
कब होगी फांसी? क्या 16 दिसंबर से पहले फांसी हो सकती है? या ठीक 16 दिसंबर को ही फांसी होगी जिस दिन निर्भया को नोचा-खसोटा गया था? या फिर 29 दिसंबर को फांसी होगी जिस दिन निर्भया ने दम तोड़ दिया था? फांसी इसी साल होगी या फिर 2020 में होगी? जिधर जाइए इस वक्त लोग बस यही सवाल पूछ रहे हैं कि निर्भया के चारों गुनहगारों यानी मुकेश, पवन, अक्षय और विनय को कब और किस दिन फांसी होगी? तो आइए आज आपको बताते हैं कि फिलहाल पांच ऐसे कानूनी रोड़े हैं जो फांसी के बीच आ रहे हैं.
कहां तो तब ऐसा लग रहा था कि बस अब इंसाफ हुआ कि तब इंसाफ हुआ. बातें हो रही थीं कि देख लेना साल भर के अंदर लटका दिए जाएंगे सारे. मगर साल दर साल बीतता गया. सातवां साल आ गया. शायद ये साल भी बीत जाता. क्या पता बीत भी जाए. वो तो हैदराबाद की डॉक्टर और उन्नाव की उस लड़की ने एक बार फिर देश को गुस्सा दिलाया तब जाकर हमें याद आया कि अरे निर्भया के गुनहगारों की तो अब तक फांसी नहीं हुई है. बस फिर क्या था....याद आते ही अब फांसी, फांसी के तरीके, फांसी के कानून, फांसी की तारीख, फांसी की रस्सी, फांसी का फंदा सब पर बातें होने लगीं.
निर्भया केस किस रफ्तार से आगे बढ़ा, पिछले सात सालों में कब क्या हुआ? साल-दर साल इसकी पड़ताल हो उससे पहले जरूरी है...जरूरी है कि इस वक्त केस किस मोड़ पर खड़ा है, आगे क्या होगा, कब तक फांसी होगी, किस तारीख तक फांसी हो सकती है, किस दिन ब्लैक वारंट जारी होगा, इन कानूनी पहलुओं को जान और समझ लें.
फिलहाल निर्भया के चारों गुनहगार यानी मुकेश, पवन, अक्षय और विनय की फांसी के बीच पांच कानूनी अड़चनें हैं.
पहली कानूनी अड़चन
निर्भया की मां ने फांसी में हो रही देरी को लेकर इसी साल अक्टूबर में पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. उस याचिका पर सुनवाई करते हुए पटियाला हाउस अदालत ने तिहाड़ जेल के डीजी को नोटिस जारी कर चारों कैदियों के केस की ताजा रिपोर्ट मांगी है. इस रिपोर्ट के साथ उन चारों को लेकर 13 दिसंबर को कोर्ट में हाजिर होने को भी कहा है. पटियाला हाउस कोर्ट के इस आदेश के हिसाब से चारों गुनहगारों को 13 दिसंबर से पहले फांसी होने का सवाल ही नहीं उठता.
दूसरी कानूनी अड़चन
दूसरी अड़चन ये है कि चार में से एक विनय ने राष्ट्ररपति के पास दया याचिका भेज रखी है. ये याचिका राष्ट्रपति को मिल भी गई. मगर अभी इस पर आखिरी फैसला आना बाकी है. जब तक राष्ट्रपति भवन से फैसला नहीं आ जाता, फांसी दी ही नहीं जा सकती.
तीसरी कानूनी अड़चन
तीसरी अड़चन ये है कि 10 दिसंबर को एक और गुनहगार अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा को लेकर रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दिया है, जिस पर अभी सुनवाई होगी. रिव्यू पेटिशन खारिज होगी ये भी तय है. मगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक फांसी नहीं दी जा सकती.
चौथी कानूनी अड़चन
चौथी अड़चन ये है कि अगर 13 दिसंबर को पटियाला हाउस कोर्ट में पेशी के दौरान बाकी दोनों गुनहगार यानी मुकेश और पवन कहीं अदालत के सामने कह दें कि वो भी राष्ट्रपति से रहम की अपील करेंगे तो बहुत मुमकिन है कि उन्हें भी ये मौका मिल जाए. इससे फांसी कुछ और दिन टल सकती है. हालांकि, ये भी हो सकता है कि 13 दिसंबर को अदालत ये साफ कर दे कि इतने वक्त तक आप लोगों ने राष्ट्रपति से रहम की अपील क्यों नहीं की? और इस बिनाह पर उसकी अर्जी नामंजूर कर दे. या ये भी हो सकता है कि बाकी दोनों दया के लिए राष्ट्रपति के पास जाएं ही नहीं. ऐसी सूरत में बहुत मुमकिन है कि चारों को जल्दी फांसी दे दी जाए, पर ये जल्दी भी एक-दो हफ्ते का वक्त तो ले ही लेगा.
पांचवीं कानूनी अड़चन
2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत दया याचिका खारिज होने और ब्लैक वारंट जारी होने पर भी फौरन फांसी नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि ब्लैक वारंट जारी होने के बाद फांसी पर चढ़ाए जाने वाले शख्स को कम से कम 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए, ताकि इस दौरान वो अपने सारे अधूरे काम जिनमें वसीयत करने से लेकर रिश्तेदारों से मिलना शामिल है वो सब पूरी कर सके. इस हिसाब से भी फांसी में कम से एक-दो हफ्ते का वक्त लग जाएगा.
वैसे ये सारी कानूनी अड़चनें तो अभी के लिए और अभी की हैं. अब सवाल उठता है कि निर्भया जैसे केस में जिसमें फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ नौ महीने के अंदर अपना फैसला सुना दिया था. उसके बाद भी फांसी देने में सात साल क्यों लग गए? तो इसे समझने के लिए केस को शुरू से आखिर तक समझना जरूरी है.
इत्तेफाक या तारीख टालने की साजिश
इस केस का एक और अजीब पहलू है. अब ये इत्तेफाकन है या इसके पीछे फांसी की तारीख टालने की साजिश पता नहीं. निर्भया के चारों गुनहगरों ने अभी तक अपने आखिरी कानूनी अधिकार या रहम की अपील के मानवीय अधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया है. अगर एक ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं किया तो दूसरे ने रहम की अपील ही नहीं की. एक ने तो दोनों में से अब तक कुछ भी नहीं किया.
16 दिसंबर 2012- इस तारीख को देश भुला नहीं पाएगा. रेप को लेकर देश में ऐसा उबाल भी आ सकता है ये इसी तारीख ने बताया था. दिल्ली के मुनीरका इलाके में छह लोगों ने पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में गैंगरेप किया और निर्भया और उसके साथी को बस से नीचे फेंक दिया.
18 दिसंबर 2012- वारदात के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने छह में से चार आरोपियों राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को गिरफ्तार किया.
21 दिसंबर 2102- दिल्ली पुलिस ने पांचवां आरोपी जो नबालिग था उसे दिल्ली से और छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को बिहार से गिरफ्तार किया.
29 दिसंबर 2012- निर्भया ने सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया.
3 जनवरी 2013- पुलिस ने पांच आरोपियों राम सिंह, मुकेश, विनय, पवन और अक्षय के खिलाफ हत्या, गैंगरेप, हत्या की कोशिश, अपहरण, डकैती का केस दर्ज करने के बाद चार्जशीट दाखिल कर दिया. मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट को सौंपा गया. छठे नाबालिग आरोपी पर जुवेनाइल कोर्ट में केस चलाने का फैसला हुआ.
17 जनवरी 2013- फास्ट ट्रैक कोर्ट ने पांचों दोषियों पर आरोप तय किए.
11 मार्च 2013- इसी बीच तिहाड़ के जेल नंबर तीन में राम सिंह की मौत हो गई. उसकी लाश सेल के अंदर फंदे से झूलती मिली. हालांकि, उसी सेल में तब उसके साथ तीन और कैदी बंद थे. शक है कि राम सिंह को जेल के अंदर ही मार दिया गया था. ये शक खुद तिहाड़ जेल के लीगल अफसर ने भी जताया था. इस गैंगरेप में राम सिंह का दूसरा भाई पवन भी शामिल है.
31 अक्टूबर 2013- जुवेनाइल बोर्ड ने नाबालिग दोषी को गैंगरेप और हत्या का दोषी करार देते हुए तीन साल के लिए सुधार गृह में भेज दिया.
10 सितंबर 2013- फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चार आरोपियों मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को दोषी करार दिया.
13 सितंबर 2013- फास्ट्र ट्रैक कोर्ट ने चारों दोषियों मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को मौत की सजा सुनाई.
13 मार्च 2014- दिल्ली हाई कोर्ट ने चारों दोषियों की मौत की सजा को बरकरार रखा.
15 मार्च 2014- सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को फांसी दिए जाने पर रोक लगा दी.
20 दिसंबर 2015- नाबालिग अपराधी तीन साल की सजा काट कर बाल सुधार गृह से रिहा हो गया.
27 मार्च 2016- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा.
5 मई 2017- सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों यानी मुकेश, विनय, पवन और अक्षय की मौत की सजा बरकरार रखी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निर्भया कांड को सदमे की सुनामी करार दिया.
9 नवंबर 2017- एक दोषी मुकेश ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा बरकरार रखने के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया.
4 नवंबर 2019- विनय ने राष्ट्रपति से रहम की अपील की. दिल्ली सरकार ने रहम ना करने की सिफारिश के साथ विनय की दया याचिका केंद्र सरकार के जरिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया. इस दया याचिका पर फैसला आना अभी बाकी है.
10 दिसंबर 2019- एक और दोषी अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर कर दी. सुनवाई होनी अभी बाकी है.
चौथे आरोपी की ना अपील, ना पुनर्विचार याचिका
कुल मिलाकर इस वक्त की तस्वीर ये है कि मुकेश सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुका है जो खारिज हो गया. पर मुकेश ने अभी तक राष्ट्रपति के पास दया याचिका नहीं दी है. विनय राष्ट्रपति के पास दया याचिका तो भेज चुका है. पर उसने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की. अक्ष्य ने 10 दिसंबर को ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की. लेकिन राष्ट्रपति के पास दया याचिका उसने भी अभी तक नहीं भेजी. बचा चौथा दोषी पवन तो उसने ना तो राष्ट्रपति से रहम की अपील की है और ना ही अभी तक पुनर्विचार याचिका दाखिल की है.
आखिर के 2 साल, केस में कुछ नहीं हुआ
निर्भया केस का पहला फैसला फास्ट्र ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ नौ महीने में 2013 में ही सुना दिया था. इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने भी बहुत ज्यादा वक्त नहीं लिया. साल भर में हाईकोर्ट से भी फैसला आ गया. अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने जरूर करीब सवा तीन साल लिए फैसला सुनाने में. मगर उसके बाद आखिरी के दो साल में इस केस में कुछ हुआ नहीं था. तो कायदे से दखें तो फास्ट ट्रैक कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट को आखिरी फैसला लेने में कुल चार साल का वक्त लगा.
11 मार्च 2013 को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने पहली बार चारों को फांसी की सजा सुनाई थी. इसके ठीक एक साल दो दिन बाद 13 मार्च 2014 को दिल्लीहाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने भी फास्ट ट्रैक कोर्ट की सजा-ए-मौत के फैसले को बरकरार रखा. हाईकोर्ट के फैसले को मुकेश, पवन, अक्ष्य और विनय ने सुपीम कोर्ट में चैलेंज किया.
आखिर फैसला सुनाने में 3 साल 2 महीने का वक्त
सुप्रीम कोर्ट ने अपना आखिरी फैसला सुनाने में तीन साल दो महीने का वक्त लिया. इसके बाद 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने भी चारों की फांसी की सजा बरकरार रखी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के दो महीने बाद एक दोषी मुकेश ने पुनर्विचार याचिका इसी सुप्रीम कोर्ट में दायर की. जिसे चार महीने बाद 9 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.
चारों दोषियों की फांसी को टालने का खेल
अब यहां से शुरू होता है कानून की सुस्त रफ्तारी और चारों दोषियों की फांसी को टालने का खेल. 9 नवंबर 2017 से लेकर अक्टूबर 2019 यानी लगभग पूरे दो साल तक निर्भया के चारों गुनहगारों की कोई खबर ही नहीं लेता. चारों जेल में पड़े रहते हैं, वो तो अक्टूबर 2019 में निर्भया की मां फांसी जल्दी देने की मांग को लेकर जब अदालत पहुंचती है, तब सभी को याद आता है कि अरे इन लोगों को तो अभी तक फांसी नहीं हुई है.
हद तो ये है कि मई 2017 से लेकर अक्टूबर 2019 तक यानी इन दो सालों में फांस की सजा पाए चारों गुनहगार ना तो सुप्रीम कोर्ट में दोबारा जाते हैं और ना ही रहम के लिए राष्ट्रपति से अपील करते हैं और पूरा तिहाड़ जेल प्रशासन भी इन दो सालों में हैरतअंगेज तौर पर चुप्पी ही साधे रहता है. अगर मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही बाकी की कानूनी कार्रवाई जल्दी-जल्दी पूरी कर या करा ली जाती तो शायद अब तक ये चारों अपने गुनाहों की सजा भुगत चुके होते.