
अगर नटवरलाल आज जिंदा होता तो वो आज इस बात पर फक्र करता कि उसने लोगों को ठगा ज़रूर लेकिन कभी किसी की जान नहीं ली. मगर जिस चालबाज और लालची शख्स की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, वो कोई नटवरवाल नहीं बल्कि ऐसा डॉक्टर है, जिसने मरीजों की जिंदगी ही ठग ली. यूपी के उस लालची डॉक्टर ने अपने अस्पताल में 600 से ज्यादा मरीजों को ऐसे पेसमेकर लगा दिए जो या तो नकली थे या फिर किसी चालू कंपनी के. इस पूरे जानलेवा मामले का खुलासा अब जांच के बाद हुआ है. लेकिन ख़बरों के मुताबिक, इनमें से 200 लोगों की जान चली गई. आइए आपको विस्तार से बताते हैं, 'डॉक्टर डेथ' की दिल दहला देने वाली कहानी.
केस नंबर- 1
उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली 46 साल की नूरबानो को अचानक दिल का दौरा पड़ा. घरवाले फ़ौरन उन्हें पास के सरकारी अस्पताल लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें पेसमेकर लगाने की सलाह दी. लेकिन हद तो ये रही कि ऑपरेशन के बाद सर्जन ने पेसमेकर सीने के अंदर नहीं बल्कि बाहर ही चिपकाकर छोड़ दिया. इसके बाद नूरबानो के साथ-साथ उनके घरवाले भी करीब ढाई महीने तक इस पेसमेकर से जूझते रहे और आखिरकार नूरबानों की मौत हो गई.
केस नंबर- 2
इटावा की ही रहनेवाली 40 साल की नजीमा को भी दिल की बीमारी थी. उन्हें घरवालों ने सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी हॉस्पीटल में भर्ती करवाया. उनके इलाज में करीब 4 लाख रुपये खर्च किए. उन्हें भी पेसमेकर लगाया गया लेकिन आखिरकार नजीमा की भी जान चली गई.
केस नंबर- 3
46 साल की रेशमा को भी हार्ट में प्रॉब्लम था. रेशमा को भी उसी अस्पताल में पेसमेकर लगाया गया, जिस अस्पताल में नूरबानो और नज़ीमा को पेसमेकर लगा था. लेकिन इत्तेफाक देखिए कि लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद रेशमा की जिंदगी भी नहीं बची.
सस्ते, नकली पेसमेकर का इस्तेमाल
ये तीनों के तीनों के तीनों केस स्टडीज सिर्फ़ कोई दर्दनाक इत्तेफ़ाक नहीं. बल्कि इन मौत के पीछे लालच, धोखे और हैवानियत की एक ऐसी कहानी छुपी है, जिस पर यकीन करना भी मुश्किल है. क्या आप मान सकते हैं कि इन तीनों के तीनों मरीजों का इलाज एक ही डॉक्टर ने किया था और उस डॉक्टर ने सिर्फ चंद रुपयों की लालच में धोखे से इन मरीजों के सीने में असली पेसमेकर की जगह नकली पेसमेकर डाल दिया?
नकली पेसमेकर से गई मरीजों की जान
जिसका नतीजा ये हुआ कि कुछ दिनों तक सस्ते और घटिया पेसमेकर से जूझने के बाद इन सभी के सभी मरीजों की जान चली गई. लोग डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते हैं. आम तौर पर मरीज़ डॉक्टर पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं. लेकिन जब कोई डॉक्टर चंद रुपयों की ख़ातिर अपने पेशे से ही गद्दारी करने लगे, लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगा दे, तो कोई क्या ही कर सकता है.
6 साल बाद आरोपी डॉक्टर की गिरफ्तारी
पेशे के तमाम ऊसूलों को ताक पर रख कर करीब छह सौ से ज़्यादा मरीजों के साथ जानलेवा धोखाधड़ी करने की ये कहानी उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले की है. इत्तेफाक देखिए कि ये सबकुछ उसी इटावा की सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुआ है, जिसकी नींव कभी मुलायम सिंह यादव ने रखी थी. करीब छह साल तक चली जांच के बाद पुलिस ने अब जब इस मामले के आरोपी डॉक्टर समीर सर्राफ को गिरफ़्तार किया है. तो मरीजों के सीने में नकली पेसपेकर लगाने की ऐसी-ऐसी कहानियों का खुलासा हो रहा है कि जांच करने वाली पुलिस भी हैरान है.
डॉक्टर डेथ की मॉडस ऑपरेंडी
इंसान के दिल की धड़कनों को नियंत्रित करने वाला ये पेसमेकर आखिर काम कैसे करता है? असली और नकली पेसमेकर में क्या फर्क है? पेसमेकर लगाने के दौरान किन-किन बातों का ख़्याल रखना पड़ता है? इसमें कितना ख़र्च आता है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब आज हम आपको वारदात में बताएंगे, लेकिन पहले ये जान लीजिए कि नकली पेसमेकर से मासूम मरीज़ों को धोखे की मौत देने वाले इस डॉक्टर की मॉडस ऑपरेंडी क्या थी और आख़िर एक जल्लाद डॉक्टर के इस ख़तरनाक खेल का ख़ुलासा कैसे हुआ?
2017 से आ रही थीं मरीजों की शिकायतें
असल में सैफई के कॉर्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में तैनात डॉक्टर समीर सर्राफ के पेसमेकर लगाए गए मरीजों के रह-रह कर बीमार होने, तरह-तरह की परेशानियों से घिरने और मारे जाने की शिकायतें साल 2017 से ही आ रही थीं. तब इटावा के नज़दीकी ज़िले मैनपुरी के कई मरीजों और उनके घरवालों ने इस सिलसिले में सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी से शिकायत भी की थी.
डॉक्टर सर्राफ के ख़िलाफ CMS ने दर्ज कराई थी FIR
कहते हैं कि तब इस मामले की जांच के लिए यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों की ही एक कमेटी भी बनाई गई थी, लेकिन इसके बाद बात आई गई हो गई. दूसरे शब्दों में कहें तो तब ये बात दबा दी गई. लेकिन इसके अगले ही साल इस मामले में तब एक बड़ा ट्विस्ट आ गया, जब सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी के सीएमएस यानी चीफ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर आदेश कुमार ने बाक़ायदा डॉक्टर सर्राफ के ख़िलाफ इलाज के साथ-साथ मेडिकल इक्विपमेंट की ख़रीद के मामले में भी भ्रष्टाचार का इल्ज़ाम लगाते हुए पुलिस ने नामज़द रिपोर्ट लिखवा दी.
7 नवंबर को गिरफ्तार हुआ मौत देने वाला डॉक्टर
हद तो ये रही कि इसके बाद डॉक्टर समीर सर्राफ़ को दो साल के लिए सस्पेंड भी कर दिया गया, लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई भी असरदार कार्रवाई नहीं हुई और इस बीच वो प्राइवेट क्लिनिक में डॉक्टर समीर जैन के नाम से प्रैक्टिस भी करते रहा. लेकिन फिर इस मामले की जांच सीओ यानी डीएसपी लेवल के एक ऑफिसर ने की और आख़िरकार 7 नवंबर को डॉक्टर समीर सर्राफ को मरीजों को धोखे से नकली पेसमेकर लगाने, जिससे उनकी मौत होने समेत तमाम संगीन गुनाहों के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया.
लोगों को ऐसे बवकूफ बनाता था डॉक्टर सर्राफ
पुलिस की अब तक की जांच में डॉक्टर सर्राफ को लेकर कई तरह की शिकायतें सामने आई हैं. पता चला है कि डॉक्टर सर्राफ अपने पास इलाज के लिए आनेवाले मरीज़ों को अलग-अलग तरीक़ों से डराया और लूटा करते थे. जिन्हें ज़रा भी दिल से जुड़ी शिकायत होती थी, उन्हें डॉक्टर सर्राफ बीमारी और मौत का डर दिखा कर फौरन पेस मेकर लगाने की जरूरत बताता था. सरकारी अस्पतालों में आम तौर पर पेसमेकर लगाने में 75 हज़ार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है. लेकिन डॉक्टर सर्राफ अक्सर इन मरीजों को अच्छी क्वालिटी का पेसमेकर लेने और इसके लिए अलग से रुपये खर्च करने की सलाह देते था. इस तरह एक मरीज से 4 से पांच लाख रुपये तक चार्ज किया जाता.
ऐसे खुली नकली पेसमेकर की पोल
लेकिन इतने रुपये लेने के बावजूद मरीजों को डॉक्टर सर्राफ असली की जगह अनब्रांडेड और नकली पेसमेकर लगा कर छोड़ देता था. कई मामते तो ऐसे भी सामने आए, जिनमें मरीजों को पैकेट और स्टिकर किसी ब्रांडेड पेसमेकर का दिखाया गया और लगाया कोई और नकली पेसमेकर था. कुछ मरीज़ों ने पेसमेकर लगाने के बावजूद तबीयत बिगड़ने के बाद जब दिल्ली, कानपुर समेत दूसरे शहरों में अपना चेकअप करवाया, तब जाकर इस बात का ख़ुलासा हुआ कि उन्हें भरोसा तो असली पेसमेकर का दिया गया था, लेकिन लगाया नकली पेसमेकर था.
कई मरीजों को लगाए यूज्ड़ पेसमेकर
इटावा के एसएसपी संजय कुमार के मुताबिक, पुलिस को अब तक की जांच में पता चला है कि डॉक्टर सर्राफ ने कुछ मामलों में तो मरीजों को यूज़्ड यानी इस्तेमाल किया गया पेसमेकर ही धोखे से लगा दिया था. यानी किसी मरीज की मौत हुई, तो धोखे से उसका पेसमेकर निकाल लिया और उसी पेसमेकर को किसी दूसरे मरीज के सीने में प्लांट कर दिया, जबकि उस दूसरे मरीज से डॉक्टर सर्राफ ने नए और ब्रांडेड पेसमेकर के पैसे वसूल रखे थे. पुलिस ऐसी अजीब और दहलानेवाली शिकायतों को भी वैरीफाई करने में जुटी है.
नकली पेसमेकर बनाने वालों ने कराई विदेश यात्राएं
वैसे जांच में डॉक्टर सर्राफ के ख़िलाफ मरीजों से सिर्फ जानलेवा धोखाधड़ी करने के मामले ही सामने नहीं आए हैं, बल्कि भ्रष्टाचार के भी कई इल्ज़ाम सही पाए गए हैं. पुलिस सूत्रों की मानें तो डॉक्टर सर्राफ ने सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी में सरकारी पैसे से ऐसे कई ग़ैरज़रूरी और महंगे उपकरण भी ख़रीद लिए, जिसकी ज़रूरत नहीं थी. ठीक इसी तरह हाल के कुछ सालों में उन्होंने हॉन्गकॉन्ग, जापान, थाईलैंड, यूके समेत 7 से 8 अलग-अलग देशों की सपरिवार यात्राएं भी कीं. पुलिस को शक है कि इन यात्राओं के पीछे भी नकली पेसमेकर बनानेवाली कंपनियों से कमीशनख़ोरी की कहानी छुपी है. समझा जाता है कि ऐसी कंपनियों ने डॉक्टर को अपने पेसमेकर के इस्तेमाल के बदले विदेश यात्राएं कराईं.
अभी हो सकते हैं चौंकाने वाले खुलासे
फिलहाल, पुलिस को अब तक की जांच में इस रैकेट में चार से पांच और लोगों के शामिल होने का पता चला है. पुलिस उनकी भूमिका भी जांच कर रही है. और बहुत मुमकिन है कि जल्द ही क़ानून के हाथ उनके गिरेबान तक भी होंगे. अब तक करीब छह सौ लोगों को नकली पेसमेकर लगाए जाने की बात सामने आई है. पेसमेकर वाले करीब दो सौ मरीजों की जान जा चुकी है. ऐसे में पुलिस फिलहाल ये पता करने की कोशिश कर रही है कि आखि़र मारे गए मरीजों में कितने नकली पेसमेकर का शिकार बने. इसी बीच पुलिस ने डॉक्टर सर्राफ का पासपोर्ट जब्त करने की कोशिश शुरू कर दी है. ताकि अगर कल को वो जमानत पर बाहर भी निकल आए, तो उसके लिए विदेश भागना संभव ना हो. फिलहाल, डॉक्टर समीर सर्राफ जेल में है. लेकिन जांच जारी है और आने वाले दिनों में कई और चौंकाने वाले ख़ुलासों की उम्मीद है.
पेसमेकर की कहानी
इटावा में मरीज़ों को नकली पेसमेकर लगाने के मामले ने लोगों को दहला दिया है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर ये पेसमेकर क्या बला है? ये कैसे काम करता है? किसी को इसकी जरूरत क्यों होती है? असली पेसमेकर के फायदे और नक़ली के नुक़सान क्या हो सकते हैं. तो आइए आपको इन सवालों के जवाब बताते हैं.
1958 में लगाया गया था दुनिया का पहला पेसमेकर
इस दुनिया में करीब 30 लाख लोग ऐसे हैं, जो अपने सीने में पेसमेकर लिए घूम रहे हैं. जबकि हर साल औसतन 6 लाख नए लोगों को पेसमेकर लगाए जाते हैं. इसका आविष्कार अमेरिका के जॉन हॉप्स ने किया था. 1958 में आर्ने लार्सन नाम के शख्स को इस दुनिया का पहला पेसमेकर लगाया गया था. लेकिन तब ये पेसमेकर तीन घंटे में ही फेल हो गया था.
ऐसे काम करता है पेसमेकर
पेसमेकर वो मेडिकल इक्विपमेंट है, जो किसी इंसान के दिल को उसके सामान्य दर और ताल के मुताबिक धड़कने में मदद करता है. पेसमेकर का इस्तेमाल आम तौर पर उन मरीजों के लिए किया जाता है, जिन्हें एरिथमिया यानी अनियमित दिल की धड़कन की शिकायत होती है. मसलन, कभी दिल बहुत तेज़ धड़कता है, तो कभी ज़रूरत से ज्यादा धीरे. ऐसे में सीने में लगा पेसमेकर मरीज के दिल को इलेक्ट्रिक पल्स यानी बिजली के स्पंदन भेजता है, जिससे दिल सामान्य गति से काम करता रहता है. और दिल के सामान्य तरीके से काम करने का मतलब है शरीर में खून को सामान्य ढंग से पंप करना. जो कि किसी भी इंसान के लिए बेहद जरूरी है.
पेसमेकर ऑपरेशन के बाद सीने में कॉलर बोन के नीचे त्वचा के अंदर लगाया जाता है. मोटे तौर पर पेसमेकर चार तरह के होते हैं-
1. सीसा रहित पेसमेकर
2. सिंगल चेंबर पेसमेकर
3. डुअल चेंबर पेसमेकर और
4. बाइवेंट्रिकुलर पेसमेकर
डॉक्टर मरीज की हालत को समझ कर उसके मुताबिक उसे अलग-अलग किस्म के पेसमेकर लगाने की सलाह देते हैं. कुछ मामलों में मरीजों को आईसीडी यानी इंप्लांटेबल कार्डियो-वर्टर डिफाइब्रिलेटर लगाने का सुझाव भी दिया जाता है. हालांकि ये पेसमेकर तो नहीं है, लेकिन ये उपकरण भी दिल को नियमित रूप से धड़कने में मदद करता है.
पेसमेकर के फायदे
फायदे की बात करें तो पेसमेकर मरीज के सीने में दर्द, भ्रम, घबराहट, मतली समेत जरूरत से ज्यादा रफ्तार से दिल धड़कने की परेशानी को ठीक करता है. इसी के साथ एरिथमिया के मरीज़ों को बेहोशी के खतरे से भी बचाता है. और सबसे अहम ये दिल को धड़कने से रुकने नहीं देता, जिससे मरीज की जिंदगी बच जाती है.
पेसमेकर के नुकसान
नुकसान की बात करें, तो पेसमेकर से वैसे तो कोई नुक़सान नहीं होता, लेकिन कई बार इससे कॉम्प्लीकेशन यानी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जो नुकसानदायक होती है. मसलन पेसमेकर में लगी चीज़ों या फिर पेसमेकर लगाने के दौरान दी गई दवाओं से मरीज को एलर्जी हो सकती है. कई बार खून के थक्के जमने की शिकायतें भी आती हैं, जिसके लिए ब्लड थिनर का इस्तेमाल करना होता है. कुछ मामलों में सीने में लगा पेसमेकर या इसकी लीड खराब हो जाती है. इसलिए डॉक्टर पेसमेकर लगने के बाद शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने का सुझाव देते हैं. कई मशीन मसलन मेटल डिटेक्टर वगैरह शरीर में लगे पेसमेकर की गति पर असर डालते हैं, इसलिए अक्सर पेसमेकर वाले मरीजों को ऐसे किसी मशीन के इस्तेमाल से या इनसे दूर रहने की सलाह दी जाती है.
इतनी हो सकती है पेसमेकर की कीमत
आम तौर पर प्राइवेट अस्पताल में पेसमेकर लगाने की कीमत 3 से पांच लाख रुपये तक आती है. मार्केट में अलग-अलग क्वालिटी के पेसमेकर मौजूद हैं. सबसे बढ़िया और छोटा पेसमेकर माइक्रा ट्रांसकैथेटर पेसिंग सिस्टम को माना गया है, जो आम पेसमेकर के मुकाबले दस गुना छोटा होता है और इसका आकार 50 पैसे के सिक्के के बराबर होता है. जिसकी कीमत चार लाख के आस-पास होती है. भारत में सबसे सस्ता पेसमेकर 40 हजार रुपये का आता है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ये पेसमेकर खराब है, हां, लेकिन अगर पेसमेकर नकली हो, तो वो जानलेवा हो सकता है.