
ठीक सात सौ तीस दिन पहले यानी आज से ठीक दो साल पहले. 23 नवंबर 2020 को आफताब ने जो कुछ कहा था, उसने ठीक वैसा ही किया. पालघर जिले के तुलिंज पुलिस स्टेशन में ठीक 730 दिन यानी दो साल पहले वो 23 नवंबर 2020 की तारीख थी. जब श्रद्धा ने अपने हाथों से एक शिकायत लिख कर थाने में दी थी. काश, उस शिकायत को लिखने और सच्चाई जानने के बाद भी श्रद्धा अगर आफताब के साथ ना रहती तो शायद आज जिंदा होती.
जो शिकायती खत में लिखा था वही हुआ
अजीब इतेफाक है ये. 23 नवंबर 2022 को पूरा एक साल बीत गया. दो साल पहले 23 नवंबर 2020 का लिखा श्रद्धा का खत या यूं कहें कि पुलिस कंप्लेंट सामने आई है. अगर अब तारीख और साल को भुला दें और सिर्फ इस शिकायत को पढ़ जाएं तो ऐसा लगेगा कि श्रद्धा ने ये खत अपने के कत्ल के बाद लिखा है. जो बात उसने दो साल पहले लिख दी, डेढ़ साल बाद उसके साथ ठीक वही हुआ, वैसे ही गला दबाया गया. वैसे ही दम घोंटा गया. वैसे ही लाश के टुकड़े किए गए और वैसे ही फेंक दिए गए.
अपने कातिल के साथ रहती रही श्रद्धा
ये महज इतेफाक था या फिर सचमुच श्रद्धा को अपना अंजाम मालूम था और अगर उसे अपना अंजाम मालूम था तो फिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि खुद की जान हथेली पर रख कर वो अपने होनेवाले कातिल के साथ रह रही थी. इस इतेफाक या मजबूरी पर बात करें, उससे पहले क्यों ना एक बार दो साल पहले यानी 23 नवंबर 2020 को लिखे श्रद्धा के उस खत या पुलिस कंप्लेंट के बारे में जान लें.
23 नवंबर 2020
दरअसल, दो साल की यही वो तारीख थी, जब श्रद्धा ने वो कंप्लेंट पुलिस को दी थी. तब आफताब ने उसकी हालत खराब कर दी थी. उसके नाक, गाल, गला, कमर के निचले हिस्से पर बेतहाशा चोट और चोटों के निशान थे. आफताब ने तब श्रद्धा की बुरी तरह पिटाई की थी. इस पिटाई के बाद श्रद्धा को उसके दोस्त अस्पताल ले गए थे. जहां उसे भर्ती करना पड़ा था. अपने उन्हीं दोस्तों के मशवरे के बाद तब श्रद्धा ने पालघर के तुलिंज पुलिस स्टेशन में ये कंप्लेन दी थी. तब श्रद्धा ये तय कर चुकी थी कि अब वो आफताब से अलग हो जाएगी. उसके साथ बिल्कुल नहीं रहेगी.
श्रद्धा की आखिरी गलती
लेकिन अफसोस वो फिर से आफताब के बहकावे में आ गई. आफताब ने तब श्रद्धा को इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए धमकी दी कि अगर वो उसके पास नहीं लौटी तो वो खुदकुशी कर लेगा. उसने श्रद्धा से माफी भी मांगी थी. श्रद्धा पसीज गई थी और अस्पताल से फिर उसी आफताब के पास पहुंच गई. इतना ही नहीं, आफताब के कहने पर ही उसने अगले ही दिन तुलिंज पुलिस स्टेशन में दी गई अपनी कंप्लेन भी वापस ले ली थी. ये उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी नहीं, बल्कि सचमुच आखिरी गलती साबित हुई.
डेढ साल पहले लिखी गई थी कत्ल की पूरी स्क्रिप्ट
जरा सोचिए अगर इस कंप्लेंट के साथ ही श्रद्धा आफताब से अलग हो जाती, तो क्या उसकी जान बच नहीं जाती? चलिए श्रद्धा ने आफताब पर भरोसा किया, इसलिए वापस नहीं लौटी. लेकिन उस आफताब का क्या, जिसने डेढ साल पहले ही श्रद्धा के कत्ल की पूरी स्क्रिप्ट ही लिख डाली थी. बस, कत्ल की तारीख को छोड़ के, अगर शिकायती खत की कुछ लाइनों को फिर से बड़े गौर से पढा जाए तो श्रद्धा लिखती है-
"आज उसने मेरा गला घोंट कर मुझे मारने की कोशिश की. उसने मुझे डराया. ब्लैकमेल किया. साथ ही ये भी कहा कि वो मुझे मार डालेगा, मेरी लाश के टुकड़े करेगा और फिर उन्हें बाहर फेंक देगा."
जो लिखा वही हुआ
श्रद्धा ने खत में जो कुछ लिखा, वो सबकुछ हु-ब-हू सच साबित हुआ. 18 मई 2022 को आफताब ने श्रद्धा को ठीक इसी तरह मारा. उसने पहले श्रद्धा का गला घोंटा. फिर लाश के टुकड़े किए. इसके बाद उन टुकड़ों को किश्तों में बाहर फेंकता रहा. फेंकता रहा जब तक कि सारे टुकड़े ठिकाने नहीं लग गए.
आफताब से शादी करना चाहती थी श्रद्धा
वैसे श्रद्धा के इस खत या कंप्लेंट का एक और पहलू भी है. शायद इस सवाल का जवाब भी इसी खत में है कि आफताब के तमाम जुल्मो सितम के बावजूद श्रद्धा उससे दूर क्यों नहीं जा रही थी. दरअसल, श्रद्धा सचमुच आफताब से प्यार करती थी और वो उसके साथ शादी करना चाहती थी. आफताब की तमाम शिकायत, कंप्लेंट में लिखने के बावजूद वो अपने दिल की इस बात को छुपा नहीं पाई थी.
श्रद्धा की जिंदगी का आखिरी चैट
उस पुलिस कंप्लेन के अलावा श्रद्धा का एक चैट भी सामने आया है. शायद ये श्रद्धा की जिंदगी का आखिरी चैट था. 18 मई की शाम की 4 बज कर 34 मिनट पर श्रद्धा ने इंस्टाग्राम पर अपने एक दोस्त को मैसेज लिखा था. जबकि बकौल आफताब 18 मई की रात 8 से 10 के दरम्यान ही उसने श्रद्धा को मार डाला था. यानी इस चैट को लिखने के अगले चार-पांच घंटों बाद ही श्रद्धा मारी गई थी. श्रद्धा ने इस चैट में अपने एक दोस्त को लिखा था, दोस्त.. मुझे खबर मिल गई है.
दोस्त को नहीं मिला था जवाब
फिर थोड़ी देर बाद वो उसी दोस्त को दूसरा मैसेज लिखती है कि मैं किसी चीज में बहुत बिजी हो गई थी. 18 मई को उसी दोस्त ने फिर श्रद्धा को जवाब भी लिखा, क्या खबर मिली है तुम्हें? लेकिन श्रद्धा ने फिर पलट कर इस मैसेज का जवाब नहीं दिया. इस दोस्त को क्या, इसके बाद कभी किसी को जवाब नहीं दिया.
तीन महीने बाद भी नहीं मिला जवाब
मगर वो दोस्त लगातार अब भी श्रद्धा को मैसेज किए जा रहा था. मगर तीन महीने बाद भी जब श्रद्धा का कोई जवाब नहीं आया तब 15 सितंबर को उसने आफताब को मैसेज किया. आफताब को फोन भी किया. लेकिन आफताब ने उससे बात नहीं की. 24 सितंबर शाम सवा चार बजे उस दोस्त ने श्रद्धा को फिर मैसेज किया. पूछा तुम कहां हो? क्या तुम सेफ हो? मगर इसका भी जवाब नहीं आया. तब तक कुछ और दोस्त भी श्रद्धा को ढूंढ रहे थे.
दिल्ली में आफताब की गिरफ्तारी
और फिर उन्हीं दोस्तों से बात होते हुए श्रद्धा के भाई और पिता तक पहुंची. इसके बाद श्रद्धा के पिता ने पहली बार अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी. जिसका नतीजा ये हुआ कि आफताब दिल्ली में ही पकड़ा गया.
आफताब के पॉलीग्राफी टेस्ट की तैयारी
इस बीच, बुधवार को रोहिणी के फोरेंसिक साइंस लेब्रोटरी यानी एफएसएल में आफताब का पॉलीग्राफी टेस्ट किया जाना था, लेकिन स्वास्थ कारणों से ऐसा नहीं हो सका. असल में नार्को टेस्ट से पहले पॉलीग्राफी टेस्ट जरूरी होता है. ताकि इस टेस्ट के जरिए ये अंदाजा लगाया जा सके कि आरोपी किन सवालों पे सच बोल रहा है और किन सवालों के गलत जवाब दे रहा है. पॉलीग्राफी टेस्ट से दौरान आफताब से ज्यादातर सवाल श्रद्धा, श्रद्धा के साथ रिश्तों, लडाई झगडा, कत्ल, लाश के टुकडे, टुकडों को ठिकाने लगाने की जगह और हथियार वगैरह के बारे में पूछे जाएंगे.
सच जानने के लिए नार्को टेस्ट
आफताब की पुलिस हिरासत 25 नवंबर को खत्म हो रही है. उसे देखते हुए पुलिस की कोशिश है कि अगले दो दिनों के अंदर उसका नार्को टेस्ट भी पूरा हो जाए. दरअसल, नार्को टेस्ट के जरिए फोरेंसिक एक्सपर्ट आफताब के दिमाग में छुपे श्रद्धा के कत्ल और लाश के सबूतों को बाहर निकालना चाहते हैं. अब सवाल है कि मुजरिम का दिमाग कैसे पढ़ा जाए? तो बस इसीलिए नार्को टेस्ट होता है. ताकि मुजरिम के दिमाग में घुस कर उसका सच बाहर लाया जा सके.
जांच अफसर और मनोवैज्ञानिक चुनते हैं सवाल
लेकिन नार्को टेस्ट के लिए पहले अदालत और खुद उस मुल्जिम की सहमति जरूरी है. नार्को टेस्ट के दौरान आरोपी को कुछ ड्रग्स दिए जाते हैं. आरोपी के कद, काठी, सेहत, वजन और उम्र को देखते हुए दवाओं की डोज दी जाती है. ताकि आरोपी ना तो पूरी तरह बेहोश हो और ना ही पूरी तरह नींद की आगोश में हो. बस नीम बेहोशी वाली हालत हो. यानी ऐसी हालत कि वो ना सो रहा है और ना जाग रहा है. ना वो होश में है और ना बेहोश. कहते हैं कि ऐसी हालत में इंसान अक्सर सच बोलता है और इसी हालत में अब आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं. वो सवाल जो उस केस से और उस आरोपी से जुडे हों. आरोपी से पूछे जानेवाले सवाल केस के जांच अफसर और मनोवैज्ञानिक की एक टीम मिल कर तैयार करती है.
अदालत में मान्य नहीं है नार्को टेस्ट की रिपोर्ट
यहां ये भी जान लीजिए कि नार्को टेस्ट की रिपोर्ट अदालत में कतई मान्य नहीं है. पुलिस भी ये बात अच्छी तरह जानती है. इसके बावजूद आरोपियों का नार्को टेस्ट इसलिए कराया जाता है, ताकि उसके दिमाग से उगले राज के जरिए केस से जुड़े सबूतों तक पहुंचा जा सके. मसलन, आफताब और श्रद्धा केस में पुलिस को इस वक्त जो सबसे जरूरी सुराग और सबूत चाहिेए, वो श्रद्धा की लाश, लाश के टुकड़े या फिर वो आरी है, जिससे लाश के टुकड़े किए गए थे.
अगर नार्को टेस्ट के दौरान आफताब उन जगहों के बारे में सच बोल गया, जहां-जहां उसने इन सबूतों को ठिकाने लगाया है, तो समझ लीजिए नार्को टेस्ट कामयाब. पर अगर वो नार्को टेस्ट में भी पुलिस को उलझा गया तो फिर केस वहीं खड़ा नजर जाएगा, जहां पिछले नौ दिनों से है.
कई मामलों में नाकाम रहा नार्को टेस्ट
आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि जरूरी नहीं है कि नार्को टेस्ट के दौरान आरोपी या उसके दिमाग ने हमेशा सच ही बोला हो. तेलगी से लेकर अबु सलेम और यहां तक कि आरुषि केस में भी नार्को टेस्ट नाकाम ही साबित हुआ था.