
Madhumita Shukla Murder Case: वो सात महीने की गर्भवती महिला थी, जिसका कत्ल करने के इल्जाम में उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधु त्रिपाठी जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे थे. मगर पिछले हफ्ते अचानक यूपी सरकार ने एक फरमान जारी किया. जिसमें लिखा था कि दोनों दोषियों ने 20 साल से ज्यादा की सजा काट ली है और उनके अच्छे बर्ताव को देखते हुए उन्हें जेल से रिहा किया जाता है. मगर हैरानी की बात ये है कि इन बीस सालों में से साढ़े आठ साल तो इन दोनों ने अस्पताल में ही गुजारे हैं.
यूपी सरकार का फरमान
दरअसल, वो यूपी सरकार का आदेश है, जिसने राज्य के बाहूबली नेता, छह बार के विधायक और तीन-तीन सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई का रास्ता साफ कर दिया. बीते शुक्रवार को वो रिहा भी हो गए. वही अमरमणि त्रिपाठी जिनपर सात महीने की एक एक गर्भवती महिला की हत्या का इलजाम था और जिसके लिए देश की हर अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी. सिर्फ उन्हें नहीं बल्कि इस कत्ल के लिए उनकी पत्नी मधुमणि को भी यही सजा मिली थी. अब यूपी सरकार के एक आदेश की एक लाइन को ध्यान से देखें. जहां लिखा है कि अमरमणि त्रिपाठी ने 22 नवंबर 2022 तक कुल बीस साल एक महीना और 19 दिन जेल में काटे और जेल में उनके अच्छे आचरण को देखते हुए उन्हें रिहा कर दिया जाए.
अस्पताल में ज्यादा रहे त्रिपाठी दंपति
यूपी सरकार के आदेश के हिसाब से अमरमणि और उनकी पत्नी ने बीस साल से ज्यादा जेल में सजा काटी है. पर अब आपको वो सच बताने जा रहा हैं, जिसे सुनने के बाद उम्र कैद की सजा काट रहा देश का हर कैदी खुद को कोसेगा कि उसके साथ सरकार या कानून ने नाइंसाफी क्यों की? तो पूर्व माननीय विधायक और मंत्री जी की उम्र कैद का कुल जोड़-घटाव ये है कि 2013 यानी पिछले दस साल में दोनों मियां-बीवी सिर्फ 16 महीने ही जेल में रहे. पिछले दो साल यानी 2021 से अब तक तो दोनों जेल गए ही नहीं. और तो और दोनों की रिहाई का परवाना भी उन्हें जेल में नहीं बल्कि गोरखपुर के बीआरडीओ अस्पताल में मिला. खुद जेलर साहब मुस्कुराते हुए वो परवाना लेकर शुक्रवार को अस्पताल पहुंचे थे.
सरकारी अस्पताल के खास कमरे में था ठिकाना
यानी पिछले दस सालों में साढ़े आठ साल से ज्यादा वक्त दोनों मियां-बीवी ने गोरखपुर जेल के बाहर एक सरकारी अस्पताल के दो खास कमरों में फुल आजादी के साथ काट ली. वो भी उन रहस्यमयी बीमारियों के नाम पर जिसके बारे में सही-सही जानकारी आज भी किसी को नहीं पता.
सजा के नाम पर कैसा खेल?
अब ज़रा उसी यूपी सरकार के एक और आंकड़े पर नज़र डालते हैं. ये आंकड़े इसी साल के हैं और यूपी सरकार की तरफ से एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे गए थे. इन आंकड़ों के मुतााबिक इस साल मई तक यूपी की अलग-अलग जेलों में उम्रकैद की सजा पाए कुल 15,771 कैदी बंद हैं. इनमें से 1958 कैदी ऐसे हैं जो 14 साल से ज्यादा की सज़ा काट चुके हैं. पर कमाल देखिए जेल में सचमुच पूरी सजा काटने के बावजूद वक्त से पहले इनकी रिहाई के बारे में नहीं सोचा गया. लेकिन एक महिला के खिलाफ संगीन अपराध करने वाला अपनी पूरी उम्रकैद की आधी सज़ा और आखिरी दस सालों में फकत 16 महीने की सजा काट कर रिहा हो गया.
कानून का मजाक बनाते रहे अमरमणि
देश में कानून, अदालत, जेल और सज़ा को कैसे कोई ठेंगे पर रख सकता है, अमरमणि से बेहतर इसकी कोई दूसरी मिसाल हो ही नहीं सकती. उसने जब चाहा अपनी मर्जी से राज्य बदला, शहर बदला, जेल बदली, सज़ा बदली. एक तरह से कानून और सज़ा को मज़ाक बना कर रख दिया.
9 मई 2003 - मधुमिता शुक्ला की हत्या
यूपी के लखीमपुर की कवयित्री मधुमिता शुक्ला की लखनऊ के पेपर मिल इलाके में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. तब वो सात महीने की गर्भवती थीं. अमरमणि और मधुमिता के बीच संबंध थे और कत्ल की वजह शादी थी. इस कत्ल साजिश में अमरमणि की पत्नी मधु भी शामिल थीं. जब ये वारदात हुई तब अमरमणि मायावती की बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे.
साल 2005 में उत्तराखंड ट्रांसफर किया गया था केस
पहले यूपी पुलिस फिर सीबीसीआईडी बीस दिन तक मामले को लटकाती रही. बीस दिन बाद जांच सीबीआई को सौंपी गई. तब कहीं जाकर अमरमणि और उनकी पत्नि गिरफ्तार हुईं. फिर भी गवाहों को धमकाने का सिलसिला जारी था. इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2005 में केस लखनऊ से उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया गया.
24 अक्तूबर 2007 - उम्र कैद की सजा
देहरादून की निचली अदालत ने इस मामले में अमरमणि और मधुमणि समेत कुल पांच लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई. सज़ा सुनाए जाने के बाद से ही दोनों हरिद्वार की रौशनाबाद जेल में बंद थे. बाद में दोनों ने नैनीताल हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील की. मगर इन दोनों अदालतों ने भी उम्र कैद की सज़ा बरकरार रखी.
13 मार्च 2012 - हरिद्वार से गोरखपुर जेल
अब कानून के सारे रास्ते बंद हो चुके थे और यहीं से अमरमणि ने खुद और खुद की पत्नी के लिए सियासत के रास्ते एक खिड़की खोली. उसने अपनी राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए बड़़ी खाामोशी से बाकी की सज़ा काटने के लिए राज्य और जेल दोनों का ही तबादला करवा लिया. 13 मार्च 2012 को अमरमणि हरिद्वार की रौशनाबाद जेल से गोरखपुर जेल पहुंच गया. मधु पहले ही गोरखपुर पहुंच चुकी थी. गोरखपुर जेल से अमरमणि का गांव और विधानसभा क्षेत्र मुश्किल से 80 किलोमीटर दूर था. यानी अब वो अपने घर आ चुका था लेकिन असली खेल तो अभी बाकी था.
बीमारी के नाम पर त्रिपाठी दंपति पहुंचे अस्पताल
गोरखपुर आने से पहले करीब आठ साल तक अमरमणि जेल में रहा मगर कभी कोई बीमारी नहीं हुई. लेकिन 2012 में गोरखपुर आते ही वो बीमार पड़ना शुरू हो गया. गोरखपुर आने के साल भर बाद ही सबसे पहले मधु 27 फरवरी 2013 को इलाज के नाम पर बीआरडीओ अस्पताल पहुंची. इसके दो हफ्ते बाद ही 13 मार्च 2013 को अमरमणि भी उसी अस्पताल पहुंच गए और तब से ही एक ऐसा इलाज शुरू हुआ जो रिहाई तक कभी खत्म ही नहीं हुआ.
अमरमणि का ठिकाना है रूम नंबर 16
पिछले दस सालों में सिर्फ चंद ऐसे मौके आए जब दोनों अस्पताल से वापस जेल गए हों. ये चंद मौके भी कुल मिला कर 16 महीने के थे. यानी बाकी के साढ़े आठ साल दोनों जेल में नहीं बल्कि गोरखपुर के अस्पताल में रहे. अस्पताल की दूसरी मंज़िल पर प्राइवेट वार्ड है. जिसमें कुल 32 कमरे हैं. उसी प्राइवेट वार्ड के रूम नंबर 16 में अमरमणि और मधु दाखिल हैं. परमानेंटली. दोनों इतने लंबे वक्त से यहां भर्ती हैं कि अब तो इनके 16 नंबर कमरा से नंबर तक हटा दिया गया है. अब प्राइवेड वार्ड में रूम नंबर 15 के बाद सीधे 17 आता है. क्योंकि 16 अमरमणि का परमानेंट कमरा है. यहां पुलिस वालों के साथ-साथ अमरमणि के तमाम गुर्गे हर वक्त मौजूद रहते हैं. कैमरा ले जाने या ऑन करने का तो सवाल ही नहीं उठता.
जब अस्पताल से जेल भागे थे अमरमणि
एक बार जब ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चें की मौत की खबर को लेकर अस्पताल पर उंगली उठी थी और तब मीडिया वहां पहुंच गई थी, तब ये ख़बर सुन कर अमरमणि अपनी पत्नी के साथ फौरन अस्पताल से जेल भाग लिए थे. ताकि मीडिया में उनकी तस्वीरें ना आ जाएं. मामला ठंडा होते ही वो वापस फिर से जेल से अस्पताल पहुंच गए थे.
अमरमणि का शातिर अंदाज
2019 में अमरमणि की बेटी की सगाई थी. सगाई दिल्ली में होनी थी. सगाई में शामिल होने के लिए कोर्ट ने अमरमणि को पेरोल देने से मना कर दिया. अमरमणि ने सगाई में शामिल होने का दूसरा रास्ता अपनाया. उसने डाक्टरों से मिलीभगत कर इलाज के नाम पर दिल्ली में एम्स जाने का जुगाड़ करा लिया. 17 फरवरी 2019 को दिल्ली में सगाई थी और उससे ठीक एक दिन पहले 16 फरवरी को बीआरडीओ मेडिकल कालेज के डॉक्टरों ने अचानक बिगड़ी तबीयत का हवाला देकर उन्हें दिल्ली के एम्स रेफर कर दिया. सोचिए 17 फरवरी को दिल्ली में बेटी की सगाई और एक दिन पहले अमरमणि को दिल्ली रेफर किया जाना क्या था?
कोई नहीं जानता अमरमणि की बीमारी
अब सवाल है कि आखिर मियां-बीवी पिछले दस सालों में से साढ़े आठ साल तक जेल की बजाए अस्पताल में रह कर किस बीमारी का इलाज करा रहे थे? तो आप जान कर हौरान रह जाएंगे कि दोनों की सही-सही बीमारी की जानकारी आजतक किसी को नहीं दी गई. यहां तक कि अदालतों को भी नहीं. मियां-बीवी की बीमारी को लेकर मधमिता की बहन निधी शुक्ला ने कई बार कोर्ट में शिकायत की. ऐसी ही एक शिकायत पर अदालत ने मेडिकल कालेज प्रशासन से दोनों की बीमारी और इलाज की जानकारी मांगी. पर अस्पताल ने कोर्ट को जवाब ही नहीं भेजा. इस पर कोर्ट ने अस्पताल के तीन बड़े अधिकारियों और डॉक्टर को हटाने का आदेश दे दिया था. लेकिन फिर भी अस्पताल ने दोनों की बीमारी की सच्चाई नहीं बताई.
मानसिक रोगी है अमरमणि?
हालांकि दोनों की बीमारी की खबरें अब तक जो बाहर आई हैं, उसके मुताबिक अमरमणि मानसिक रूप से बीमार हैं. उन्हें नींद नहीं आती. आती है तो सोते हुए डरावने सपने आते हैं. दोनों पैरों में सूजन है. दांत में भी तकलीफ है. साथ ही दिल की भी बीमारी है. वहीं, मधु को गठिया की शिकायत है. कमर और घुटनों में दर्द रहता है. सर्वाइकल भी है. न्यूरो विभाग में इलााज चल रहा है.
त्रिपाठी के मामले में नहीं बना मेडिकल बोर्ड
आम तौर पर सजायाफ्ता कैदियों की लंबी बीमारियों के इलाज का फैसला कोई मेडिकल बोर्ड करता है. बोर्ड में अलग-अलग डाक्टरों की टीम होती है और फिर वही बीमारी को देख कर ये तय करते हैं कि कैदी का इलाज कहां और कैसे कराया जाए. उसे किस अस्पताल में भेजा जाए. मगर कमाल देखिए दस साल में से साढ़े आठ साल अस्पताल में गुजार देने के बावजूद आजतक अमरमणि और उनकी पत्नी मधु के मामले में कभी किसी मोडिकल बोर्ड की सिफारिश नहीं ली गई.
अमरमणि त्रिपाठी का नया खेल
ये शायद देश का पहला ऐसा मामला होगा, जिसमें उम्र कैद की सजा पाए किसी कैदी की रिहाई का परवाना जेल की बजाए अस्पताल पहुंचा हो और जो जेल की जगह अस्पताल से रिहा हुआ हो. हालांकि शुक्रवार को ही अमरमणि और उसकी पत्नी की रिहाई का परवाना उन्हें मिल चुका है. यानी कानूनी रूप से दोनों अब आज़ाद हैं. मगर इसके बावजूद सोमवार तक दोनों उसी बीआरडी अस्पताल में ही भर्ती थे. सूत्रों के मुताबिक दोनों जानते हैं कि अगर अस्पताल से रिहा होकर समर्थकों के बीच ठीक ठाक पहुंचे तो आगे चल कर दोनों की बीमारी का सच सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है. जिसने उनकी रिहाई पर यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी है. इसलिए बेहतर है कि जहां साढ़े आठ साल अस्पताल में काट लिए वहां कुछ दिन और सही. या फिर ये भी मुमकिन है कि गोरखपुर के अस्पताल से निकल कर किसी नामी अस्पताल से ही छुट्टी ली जाए.