
यूपी की जेलों में अचानक भीड़ बढ़ गई है. जिस रफ्तार से ये भीड़ बढ़ रही है, उसे देखते हुए लगता है कि कहीं जल्दी ही जेलों के बाहर हाउस फुल का बोर्ड ना लग जाए. दरअसल, उत्तर प्रदेश में बदमाशों को जान के ऐसे लाले पड़ गए हैं कि उन्हें जान बचाने के लिए फिलहाल जेल से सुरक्षित कोई दूसरी जगह सूझ ही नहीं रही है. यही वजह है कि जो जेल के अंदर हैं वो जेल से बाहर आना नहीं चाहते और जो जेल के बाहर है, वो किसी भी कीमत पर जेल के अंदर जाना चाहते हैं. ऐसा है यूपी में आजकल एनकाउंटर का खौफ़.
कभी न चलने वाली सरकारी बंदूकें उगल रही हैं गोली!
तस्वीर पुरानी है, पर समझने के लिए जरूरी है. ऐसा एक बार नहीं, बार-बार हुआ. जब मौका आया तो बंदूक चली ही नहीं. हालांकि वो भी सरकारी बंदूकें हैं. मगर अब एक के बाद एक मुठभेड़ों की झड़ी लग गई. फक़त 11 महीने और साढ़े बारह सौ एनकाउंटर. यानी हर महीने सौ से भी ज़्यादा एनकाउंटर. है ना कमाल? एक तरफ़ यूपी की सरकारी बंदूकें चलती ही नहीं थी, और अब अचानक वही बंदूकें दनादन गोलियां उगल रही हैं. उगले भी क्यों ना? जब ट्रिगर पर ऊंगली योगी के फरमान की हो और एनकाउंटर सरकारी आदेश तो गोलियां चलेंगी ही.
अपराध पर लगाम नहीं तो एनकाउंटर!
सवाल ये है कि अचानक यूपी में एकाउंटर की झड़ी क्यों लग गई? क्या य़ूपी में क़ानून व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है कि एनकाउंटर के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा? क्या यूपी में क्रिमिनल इस कदर बेलगाम हो चुके हैं कि अचानक पूरे सोसायटी के लिए खतरा बन गए? क्या यूपी की पुलिस इन 11 महीनों में इस कदर बेबस हो गई कि क्राइम पर कंट्रोल ही नहीं कर पा रही है? या फिर सरकार ने सबसे आसान रास्ता चुन लिया है कि क्राइम खत्म करना है, तो क्रिमिनल को ही खत्म कर दो.
क्या एनकाउंटर ही है एकमात्र उपाय?
पर क्या ये रास्ता सही है? क्या यूपी की कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए एनकाउंटर ही एकमात्र रास्ता और आखिरी हथियार है? अगर हां, तो फिर जब तक ये एनकाउंटर जारी है, तब तक के लिए क्यों ना यूपी की तमाम अदालतों पर ताला लगा देना चाहिए? वैसे भी अदालतों की जगह इंसाफ़ तो अब सड़क पर ही हो रहा है, वो भी गोलियों से.
1982 में हुआ था पहला एनकाउंटर
एनकाउंटर यानी मुठभेड़ शब्द का इस्तेमाल हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बीसवीं सदी में शुरू हुआ. एनकाउंटर का सीधा सीधा मतलब होता है. बदमाशों के साथ पुलिस की मुठभेड़. हालांकि बहुत से लोग एनकाउंटर को सरकारी क़त्ल भी कहते हैं. हिंदुस्तान में पहला एनकाउंटर 11 जनवरी 1982 को मुंबई के वडाला कॉलेज में हुआ था, जब मुंबई पुलिस की एक स्पेशल टीम ने गैंगस्टर मान्या सुरवे को छह गोलियां मारी थी. कहते हैं कि पुलिस गोली मारने के बाद उसे गाड़ी में डाल कर तब तक मुंबई की सड़कों पर घुमाती रही, जब तक कि वो मर नहीं गया. इसके बाद उसे अस्पताल ले गई. आज़ाद हिंदुस्तान का ये पहला एनकाउंटर ही विवादों में घिर गया था.
यूपी में 455 फर्जी एनकाउंटर
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2005 से लेकर 31 अक्टूबर 2017 तक यानी पिछले 12 सालों में देश भर में 1241 फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आए. इनमें से अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ़ थे. मानवाधिकार आयोग के मुताबिक इन्हीं 12 सालों में यूपी पुलिस की हिरासत में 492 लोगों की भी मौत हुई. आइए आंकड़ों की नज़र में आपको पिछले 12 सालों में देश भर में हुए फर्ज़ी एनकाउंटर की तस्वीर दिखाते हैं.
पिछले 12 वर्षों में हुए इतने फर्जी एनकाउंटर!
यूपी- 455
असम- 65
आंध्र प्रदेश- 63
मणिपुर- 63
झारखंड- 58
छत्तीसगढ़- 56
मध्य प्रदेश- 49
तामिलनाडु- 44
दिल्ली- 36
हरियाणा- 35
बिहार- 32
प. बंगाल- 30
उत्तराखंड- 20
राजस्थान-19
महाराष्ट्र- 19
कर्नाटक- 18
गुजरात- 17
जम्मू-कश्मीर- 17
केरल- 03
हिमाचल- 02
फर्जी एनकाउंटर के डरावने आंकड़े
इसमें कोई शक नहीं कि आबादी के लिहाज़ से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है, मगर इसके बावजूद फर्ज़ी एनकाउंटर ये आंकड़े बाकी राज्यों के मुकाबले कहीं ज़्यादा डरावने हैं. 12 साल के इन आंकड़ों से बाहर निकले तो अकेले पिछले 11 महीनों में ही साढ़े 12 सौ एनकाउंटर यूपी में हो चुके हैं. हालांकि इनमें 41 बदमाश ही मारे गए. लेकिन ये तमाम एनकाउंटर इसलिए सवाल खड़े करते हैं कि इनमें से हर एनकाउंटर ऐलानिया कह कर किया गया. सूत्रों के मुताबिक यूपी एसटीएफ और तमाम ज़िला पुलिस को बाक़ायदा घोषित अपराधियों की लिस्ट भेजी गई है और उसी लिस्ट के हिसाब से यूपी में एनकाउंटर जारी है.
कभी यूपी सरकार पर लगाया था ये आरोप
वैसे इसे पता नहीं इत्तेफाक कहेंगे या कुछ और कि अब से 11 साल पहले खुद योगी आदित्यनाथ को यूपी सरकार और यूपी पुलिस से खुद के लिए संरक्षण मांगना पड़ा था. वो भी संसद भवन के अंदर. तब उन्होंने बाकायदा रोते हुए कहा था कि यूपी सरकार उन्हें झूठे आपराधिक मामलों में फंसा रही है. 11 सालों में वक्त बदल चुका है. अब वही योगी यूपी की सरकार के सरदार हैं और यूपी पुलिस उनके आधीन. अब संरक्षण कोई और मांग रहा है.