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मौत से पहले की आवाज़ः 'तुमने हमें बर्बाद कर दिया हिना'

ये दुनिया एक वारदात है और इस वारदात की आखिरी इंतेहा ये है कि इंसान खुद अपना क़ातिल बन जाता है. इससे बड़ा हमला वो इस वारदात के खिलाफ कर ही नहीं सकता. जो लोग खुदकश बमबाज़ों या खुदकुशी करने वालों पर, आत्मघाती सोच के मनोविज्ञान पर रिसर्च कर रहे हैं उनको इस जुमले पर शोध करना चाहिए. इससे पहले कि आज की वारदात से आपको रूबरू कराएं, एक गुज़ारिश आप सबसे. मांग कीजिए कि बच्चों के पाठ्यक्रम में एक सबसे ज़रूरी सब्जेक्ट जोड़ा जाए और वो है ज़िंदगी जीने के तरीके.

आरिफ अपनी पत्नी हिना के बर्ताव से बहुत ग़मजदा था आरिफ अपनी पत्नी हिना के बर्ताव से बहुत ग़मजदा था
परवेज़ सागर/धरमबीर सिन्हा/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2017,
  • अपडेटेड 11:38 AM IST

ये दुनिया एक वारदात है और इस वारदात की आखिरी इंतेहा ये है कि इंसान खुद अपना क़ातिल बन जाता है. इससे बड़ा हमला वो इस वारदात के खिलाफ कर ही नहीं सकता. जो लोग खुदकश बमबाज़ों या खुदकुशी करने वालों पर, आत्मघाती सोच के मनोविज्ञान पर रिसर्च कर रहे हैं उनको इस जुमले पर शोध करना चाहिए. इससे पहले कि आज की वारदात से आपको रूबरू कराएं, एक गुज़ारिश आप सबसे. मांग कीजिए कि बच्चों के पाठ्यक्रम में एक सबसे ज़रूरी सब्जेक्ट जोड़ा जाए और वो है ज़िंदगी जीने के तरीके. ध्यान रहे ये एक चैप्टर नहीं बल्कि एक सब्जेक्ट होना चाहिए. तो आइए अब उस वारदात की तरफ चलें जिसमें समझ की कमी है. यक़ीन की कमी है. जो सामने है झूठ है. जो नहीं है वही सच है.

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मौत से पहले की आवाज़
मौत होती क्या है? ये कैसे आती है? मरने से ठीक पहले इंसान क्या सोचता है? मरने वाले के दिमाग़ में क्या चलता है? मौत सामने देख कर मरने वाले को क्या होता है? जिसे पता है कि उसे कब मरना है, उसकी सोच कैसी होती है? मौत से पहले की आखिरी आवाज़ क्या होती है? ये वारदात है आरिफ हुसैन की. जो अपनी बीवी से मोहब्बत करता था. लेकिन समाज के ज़रूरत से ज्यादा समझदार लोगों ने आरिफ को मजबूर कर दिया कि वो सड़क छोड़ कर रेलवे ट्रैक को चंद आखिरी क़दम चलने के लिए चुने. इन आखिरी चंद लम्हों में वो लगातार अपनी हिना से बातें करता रहा. ट्रेन के गुज़र जाने के बाद मचे चीख़-पुकार के बीच आरिफ के मुंह से निकलने वाले आखिरी शब्द थे हिना.

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मरने से पहले का ऑडियो क्लिप
सोशल साइट्स पर वायरल हो रहे इस छह मिनट के ऑडियो क्लिप में अल्फाज़ कुछ ऐसे हैं जिसे सुन कर यकीन मानिए आपका दिल बैठ जाएगा. इसलिए सुनिए, दिल पर पत्थर रख कर सुनिए. मौत को भी और मौत की उस मंज़रकशी को भी. जो एक शौहर ने अपनी खुदकुशी पर अपनी बीवी को सुनाई. मरने से ठीक पहले. मरते वक्त और मरने के ठीक बाद भी.

बेवफा बीवी से आखिरी बात
जब कोई अपना दर्दनाक मौत मरता है तो रुह कांपती है. मगर आज किसी गैर के मरने पर कांपे तो हमें न कहिएगा. खुद पर मुसीबत आए तो हलक सूखता है. लेकिन आज किसी और की मुसीबत पर गला सूखे तो हमें न कहिएगा. जब मौत आंखों के सामने से गुज़रे तो रौंगटे खड़े होते हैं. मगर आज मौत को कानों से सुनकर अगर रौंगटे खड़े हों तो हमें न कहिएगा. क्योंकि आज वो अपनी बेवफ़ा बीवी से आखिरी बार बात करेगा.

बीवी ने लगाया था झूठा इल्जाम
यूं तो मौत की ये मंज़रकशी सब कुछ खुद ही बयान करेगी है और आप तो अब तक ये भी जान चुके होंगे की बेवफ़ाई किसने की और हुई किसके साथ हुई. मगर फिर भी ट्रेन से कटकर मरने से पहले आरिफ के दर्द को समझ लीजिए. झारखंड में डालटनगंज के नज़दीक ट्रैक पर खड़े होकर आरिफ ने आखिरी बार हिना को फोन किया था क्योंकि एक दिन पहले ही हिना ने उसको और उसके अम्मी-अब्बू पर प्रताड़ना का झूठा इल्ज़ाम लगाकर उन्हें हवालात पहुंचा दिया था.

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बड़ा होकर सवाल करेगा मासूम बेटा
कितना बदनसीब है बोंटू. हां बोंटू अपने बेटे को आरिफ इसी नाम से बुलाया करता था. मगर वो मासूम तब भी सोया था जब इसके अब्बू, इसकी अम्मी की वेवफाई से तंग आकर मौत के रास्ते पर खड़े थे और आज भी सो रहा है. इसे तो अभी इतनी समझ भी नहीं आई कि ये बाप के होने न होने का दर्द समझ सके. अभी तो नहीं मगर जब ये बड़ा होगा. शायद तब ये आरिफ से पूछेगा ज़रूर. अम्मी बेवफ़ा थी तो क्या. मैं तो था. मेरे लिए ज़िंदा रहते.

मौत से पहले ज़बां पर था हिना का नाम
आगे न तो कुछ लिखा जा सकता है. न सुना जा सकता है. और न ही समझा जा सकता है. कहां कोई समझ सकता है उस दर्द को जो हिना से आखिरी बात में आरिफ की आवाज़ में रह रह कर झलका और मरने से पहले भी उसकी निकलती हुई रूह से नाम हिना का ही आया.

हिना ने आरिफ की जिंदगी को किया बदरंग
लेकिन ये हिना वो नहीं जो खुशरंग होती है. ये हिना वो हिना थी. जिसने आरिफ की ज़िंदगी को बदरंग कर दिया. झुठे इल्ज़ाम में पुलिस की मार का दर्द तो उसे गवारा था. मगर मां-बाप को जिस तरह हिना ने पूरे समाज में बेइज्ज़त किया. वो उसके लिए ना-काबिले बर्दाश्त था. पर फिर भी खुदकुशी इसका हल नहीं कहा जा सकता. मौत सबको आनी है. फिर हम ही मौत को क्यों मारें?

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