
क्या निर्भया सिर्फ वही है जो मर गई? क्या हम सब हमेशा किसी निर्भया के मरने का ही इंतजार करेंगे? इंतजार करेंगे कि वो पहले मरे क्योंकि हमारा गुस्सा तभी तो जागेगा और जब गुस्सा जागेगा तभी तो फिर हम मोमबत्तियां जलाएंगे. क्यों गलत कह रहा हूं. अगर गलत कह रहा हूं तो फिर उन ज़िंदा निर्भया का क्या जो हमारे देश के हर कोने के किसी गली में हर रोज़ सिसक रही हैं?
कलेजा फट पड़ता है. दिल-दिमाग सोचना बंद कर देता है. लाख यकीन दिलाऊं पर यकीन करने को मन ही नहीं करता. कैसे यकीन कर लूं कि हमारे इसी देश के एक हिस्से में 16 साल की एक ऐसी नाबालिग है, जिसे अब तो ठीक-ठीक ये गिनती भी याद नहीं कि उसकी आबरू को कितने लोगों ने नोचा-खसोटा है. गिनती क्या शायद इंसानों की शक्ल में उन हैवानों के सारे चेहरे भी उसे याद नहीं होंगे. पर फिर भी जेहन और जख्म पर ज़ोर डालने पर उसे लगता है कि शायद कम से कम 400 बार तो उसकी अस्मत लूटी ही गई होगी. जी हां, 400 बार. अब आप कहेंगे कि फिर वो पुलिस के पास क्यों नहीं गई. गई थी पुलिस के पास भी. पर 400 की इस गिनती में कुछ पुलिस वालों की गिनती भी शामिल है जनाब.
सन 2012 के 16 दिसंबर को जब पहली बार निर्भया का जिक्र छिड़ा था, तब भी ये दावे ये वादे सुने थे. अब दरिंदगी का सैकड़ों साल पुराना क़िस्सा महाराष्ट्र के बीड की नई पोशाक पहन कर एकबार फिर हमारे दिलों पर दस्तक दे रहा है. रगों में लहू बन कर उतर चुका दरिंदगी का कैंसर आखिरी ऑपरेशन की मांग कर रहा है. अवाम-सियासत के बीज बोकर हुकूमत की रोटियां सेंकने वाले बातूनी नेताओं, अफलातूनी पुलिस और द़कियानूसी कानून के मुस्तकबिल का फैसला करना चाहती है.
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झकझोर देने वाली ये घटना महाराष्ट्र के बीड जिले के अंबाजोगाई की है। अंबाजोगाई की निर्भया की उम्र जब आठ साल थी तभी मां गुजर गई. सातवीं क्लास के बाद स्कूल भी छुड़वा दिया. फिर जब वो सिर्फ 13 साल की थी तभी बाप ने बोझ समझते हुए 33 साल के शख्स से जबरन उशकी शादी करा दी. शादी के बाद पति 13 साल की मासूम बच्ची के साथ ही जबरदस्ती करने लगा. मारता-पीटता. सास अलग तंग करती. जुल्म जब हद से बढ़े गया तो साल भर के अंदर वो घर लौट आई. बाप ने कहा अब हम तुझे नहीं पालेंगे. घर से निकली तो बस स्टॉप पर पहुंचं गई. फिर नौकरी मांगी तो बदले में अस्मत मांग ली गई.
गरीबी और मजबूरी का भूखे वहशियों ने भरपूर फायदा उठाया. इज्जत तार-तार हुई तो मदद के लिए अंबाजोगाई पुलिस के पास पहुंची. पर पुलिस ने मदद तो नहीं की अलबत्ता उसके साथ हुए बलात्कार की गिनती में जरूर इजाफा कर दिया. एक पुलिस वाला तो उसे अपने साथ लॉज में ले गया.
पूर छह महीने तक दिन-रात उसकी अस्मत लूटी जाती रही और पूरा जिला-शहर अंधा और बहरा बना रहा. फिर इसी दौरान वो गर्भवती हो गई. इस वक्त करीब आठ महीने का गर्भ है उसके पेट में. हालांकि अब खबर आ रही है कि बाल कल्याण समिति पीड़िता का गर्भपात कराने की तैयारी करा रही है कानूनी तरीके से. वैसे शायद ये खबर सामने भी नहीं आती. मगर किसी भले शख्स ने पीड़िता की कहानी सुनी और उसे बाल कल्याण समिति तक पहुंचा दिया. वहीं उसने दरिंदगी की ये सारी कहानी सुनाई.
वैसे अब खबर सामने आने के बाद मुंबई तक उसकी गूंज सुनाई दे रही है. पुलिस भी अब मजबूरी में ही सही जांच पर लग गई है. नौ लोगों के खिलाफ अंबाजोगाई ग्रामीण पुलिस में केस दर्ज हो चुका है. बीड जिला के एसपी ने पूरे मामले की गहराई से जांच करने का भरोसा दिया है. शहर के सभी लॉज की तलाशी लेने के साथ-साथ वहां के सीसीटीवी पुटेज को भी कब्जे में लिए जा रहे हैं.
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फिलहाल पीड़िता बाल कल्याण समिति की निगरानी में है. दूसरी तरफ जैसे-जैसे उसकी कहानी लोगों को पता चल रही है उनका गुस्सा भी जागने लगा है. ठीक वैसे ही जैसे निर्भया के वक्त हुआ था. निर्भया के बाद पूरे देश में जो ग़म और ग़ुस्से का माहौल था वो तब पहली बार टलने का नाम नहीं ले रहा था. तब सबसे ज़्यादा चोट हो रही थी हमारी व्यवस्था पर. और अच्छी बात ये थी कि ये चोट हम ख़ुद कर रहे थे. पहली बार अपने गिरेबान में झांककर देखने की तब कोशिश की थी हम सबने.
वैसे निर्भया तो शायद एक बहाना था. दरअसल सड़कों पर तब उतरा ग़ुस्सा नेताओं और पुलिस के ख़िलाफ़ था. वो नेता जो ख़ुद अपनी हिफाजत में ज़रा भी कमी बरदाश्त नहीं करते और वो पुलिस जो पहले नेताओं की सुरक्षा की गारंटी लेती है. सच पूछिये तो आम हिंदुस्तानी चाहता था कि 16 दिसंबर की वो काली रात फिर किसी की ज़िंदगी में ना आए. पर अफसोस हर महीने, हर हफ्ते, हर दिन, हर दिन में कई-कई बार दिन के उजाले में भी वो काली रात आती रही.
निकम्मी सियासत के इस न ख़त्म होने वाले दंगल में अक़ीदत और भरोसा दोनों थक कर चूर हो चुके हैं. मगर फिर भी बेअसर नेताओं, मंत्रियों, अफसरों , बाबुओं और पुलिस की बेशर्मी को देखते हुए लड़ने पर मजबूर हैं. बेईमान और शातिर सियासतदानों की नापाक चालें हमें चाहे जितना जख़्मी कर जाएं. पर इन आम हिंदुस्तानियों के आगे दम तोड़ देती हैं. मंहगाई, ग़रीबी, भूख और बेरोज़गारी जैसे अहम मुद्दों से रोज़ाना और लगातार जूझती देश की अवाम खुद अपनी हिफाजत के लिए सड़कों पर उतरती रही है.
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सब बस भ्रम ही था. जिसे धुआं समझा था वो ग़ुबार निकला. 16 दिसंबर के बाद क्या-क्या वादे और दावे नहीं किए गए थे. रेप के कानून को बदलने से लेकर रेपिस्ट को फांसी देने और मुकदमे का फैसला चुटकी में निपटाने के ख्वाब दिखाए गए थे. बतााया गया था कि ऐसा सख्त कानून और ऐसा खौफ होगा बलात्कारियों के दिलों में कि कोई किसी की आबरू लूटने से पहले हजार बार सोचेगा. पर बोलवचन और हकीकत में फर्क होता है. कम से कम आंकड़े तो आईना दिखा ही देते हैं.
क्या आपको पता है कि निर्भया के बाद यानी पिछले नौ सालों में हमारे देश में रेप के आंकड़े कितने बदले हैं. आंकड़े देख कर आपको अफसोस होगा. जिस साल निर्भया कांड हुआ था यानी 2012, तब उस साल साल देश भर में 24 हजार 823 निर्भया की अस्मत लूटी गई थी. जबकि 2020 के सबसे ताजा आंकड़ों के मुताबिक निर्भया के आठ साल बाद देश भर में 28 हजार 46 रेप हुए. यानी 2012 में हर रोज देश में 68 निर्भया की इज्जत लूटी जाती थी. जबकि 2020 ये बढ़ कर 77 हो गई है.
आइए 2012 से लेकर 2020 तक के रेप के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं-
वर्ष - मामले
2012 - 24923
2013 - 33707
2014 - 36735
2015 - 34651
2016 - 38947
2017 - 32559
2018 - 33356
2019 - 32033
2020 - 28046
यानी पिछले नौ साल में रेप के मामले बढ़े ही हैं घटे नहीं. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक रेप के मामलों में राजस्थान पहले नंबर पर है. वहां साल भर में रेप की सबसे ज्यादा 5 हज़ार 310 घटनाएं हुईं. राजस्थान के बाद दूसरे नंबर पर है उत्तर प्रदेश. जहां रेप की 2 हज़ार 769 घटनाएं हुईं हैं. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश में 2 हजार 339 घटनाएं हुईं. चौथे नंबर पर महाराष्ट्र रहा. जहां 2 हज़ार 61 रेप के मामले सामने आए. ये तो वे घटनाएं हैं जो रिकॉर्ड में दर्ज हुईं. इनके अलावा तो ना जाने कितनी ऐसी बच्चियों की सिसकियां होंगी जो थानों की चौखट पर पहुंचकर या पहुंचने से पहले ही ख़ामोश कर दी गईं होंगी. ना जाने ऐसी कितनी दरिंदगीं होंगी जो डर या शर्म के मारे घर की दहलीज को ही पार नहीं कीं होंगी.
वैसे 2012 से बीस तक के आंकड़े तो देख लिए आपने. आइए 2002 से 2011 तक के रेप के आंकड़े भी देख लीजिए. इससे समझने में आसानी होगी कि आखिर हमारे देश में पिछले बीस सालों में रेप के मामले कैसे बढ़ रहे हैं-
वर्ष - मामले
2002 - 16373
2003 - 15847
2004 - 18233
2005 - 18359
2006 - 19348
2007 - 20737
2008 - 21467
2009 - 21397
2010 - 22172
2011 - 24206
इन आंकड़ों के हिसाब से पिछले 19 सालों में हिंदुस्तान में करीब पांच लाख बलात्कार के मामले सामने आए हैं. जो कानून व्यवस्था के साथ-साथ हमारे समाज की सोच पर भी सवाल खड़े करते हैं.