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के मुताबिक एक ही जुर्म में अगर एक से ज्यादा लोग शामिल हों तो दोनों को सजा अलग-अलग नहीं दी जा सकती. यहीं मामला फंसा हुआ है. देश में इस वक्त शबनम की फांसी के चर्चे हैं. चर्चा इस बात की भी है कि क्या शबनम फांसी पर चढ़नेवाली देश की पहली महिला होगी? इन चर्चाओं के साथ एक सवाल भी है कि अगर शबनम को फांसी होगी, तो कब होगी?
वहीं ईरान से फांसी की एक दिल दहलानेवाली खबर आई है. दुनिया का ये शायद पहला ऐसा मामला होगा, जब फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले फांसी पानेवाली की दहशत से मौत हो जाए. लेकिन उसकी मौत के बाद भी कानून के नाम पर उसकी लाश को फांसी के फंदे पर लटकाया जाए. लेकिन ईरान में ये सचमुच में हुआ.
पिछले बुधवार को ईरान की राजधानी तेहरान के क़रीब कराद इलाक़े में मौजूद राजाई शहर जेल में एक साथ कुल 17 लोगों को फांसी दी जानी थी. इनमें 16 पुरुष थे और एक महिला. फांसी पाने वाले सभी 17 लोगों की लिस्ट तैयार की गई थी कि किसे पहले फांसी दी जाएगी और किसे सबसे आखिर में. इन 17 लोगों में ज़ारा इस्माइली भी थी. जिसका नंबर 17वां था. यानी 16 लोगों के बाद उसका नंबर आना था.
ईरानी कानून के हिसाब से इन तमाम 17 कैदियों को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया गया. अब इनमें से एक-एक कर सबको फांसी के फंदे पर लटकाना था. यानी जब पहला शख्स फांसी के फंदे पर लटका, तो बाकी 16 उसे अपनी नंगी आंखों से मरते हुए देख रहे थे. इस तरह सामनेवाले को मरते हुए देखना इनकी सज़ा में शुमार था. ज़ारा इस्माइली का चूंकि आख़िरी नंबर था, लिहाज़ा उसे अपनी आंखों से खुद की मौत से पहले बाकी 16 लोगों को मरते हुए देखना था.
मगर ज़ारा का दिल शायद इतना मज़बूत नहीं था. शुरुआती तीन चार लोगों की मौत को देखने के बाद ही उसका दिल बैठ गया. उसे दिल का दौरा पड़ा और वहीं उसकी मौत हो गई. कायदे से ज़ारा की फांसी अब यहीं रुक जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एक ईरानी क़ानून आड़े आ गया. कानून ये कि ईरान में जिसे मौत की सज़ा दी जाती है. उसका टेबल जिस पर खड़ाकर उसे फांसी दी जाती है, उस टेबल को वही शख्स ठोकर मार कर गिराता है, जिसके रिश्तेदार का क़त्ल हुआ है.
यहां ज़ारा इस्माइली की फांसी के दौरान कुर्सी के टेबल को ठोकर मारने का काम उसकी सास फातिमा को करना था. अब तस्वीर ये थी कि ज़ारा को डॉक्टरों ने मुर्दा करार दे दिया. लेकिन मौत फांसी से नहीं हुई थी. लिहाज़ा ज़ारा की लाश को उठा कर फांसी के तख्ते पर लाया गया, फिर उसके गले में फंदा कसा गया और इसके बाद ज़ारा की सास ने ठोकर मारी. कुछ सेकंड तक ज़ारा की लाश यूं ही झूलती रही. फिर उसे नीचे उतारा गया. बाद में ज़ारा के डेथ सर्टिफिकेट पर मौत की वजह लिखी गई. दिल का दौरा पड़ना.
ज़ारा इस्माइली पर अपने शौहर अली रज़ा ज़मानी के क़त्ल का इल्ज़ाम था. अली रज़ा ईरान की इंटेलिजेंस मिनिस्ट्री में अफ़सर था. हालांकि बाद में ज़ारा ने मुकदमे के दौरान बार-बार ये कहा कि उसका शौहर उसे मारता-पीटता था. इसी दौरान एक झगड़े के बीच अपना बचाव करते हुए गलती से उसके हाथों उसके शौहर की जान चली गई. ये क़त्ल उसने जानबूझ कर नहीं किया था, बल्कि अपने बचाव के लिए किया था.
लेकिन अदालत ने ज़ारा की दलील नहीं मानी और पिछले बुधवार को मुर्दा ज़ारा की लाश को भी फंदे से लटका दिया. ज़ारा के अलावा पिछले हफ्ते ही ईरान में तीन और महिलाओं को फांसी दी गई. जबकि 2013 से अब तक वहां कुल 114 महिलाओं को फांसी पर लटकाया जा चुका है.