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आतंकी से विद्रोही तक... कभी लादेन और बगदादी के साथ था जोलानी, फिर ऐसे मिटा दी असद की ताकत

अबू मोहम्मद अल-जोलानी की महत्वाकांक्षाएं अल-कायदा की विचारधारा से आगे बढ़ गईं थीं, क्योंकि वह सीरिया की बिखरी हुई विपक्षी ताकतों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था. साल 2016 में, उसने जबात अल-नुसरा को जबात फतह अल-शाम (JFS) के रूप में पुनः स्थापित किया.

जोलानी ने अपनी छवि बदलने के लिए कड़ा संघर्ष किया जोलानी ने अपनी छवि बदलने के लिए कड़ा संघर्ष किया
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST

Rebellion Leader Abu Mohammad al-Jolani: कुख्यात आंतकी संगठन के जिहादी आंदोलन में एक खास भूमिका अदा करने वाले विद्रोही नेता अबू मोहम्मद अल-जोलानी का नाम सीरिया के जटिल संघर्ष में एक अहम किरदार के रूप में उभरा है. अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट (ISIS) के सदस्य से लेकर स्थानीय विद्रोही बल के नेता बनने तक का सफर जोलानी ने यूं ही पूरा नहीं किया, बल्कि सीरिया की जंग में उसकी भूमिका और बहुआयामी शक्ति के साथ-साथ जनता के साथ जुड़ाव ने भी इसमें खास रोल अदा किया है.

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कौन है अहमद हुसैन अल-शरा उर्फ अबू मोहम्मद अल-जोलानी
सीरिया के डेयर एज़-ज़ोर प्रांत में 1981 में अहमद हुसैन अल-शरा के रूप में उसका जन्म हुआ था. कुछ जगहों पर उसके जन्म के स्थान को सऊदी अरब के रियाद में बताया गया है और जन्म के साल को 1982. अहमद हुसैन अल-शरा को बाद में अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नाम से जाना गया. अहमद हुसैन अल-शरा के रूप में जन्मे अल-जुलानी ने कम उम्र में ही उग्रवाद की राह पकड़ ली थी. उसका परिवार गोलान हाइट्स से ताल्लुक रखता है, लेकिन उसने अपना बचपन दमिश्क में बिताया. जोलानी ने एक ऐसा करियर अपनाया जो उसे चरमपंथी हलकों में ले गया. साल 2000 के दशक की शुरुआत में, वह अबू मुसाब अल-जरकावी के नेतृत्व में इराक जाकर आतंकी संगठन अल-कायदा (AQI) में शामिल हो गया. साल 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद, जोलानी ने AQI के भीतर खास मुकाम हासिल किया, और अराजकता का लाभ उठाकर उसने एक उग्रवादी रणनीतिकार के रूप में अपनी साख बनाई.

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गिरफ्तारी और रिहाई
साल 2006 में जरकावी की मौत के बाद, अबू मोहम्मद अल-जोलानी ISIS के भावी नेता अबू बकर अल-बगदादी का करीबी सहयोगी बन गया. कथित तौर पर उसे इराक में अमेरिकी सेना द्वारा कैद कर लिया गया था और 2008 में रिहा किया गया. यह एक महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने उसे जिहादी रैंकों में फिर से शामिल होने का मौका दे दिया.

जबात अल-नुसरा का गठन
साल 2011 में, बशर अल-असद के खिलाफ सीरिया के विद्रोह के बीच, अबू मोहम्मद अल-जोलानी सीरिया में अल-कायदा शाखा स्थापित करने के मिशन के साथ अपने वतन लौट आया. उसने 2012 में अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हुए जबात अल-नुसरा (द सपोर्ट फ्रंट) की स्थापना की. अल नुसरा समूह असद की सेनाओं के खिलाफ युद्ध के मैदान में अपनी सफलता और आत्मघाती बम विस्फोटों और फांसी सहित क्रूर रणनीति के लिए जल्दी ही कुख्यात हो गया था.

अल-कायदा से तोड़ा नाता
जानकार मानते हैं कि अबू मोहम्मद अल-जोलानी की महत्वाकांक्षाएं अल-कायदा की विचारधारा से आगे बढ़ गईं थीं, क्योंकि वह सीरिया की बिखरी हुई विपक्षी ताकतों के बीच अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था. साल 2016 में, उसने जबात अल-नुसरा को जबात फतह अल-शाम (JFS) के रूप में पुनः स्थापित किया और अल-कायदा से औपचारिक रूप से अलग होने की ऐलान कर दिया. यह कदम रणनीतिक था, जिसका उद्देश्य सीरियाई विद्रोहियों और स्थानीय आबादी के बीच व्यापक सहमति और समर्थन हासिल करना था.

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जिहादी आंदोलन से बनाई दूरी
एक साल बाद, JFS ने अन्य गुटों के साथ विलय करके हयात तहरीर अल-शाम (HTS) का गठन किया, जिसका नेता अबू मोहम्मद अल-जोलानी ही था. HTS ने खुद को असद के शासन से लड़ने वाले विद्रोही समूह के रूप में स्थापित किया. इस समूह ने खुद को वैश्विक जिहादी उद्देश्यों और आंदोलन से दूर कर लिया था.

व्यावहारिक नेता के रूप में बनाई छवि
अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व में, HTS सीरिया के उत्तर-पश्चिम में, विशेष रूप से इदलिब प्रांत में प्रमुख शक्ति बनकर उभरा. उसने एक व्यावहारिक नेता की छवि बनाई, जो HTS के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में शासन, सार्वजनिक सेवाओं और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता था. जिहादी के रूप में अपने अतीत से परेशान होने के बावजूद, जोलानी ने खुद को एक वैध राजनीतिक शख्सियत के रूप में पेश करने की कोशिश की.

ऐसे आया बदलाव
इंटरव्यू हो या भाषण, सभी जगहों पर अबू मोहम्मद अल-जोलानी ने अपने उग्रवादी परिधान को त्याग दिया. वो सूट पहनकर अपनी बातों में संयम बरतने पर जोर देने लगा. हालांकि, उसके आलोचक उस पर सत्तावाद, जबरन वसूली और HTS शासन के तहत मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाते रहे हैं..

असद की सेना को दिए झटके
अबू मोहम्मद अल-जोलानी के की सेना ने पिछले कुछ वर्षों में असद की सेना को महत्वपूर्ण झटके दिए हैं, जिससे उत्तर-पश्चिम में शासन की प्रगति बाधित हुई है. HTS असद और उसके रूसी सहयोगियों दोनों के लिए एक कांटा बना हुआ है, जिसमें इदलिब सीरिया में विद्रोहियों का अंतिम और प्रमुख गढ़ है.

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विवाद और अंतर्राष्ट्रीय धारणा
पुनःब्रांडिंग के अपने प्रयासों के बावजूद, अबू मोहम्मद अल-जोलानी और HTS को अभी भी संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों द्वारा आतंकवादी इकाई के रूप में नामित किया गया है. विश्लेषक इस बात पर विभाजित हैं कि उनका परिवर्तन वास्तविक है या एक सामरिक चाल.

आसान नहीं जोलानी की राह
जैसे-जैसे सीरिया का युद्ध आगे बढ़ता रहा, अबू मोहम्मद अल-जोलानी का संघर्ष उसे मुश्किल रास्ते का अहसास भी करता रहा, जिसने उग्रवाद, विद्रोह और शासन के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया है. अब देखना ये है कि सीरिया की सत्ता में वह एक प्रमुख खिलाड़ी बने रहेंगे या गुमनामी में खो जाएंगे. हालांकि यह सब सीरिया में चल रहे संकट के बदलते हालात, गठबंधन और जमीनी राजनीति पर निर्भर करेगा.

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