
एंटीलिया केस के मास्टरमाइंड बताए जा रहे निलंबित एपीआई सचिन वाज़े और उसके तीन साथियों को ख्वाजा यूनुस की संदिग्ध मौत के मामले में नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. दरअसल, वो एक कस्टोडियल डेथ का मामला था. इस मामले में सचिन वाज़े के साथ कॉन्स्टेबल सुनील देसाई, राजाराम निकम और राजेंद्र तिवारी भी शामिल थे. ये चारों 16 साल तक अपने महकमे से बाहर रहे. और फिर इन निलंबित पुलिसकर्मियों को 16 साल बाद बहाल किया गया. इसी तरह से लखन भैया मर्डर केस ने भी मुंबई पुलिस की काफी किरकिरी कराई थी. क्या हैं ये दोनों मामले, आपको बताते हैं.
ख्वाजा यूनुस कस्टोडियल डेथ 2003
बात 2 दिसंबर, 2002 की है. उस दिन देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के घाटकोपर इलाके में एक बम धमाका हुआ था. जिसमें 2 लोग मारे गए थे और करीब 40 लोग जख्मी हुए थे. इस धमाके की जांच के चलते पुलिस ने 8 लोगों को गिरफ्तार किया था. जिनमें से ख्वाजा यूनुस नाम का एक इंजीनियर भी शामिल था. वह महाराष्ट्र के परभणी जिले का निवासी था. ख्वाजा यूनुस दुबई में नौकरी करता था. मुंबई पुलिस ने 25 दिसंबर, 2002 को उसे इस धमाके के मामले में गिरफ्तार किया. उस पर प्रिवेंशन ऑफ टेरेरिज्म एक्ट (POTA) भी तामील किया गया. पुलिस का दावा था कि यूनुस घाटकोपर ब्लास्ट में शामिल था. लिहाजा उसे आरोपी बना दिया गया.
घाटकोपर थाने में 6 जनवरी, 2003 को यूनुस और तीन अन्य आरोपियों से पूछताछ की गई. अगले दिन 7 जनवरी को यूनुस अचानक लापता हो गया. पुलिस ने दावा करते हुए कहानी बताई कि पुलिस टीम जांच के लिए यूनुस को औरंगाबाद ले जा रही थी. तभी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और यूनुस हिरासत से भाग निकला. मगर ख्वाजा यूनुस के एक साथी आरोपी ने पुलिस की पोल खोल कर रख दी. उसने अदालत में बताया कि पुलिस ने यूनुस को नग्न अवस्था में बुरी तरह से पीटा था. यहां तक कि उसके मुंह और नाक से खून निकल रहा था और इसके बाद वो कहीं गायब हो गया.
बेटे के गायब हो जाने से परिवार परेशान था. दुखी परिजनों ने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया. हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए केस महाराष्ट्र सीआईडी को जांच के लिए सौंप दिया. नतीजा ये निकला कि पुलिस का झूठ सामने आ गया. जांच में पता चला कि पुलिस हिरासत में यूनुस की मौत हो गई थी. इस मामले में एपीआई सचिन वाजे और 3 अन्य पुलिसकर्मी साल 2004 में निलंबित कर दिए गए. इन चारों पर कत्ल और कत्ल के सबूत छुपाने का इल्जाम था.
तभी से ये चारों पुलिसकर्मी सस्पेंड चल रहे थे. 10 माह पहले ही इन सभी को बहाल किया गया था. सचिन वाज़े, सुनील देसाई और राजेंद्र तिवारी लोकल आर्म्स यूनिट में तैनात किए गए जबकि कांस्टेबल राजाराम निकम को एम.वी. डिपार्टमेंट में रखा गया है. इस मामले में करीब 7 आरोपी बरी भी किए जा चुके हैं. लेकिन ख्वाजा यूनुस का परिवार अभी भी इंसाफ की आस लगाए बैठा है.
गैंगस्टर लखन भैया मर्डर केस 2006
ख्वाजा यूनुस की कस्टोडियल डेथ के बाद मुंबई का लखन भैया मर्डर केस भी काफी चर्चाओं में रहा. लखन भैया एक चर्चित गैंगस्टर था. जिसका पूरा नाम रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया था. वो माफिया डॉन छोटा राजन का खास आदमी माना जाता था. उसके खिलाफ कई संगीन मामले दर्ज थे. उस वक्त एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा की टीम लखन की फिराक में थी. इसी के चलते 11 नवंबर 2006 को मुंबई के इलाके में प्रदीप शर्मा की टीम ने लखन भैया को मार गिराया. पर ये एनकाउंटर पहले ही दिन से संदिग्ध था.
लखन भैया का एनकाउंटर जब मर्डर केस में बदल गया तो पुलिस का परेशान होना लाजमी था. इस मामले में प्रदीप शर्मा को मुख्य आरोपी बनाया गया था. लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें इस केस से बरी कर दिया. हालांकि लखन का फर्जी एनकाउंटर करने और सबूतों को मिटाने के आरोप में मुंबई की एक अदालत ने 13 पुलिसकर्मियों और 8 अन्य लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस केस से बरी होने के बाद प्रदीप शर्मा ने वर्दी उतार कर शिवसेना का दामन थाम लिया था.
हालांकि लखन भैया के भाई रामप्रसाद गुप्ता ने हार नहीं मानी वो आज भी इस एनकाउंटर की फिर से जांच कराना चाहते हैं. यहां तक कि उन्होंने इस केस से प्रदीप शर्मा को बरी किए जाने के फैसले को खारिज करने की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की हुई है. आपको बता दें कि सचिन वाज़े विवादित पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा की टीम में काम कर चुका है.