
शबनम फांसी से अब चंद कदम ही दूर है. आजाद भारत में ऐसा पहली बार है जब किसी महिला को फांसी दी जाएगी. शबनम ने प्रेमी की खातिर अपने परिवार के 7 लोगों की निर्मम हत्या की थी. ये केस बावनखेड़ी हत्याकांड के नाम से मशहूर है. इस जघन्य घटना के बाद से शबनम जेल में बंद है. इस वक्त वह रामपुर के जिला कारागार में है.
शबनम की दया याचिका खारिज हो चुकी है और कभी भी फांसी का फरमान जारी हो सकता है. शबनम ने राष्ट्रपति और राज्यपाल के समक्ष दया याचिकाएं डालकर माफी की अपील की थी जिसे राज्यपाल और राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया. अब डेथ वारंट जारी होते ही कभी भी शबनम को फांसी हो सकती है.
जनपद अमरोहा के गांव बावनखेड़ी निवासी शबनम का सलीम नामक युवक से प्रेम प्रसंग था. वे दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन परिवार के लोग शादी में रोड़ा बन रहे थे. इससे निजात पाने के लिए शबनम ने 14 अप्रैल 2008 को अपने परिवार के 7 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी.
पवन जल्लाद ने कहा ‘मैं तैयार हूं’
शबनम को फांसी देने के लिए मेरठ का पवन जल्लाद भी तैयार है. आजतक से बातचीत में पवन जल्लाद ने कहा कि अगर उन्हें बुलाया जाता है तो वे फांसी देने को तैयार हैं, बस तारीख का इंतजार है. पवन जल्लाद का कहना है कि वे फांसी घर देखने के लिए मथुरा गए थे. उसमें थोड़ी सी खराबी थी उसको ठीक करने के लिए बोला था.
पवन ने कहा कि अगर शबनम को फांसी होती है तो उनके होश संभालने से लेकर अब तक ये पहली बार होगा जब किसी महिला को फांसी दी जाएगी. अगर उसका डेथ वारंट आता है तो मैं फांसी का ट्रायल करूंगा. रस्से चेक करूंगा. तख्ता चेक करूंगा और सारा इंतजाम पुख्ता करूंगा.
शबनम को कोई पछतावा नहीं
उधर, रामपुर जेल के जेलर राकेश कुमार वर्मा ने बताया कि ये महिला जिला जेल मुरादाबाद से जुलाई 2019 में ट्रांसफर होकर के हमारी जेल में आई थी. ये बावनखेड़ी हत्याकांड में मृत्यु दंड से दंडित है. ये महिला वार्ड बैरक नंबर 14 में है. इसका व्यवहार सामान्य है और कोऑपरेटिव है. वह बंदियों और जेल प्रशासन के लोगों के साथ हंसती-बोलती है. उसके व्यवहार में कुछ भी असामान्य नहीं है. उसके प्रेमी के बारे में जेलर ने बताया कि वह संभवत मुरादाबाद से बरेली गया है. उसके एक बच्चा भी था, जिसके बारे में जेलर का कहना है कि वह यहां दाखिल नहीं हुआ है और न यही मालूम है कि वह कहां है.
मथुरा जेल में होगी फांसी
शबनम रामपुर कारागार में जुलाई 2019 से है. जेलर ने कहा है कि प्रायश्चित और पश्चाताप जैसी कोई बात सामने नहीं आई है. हमें अभी इसका डेथ वारंट प्राप्त नहीं हुआ है. इसकी दया याचिका राष्ट्रपति के यहां से खारिज हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट से भी दया याचिका खारिज हो चुकी है. उसके बाद हमने डिस्ट्रिक्ट अमरोहा से इसका डेथ वारंट प्राप्त करने का अनुरोध किया है. जैसे ही वारंट प्राप्त होगा, इसको हम यहां से डिस्ट्रिक्ट जेल मथुरा के लिए ट्रांसफर कर देंगे, क्योंकि महिलाओं की फांसी के लिए मथुरा जेल में ही प्रावधान है. जेल में शबनम क्रिएटिव वर्क भी कर रही है. वह रंगोली बनाने और प्रशिक्षण कार्यों में लगी रही. जिला कारागार रामपुर में कुल 48 महिलाएं हैं, उनमें से एक शबनम भी है.
गांव में खुशी का माहौल
शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के सात सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया था. घटना का खुलासा होने के बाद से ही शबनम और सलीम जेल की सलाखों के पीछे हैं. इस केस की सुनवाई करते हुए अमरोहा की जिला अदालत ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा.
इसके बाद राष्टपति ने भी शबनम और सलीम की दया याचिका खारिज कर दी. राष्ट्रपति के इस फैसले के बाद शबनम के चाचा और चाची समेत पूरे गांव में खुशी का माहौल है. शबनम के चाचा और चाची उन दोनों को बीच चौराहे पर फांसी देने की मांग कर रहे हैं. गांव के लोगों का भी कहना है कि उन दोनों को फांसी होनी चाहिए.
‘बीच चौराहे पर हो फांसी’
शबनम के चाचा सत्तार अली कहते हैं कि जैसी करनी वैसी भरनी. जब वह सात लोगों को खा गई तो उसे भी जिंदा नहीं रहना चाहिए. उनका कहना है कि उसे बीच चौराहे पर फांसी देनी चाहिए. सत्तार अली का कहना है, "फांसी होनी ही चाहिए. जो उसने किया है, उसका फल उसे मिलना चाहिए. इस मामले को 13 साल हो गए. उस समय हम यहां रहते नहीं थे. जब हम घर पहुंचे तो पूरा परिवार कटा हुआ देखा. बच्चे का गला दबा हुआ देखा, और देशों की सरकार होती तो उसे बहुत पहले फांसी हो गई होती."
शबनम का केस लड़ने वाले वकील अरशद अंसारी ने बताया, "मैंने जिला अदालत में उसका केस लड़ा. यहां 2010 में सजा हो गई तो हाई कोर्ट में अपील दायर की. मैंने हाई कोर्ट में भी पैरवी की थी. लेकिन उसकी सजा बरकरार रही. अंतिम विकल्प था कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए. लेकिन राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका स्वीकार नहीं की. शबनम से पहले भी कई महिलाओं को फांसी की सजा हुई है लेकिन उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया था, लेकिन शबनम की याचिका खारिज हो गई. अब फांसी ही अंतिम विकल्प है.”