
आतंकवाद को पनाह देने वाले पाकिस्तान को 16 दिसंबर के दिन बड़ा झटका लगा था. 16 दिसंबर ही वह तारीख थी, जब आतंकवादियों ने पेशावर के आर्मी स्कूल में मासूमों के खून से होली खेली थी. इस हमले में 141 लोगों की जान चली गई थी. मरने वालों में 132 से ज्यादा बच्चे थे.
सिक्योरिटी फोर्स की वर्दी में आए थे आतंकी
मंगलवार, 16 दिसबंर 2014 की सुबह एक कार से आए आतंकियों ने पहले अपनी कार को स्कूल कुछ दूरी पर आग के हवाले किया और फिर वे आर्मी स्कूल की तरफ बढ़ गए थे. सात आतंकी सिक्योरिटी फोर्स की वर्दी में आर्मी स्कूल में जा पहुंचे थे. उनके पास ऑटोमैटिक हथियार थे. आतंकियों ने स्कूल में घुसने से पहले बाहर खड़ी गाड़ियों को अपना निशाना बनाया. फायरिंग और धमाकों के कारण स्कूल की इमारत को भी भारी नुकसान हुआ. इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने स्कूल से करीब 960 लोगों को बाहर निकाला था.
ज्यादा से ज्यादा बच्चों को मारना चाहते थे आतंकी
पेशावर के वारसाक रोड पर स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल में दाखिल हुए आतंकियों का सिर्फ एक ही मकसद था मौत और दहशत. उनके आकाओं ने उन्हें फरमान सुनाया था कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों की जान लेना. इस बात का खुलासा खुद पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' ने किया था. हमले के वक्त स्कूल में 500 बच्चे मौजूद हैं, जिन्हें बंधक बना लिया गया था.
गोलियों से बचने के लिए छिप रहे थे मासूम
स्कूल के एक हॉल में सबसे ज्यादा बच्चे मौजूद थे. आतंकियों को देखकर बच्चे इधर उधर भागने लगे. कुछ बच्चे अपनी डेस्क के नीचे छिप गए थे तो कुछ ने कुर्सियों के नीचे छिपकर ये मान लिया था कि वे बच जाएंगे. मगर इन मासूमों को नहीं पता था कि वे जालिम इन्हें किसी हाल में नहीं छोडेंगे. आतंकी जैसे ही हॉल में दाखिल हुए उन्होंने मासूमों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दी. छोटे बच्चों के हाथ, पैरों और पेट पर गोली मारी गई तो बड़े बच्चों के सिर में गोली मार दी गई. आतंकियों को इन बच्चों पर जरा भी तरस नहीं आया. बच्चों के रोने, चीखने, गुहार लगाने से भी उन्हें तरस नहीं आया. उनका दिल पत्थर का हो चुका था. वो केवल बच्चों की जान लेना चाहते थे. बस वे जालिम गोलियां चलाते रहे और बच्चे एक-एक कर मरते रहे.
खून से लाल हो गई थी जमीन
आतंकी बेरहमी के साथ गोलियां बरसा रहे थे. कई मासूम खून से लथपथ होकर जमीन पर गिर पड़े थे. कुछ जख्मी होकर कराह रहे थे. हर तरफ दहशत और खौफ का माहौल था. आतंकियों ने छिपे हुए बच्चों को बाहर निकाल कर मौत की नींद सुला दिया. हॉल में कई बच्चों की जान चल गई थी. हर तरफ मासूम बच्चों की लाशें थीं और जमीन खून से लाल हो चुकी थी. स्कूल के कई हिस्सों में यही हाल था. खून और सिर्फ खून ही फर्श पर हर तरफ दिख रहा था.
सेना ने आतंकियों से लिया था मोर्चा
पेशावर स्कूल पर हमले की खबर ने पाकिस्तानी सरकार और सेना को हिलाकर रख दिया था. हमले के कुछ देर बाद ही सेना ने स्कूल को चारों तरफ से घेर लिया था. जवाबी कार्रवाई शुरू हो चुकी थी. लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि स्कूल में अंदर तकरीबन एक हजार बच्चे और स्टाफ था. सेना ने कार्रवाई करते हुए पहले जूनियर सेक्शन को खाली कराया. और बाद में बाकी हिस्सों को कुल मिलाकर वहां से लगभग 910 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया था. सेना की कार्रवाई में हमला करने वाले 7 आतंकी मारे गए थे.
हमले को देर तक जारी रखना चाहते थे आतंकी
पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमले की साजिश रचने वालों का मकसद केवल एक हमला नहीं था. इस बात खुलासा बाद में हुआ. दरअसल आतंकियों ने पाकिस्तान को पूरी तरह दहलाने की साजिश रची थी. पाक सेना के मुताबिक आतंकी हमला करके बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते थे. आतंकियों के पास कई दिनों तक हमला करने के लिए हथियार थे. लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके.
अस्पतालों और पेशावर में इमरजेंसी का ऐलान
हमले के दौरान 132 स्कूली बच्चों और 9 स्कूली स्टाफ समेत 141 लोग मारे गए थे. जबकि लगभग 300 लोग बुरी तरह घायल हुए थे. घायलों में बच्चे, स्कूल स्टॉफ, सेना और पुलिस के जवान भी शामिल थे. जिसके मद्देनजर पेशावर के सभी अस्पतालों में सरकार ने इमरजेंसी घोषित कर दी थी. यही नहीं पूरे शहर में आपातकाल घोषित कर दिया गया था. स्कूल के बाहर 25 से ज्यादा एंबुलेंस तैनात की गई थीं.
पूरी दुनिया ने जताया था दुख
इस आतंकी हमले को लेकर पूरी दुनिया में दुख की लहर थी. हर कोई मासूमों की मौत से सदमे में था. दुनिया के तमाम मुल्कों ने इस हमले की निंदा की थी. भारत और अमेरिका समेत कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन करके दुख का इजहार किया था. साथ ही कई देशों ने मदद की पेशकश भी की थी.
तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) ने ली थी हमले की जिम्मेदारी
आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी. टीटीपी ने इस हमले को उत्तरी वजीरिस्तान में आर्मी ऑपरेशन का बदला बताया था. मासूमों की जान लेने वाले आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को कई कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों का साझा गठजोड़ माना जाता है. यह संगठन पाकिस्तान के अफगानिस्तान सीमा से सटे कबीलाई इलाकों (फाटा) में सबसे ज्यादा सक्रिय है. इसका गठन दिसंबर 2007 में हुआ था. जब पाकिस्तान में सक्रिय तालिबान के तकरीबन 13 गुट बैतुल्ला महसूद के नेतृत्व में एकजुट हो गए थे. यह संगठन घोषित तौर पर पाकिस्तान की सरकार का विरोध करता है. और देश में शरीया लागू कराना चाहता है. यह आतंकी संगठन अफगानिस्तान में मौजूदा नाटो सेनाओं पर भी हमला करता रहा है.